श्री सदगुरुदेव चरण कमलेभ्यो नमः!
श्रीमन नित्य निकुंज विहारिणी नम: !
श्री स्वामी हरिदासो विजयते
जय श्री राधे ! श्री सुरभ्यै नमः जय श्री राधे!
! धेनु चालीसा !
दोहा -
गौ महिमा गान करहुं, श्रीगुरु पद रज चित लाए ।
पाप, ताप सब मिटि जाहीं, उर अति आनंद समाए ।।
अति पावन मॉ शबद है , लेत मन होई निशंक ।
सत्य, प्रेम, करुणा देहु, मातु लीजै निज अंक ।।
चौपाई-
जय सुरभि माता सुखकारी ।
काल को बस में राखनवारी ।।
नयनों में सविता, चंदा - तारे ।
तुमहिं से जीवित प्राणी सारे ।।
हर क्षन तुमको ध्यावे जोई ।
ब्रम्हज्ञान पावै नर सोई ।।
तुम्हरी परिक्रमा गनपति कीन्ही ।
प्रथम पूजन की पदवी लीन्ही ।।
ऋषि दधीचि ने तुमको ध्याया ।
महा वज्र सम देह को पाया ।।
सब मिलि सागर मथनो जाई ।
कामधेनु रूप प्रकटी माई ।।
ब्रह्मा, विषनू नित गुन गावें ।
तुम्हें सदाशिव शीश नवावें ।।
पंचगव्य तुम्हरो वरदाना ।
तुम्हरी महिमा कोऊ न जाना ।।
तुम बिन पार वैतरणी न होई ।
जप, तप सुमिरन सफल न कोई ।।
बिन तुम्हरे सब वरन है हीना ।
क्षत्रि, वैश्य नहीं कोउ प्रवीना ।।
महिमा तुम्हरी दिन-रात है गाता ।
तब कोई जाके विप्र पद पाता ।।
सहस्त्रबाहू जब हठ कीन्हा ।
गौसुत को अति कष्ट था दीन्हा ।।
परशुराम तब किया संहारा ।
सुत, जस अरु संपदा उजारा ।।
वशिष्ठ मातु तुमको है ध्यायो ।
रघुकुल के गुरु पद को पायो ।।
तुम्हरी दिलीप शरन जब आए ।
सुत भगीरथ सो तब पाए ।।
गौसुत श्रृंगी जगन करायो ।
तब प्रकटे प्रभु राम कहायो ।।
गौचरु अंजनी दियहीं समीरा ।
आए धरा पर मारुत वीरा ।।
तुम्हरो रूप है धरती माता ।
तुमहिं सबकी भाग्य विधाता ।।
तैंतिस कोटि देव जस गाई ।
जनक सुता तुम सीता कहाई ।।
सिद्धार्थ भए धेनु शरनागत ।
कहलाए तब बुद्ध तथागत ।।
जब तजि पृथु सब मान दियो ।
भयो वत्स पय पान कियो ।।
गोकर्ण तुम्हारे गर्भ से आता ।
धुंधकारी पापी तर जाता ।।
वा तऊ पूरन शव है काया ।
जापे तुम्हरी परी न छाया ।।
वा नर सम जग में कौन अभागा ।
जा मन ने गौ मॉं को त्यागा ।।
जब बालक पहला शबद उच्चारे ।
मॉं मॉं कह तुमहिं को पुकारे ।।
वृषभानु पिता अरु कीरति माई ।
श्रीराधा बन तुमहिं आईं ।।
श्री हरिदास पियारी श्यामा ।
बृज रज की तुमसे है महिमा ।।
जाको दयाल भयी तू मैया ।
वाके इत उत डोले कन्हैया ।।
गोवर्धन को धारण कीन्हो ।
धेनु चरन रज मुख धरि लीन्हो ।।
तुलसी-धेनु वंदन जहां होई ।
मानहु धाम वृंदावन सोई ।।
तहँ गोविंद नित करत निवासा ।
राखहु मम मन दृढ विश्वासा ।।
गोवत्स करहिं नित नए खेला ।
गौधूरी सम नहीं कोऊ बेला ।।
रुद्रों की माता, तुम गायत्री ।
तीनहुं लोकन पालन करत्री ।।
तुम्हरी शरन विश्वरथ आया ।
ब्रह्म ऋषि विश्वामित्र बनाया ।।
तुम्हरे सुत युगऋषि हितकारी ।
महाकाल अंशा अवतारी ।।
चौबिस वरष तप यही कीन्हा ।
ध्यान हृदय तुम्हरो धरि लीन्हा ।।
तुम बिन नाहीं कोई खिवैया ।
पार करहु मझधार से नैया ।।
मातु दरस तेरो हर क्षन पाऊँ ।
गुरुदेव चरन नख शीश नवाऊँ ।।
यह धेनु चालीसा गावे जोई ।
सब सिद्ध मनोरथ ताके होई ।।
कर दोऊ जोरहुं, परहुं पैंया ।
कृपा करहु श्यामाक्ष की मैया ।।
दोहा-
श्रीकृष्णप्रिया करुणा करहु, मन नहिं रहे कोऊ शोक ।
काम, क्रोध, अज्ञान नसौ, मोहे देहु वास गौलोक ।।
! माँ !
"गौ महिमा वरनी ना जावे । नाहीं पार कोऊ मति पावे।।"