रसखान - काव्यमें गौ और गोपाल
एक कविता के माध्यम से रसखान अपनी भावनाओंको व्यक्त करते हुए कहते हैं कि मैं भी ग्वाल-बालों और सुंदर गायोंके साथ वनमे जाऊंगा और वहाँ तान भरकर गायन करुंगा | वहाँ की गुंजा-मालाओंपर मै गजमुक्ताकी मालाएँ न्यौछावर करता हूँ | वहाँके कुंजोंकी याद आनेपर मेरे प्राण फड़फड़ाने लगते हैं | रत्नजटित सोनेके महलोंसे भी गोबरसे लिपी-पुती मिट्टीकी कुटिया मुझे प्यारी लगती है | ईन बड़े बड़े महलोंसे भी श्रेष्ठ मुझे ब्रज की गायोंके लिए बने बाड़े लगते हैं -
ग्वालन सँग जैबो वन ऐबौ सुगाईन सँग
हेरी तान गैबौ हा हा नैन फरकत हैं |
ह्याँ के गजमोती माल बारौं गुंजमालन पै
कुंज सुधि आए हाय प्रान धरकत हैं ||
गोबार को गारो सुतौ मोहि लगै प्यारौ
कहा भयो महल सोने को जटत मरकत हैं |
मंदिर ते ऊँचे यह मंदिर हैं द्वारिका के
ब्रज के खिरक मेरे हिए खरकत हैं ||
तो अलग धर्म के होने के बाद भी रसखान के भाव कीतने सुंदर है गौमाता के प्रति
वे कहते हैं कि , ऊनको गोबरसे लिपी पुती मिट्टी की कुटिया ऊनको रत्नजटित महलों से भी विशेष प्यारी लगती हैं, और ऊन महलों से भी श्रेष्ठ ऊनके लिए ब्रज की गायोंके लियें बने बाड़े लगते
सांयकाल गोधुलि वेलामें बाँसुरी बजाते मनमोहन गोपाल वनसे वापस लौट रहे हैं , ऊनके साथ गायें और ग्वाल-बाल हैं | ब्रजबालाएँ दिनभर ऊनके वियोगसे व्यकुल रहती हैं, अतः ऊनके दर्शन हेतु वे झरोखोंपर आ जाती हैं, रसखान ईस दृश्य का शब्द चित्र एक सवैयेमें ईसप्रकार वर्णन करते है
आवत हैं बन तैं मनमोहन गोहन संग लसै ब्रज ग्वाला |
बेनु बजावत गावत गीत अमीत इतै करिगौ कछु ख्याला ||
वस्तुतः रसखान ईन सारी रचनाओं मे गोपियों और ग्वालबाल के माध्यम से अपने ही मनोभाव व्यक्त करते हैं ,
वे श्रीकृष्ण के दर्शनको सदैव व्याकुल रहते हैं , और श्री कृष्ण का भी गोपाल वेश ऊनको विशेष प्रिय हैं,
वे सदैव श्री कृष्ण को गोपाल वेश मे ही देखते है,
श्री कृष्ण के केशमे गोरद सनी हुई है, वक्षःस्थल पर वनमाला लहलहा रही हैं , ऊनके आगे आगे सुंदर सुंदर गायें और पीछे पीछे ग्वाल बाल चल रहे हैं, ऊनके वंशी की मधुर ध्वनी चारों ओर फैल रही हैं, ऊनके अधरों पप मंद मंद मुस्कान है,
ईस प्रकार रसखान जी को गोपाल के साथ ऊनकी प्यारी गायें भी विशेष प्रिय थी
तभी ऊनके हर पद, कवित्त , छंद और सवैये आदी मे गौमाता और गोचारण का वर्णन देखने को मिलता हैं,
धन्य है श्रीकृष्ण भक्त कवि रसखान जो कृष्ण के साथ गौमाता से भी अत्यंत प्रेम करते थे...
जय हो भक्तकवि श्री रसखानजी की
जय गौमाता 🌹 जय गोपाल
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