शुक्रवार, 10 नवंबर 2017

गौ सेवा भक्ति

~~~ गौ सेवा भक्ति ~~~

गाय की सबसे बड़ी विशेषता उसमें पाई जाने वाली आध्यात्मिक विशेषता है। हर पदार्थ एवं प्राणी में कुछ अति सूक्ष्म एवं रहस्यमय गुण होते हैं। सतोगुण, रजोगुण और तमोगुण की मात्राएँ सबमें पाई जाती हैं।

जिस प्रकृति के पदार्थों और प्राणियों से हम संपर्क रखते हैं, हमारी अंतःस्थिति भी उसी प्रकार छलने लगती है। हँस पाल कर बढ़ता हुआ सतोगुण और कौआ पाल कर घर में में बढ़ता हुआ तमोगुण कभी भी अनुभव किया जा सकता है। भेड़-बकरी और भैंस को तमोगुण प्रधान माना गया है।                    
गाय में सतोगुण की भारी मात्रा विद्यमान् है। अपने बच्चे के प्रति गाय की ममता प्रसिद्ध है। वह अपने पालन करने वाले तथा उस परिवार को भी बहुत प्यार करती है। जंगलों में शेर, बाघ का सामना होने पर अपने ग्वाले की चारों और से घेर कर गाय झुण्ड बना लेती हैं और अपनी जान पर खेल कर अपने रक्षक को बचाने का त्याग, बलिदान एवं कृतज्ञता आत्मीयता का आदर्श भरा उदाहरण प्रस्तुत करती है। ऐसी आध्यात्मिक विशेषता और किसी प्राणी में नहीं पाई जाती। इस स्तर के उच्च सद्गुण उन लोगों में भी बढ़ते हैं जो उसका दूध पीते हैं।

बैल की परिश्रम-शीलता ओर सहिष्णुता प्रख्यात है। यह विशेषताएँ गौ दुग्ध का उपयोग करने वाले में भी बढ़ती है।
गौरस एक सर्वांगपूर्ण परिपुष्ट आहार है। उसमें मानसिक स्फूर्ति एवं आध्यात्मिक सतोगुणी तत्त्वों का बाहुल्य रहता है,

इसलिए मनीषियों तथा शास्त्रकारों ने-गाय का वर्चस्व स्वीकार करते हुए उसे पूज्य, संरक्षणीय एवं सेवा के योग्य माना है। गाय की ब्राह्मण से तुलना की है और उसे अवध्य-मारे न जाने योग्य घोषित किया गया है। गोपाष्टमी और गोवर्धन दो त्यौहार ही गौरक्षा की और जनसाधारण का ध्यान स्थिर रखने के लिए बनाये गये हैं। चूँकि ये पहली रोटी गाय के लिए निकालने की परम्परा भी इसीलिये है कि गाय को एक कुटुम्ब का प्राणी समझते रहा जाय।

**राजा दिलीप जैसे ऐतिहासिक महापुरुषों की गौ-भक्ति प्रसिद्ध है जिसके कारण उन्होंने सुसन्तति प्राप्त की। आज भी वह तथ्य ज्यों का त्यों है। गाय के संपर्क में रहने वाले, गोरस पीने वाले पति-पत्नि निस्सन्देह सुयोग्य और स्वस्थ सन्तान पैदा कर सकते हैं, उनका पुरुषत्व नन्दी की तरह सुस्थिर बना रहता है। पुराणों में गौ भक्ति और गौ सेवा के लिये बहुत कुछ करने वाले सत्पुरुषों के अगणित उदाहरण विद्यमान् है।

उस समय-शिक्षा की गुरुकुल प्रणाली थी। हर छात्र को आश्रम की गौएं चरानी पड़ती थी और आहार में गोरस की समुचित मात्रा मिलती थी। उस समय के छात्रों की प्रतीक्षा परिपुष्टता एवं सज्जनता की अभिवृद्धि के जो महत्त्वपूर्ण लाभ मिलते थे, उसमें गौ संपर्क भी एक बहुत बड़ा कारण था।

'गौ-चालीसा'

'गौ-चालीसा'

श्री गणेश को सुमिर के, शारद शीश नवाय !
गौ माँ की महिमा कहूँ, कंठ विराजो आय !!

मंदमती मैं मात गौ, मुझको तनिक न ज्ञान !
कृपा करो हे नंदिनी, महिमा करूँ बखान !!
जय जय जय जय जय गौ माता,
कामधेनु सुख शान्ति प्रदाता !!१!!

मात सुरभि हो जग कल्यानी, ऋषि मुनियों ने कथा बखानी !!२!!

तुम ही हो हम सबकी मइया, भवसागर की पार लगइया !!३!!

देवन आई विपत करारी, तुमने माता की रखवारी !!४!!

ऋषि मुनियन पर दानव धावा, सब मिल तुमहिं पुकार लगावा !!५!!

व्याकुल होकर गंगा माई, आकर पास गुहार लगाई !!६!!

गंगा को माँ दिया निवासा, आपहिं लक्ष्मी आई पासा !!७!!

लक्ष्मी को भी तुम अपनाई, सबके जीवन मात बचाई !!८!!

तेंतिस कोटि देव-मुनि आये, सबहीं माता आप बचाये !!९!!

तुमने सबकी रक्षा कीन्हीं, असुर ग्रास हर जीवन दीन्हीं !!१०!!

माता तुम हो दिव्य स्वरूपा, तव महिमा सब गायें भूपा !!११!!

देव दनुज मिल मथे नदीशा, पाये चौदह रतन मनीषा !!१२!!

सागर को मिल देव मथाये, कामधेनु रत्नहिं तब पाये !!१३!!

कामधेनु के पांच प्रकारा, सेवा से जायें भव पारा !!१४!!

सुभद्रा नंदा सुरभि सुशीला, बहुला धेनु काम की लीला !!१५!!

जो जन सिर गोधूलि लगायें, ताके पाप आप कट जायें !!१६!!

गो चरणन मा तीर्थ निवासा, गौ-भक्ति सम नहीं उपवासा !!१७!!

गौ सेवा है मोक्ष कि सीढी, धन बल यश पावहिं सब पीढ़ी !!१८ !!

विद्या लक्ष्मी आवहिं पासा, कामधेनु कर जहाँ निवासा !!१९!!

भोलेनाथ श्राप जब पाये , सीधे वह गोलोक सिधाये !!२०!!

शिव करन सुरभि की स्तुति लागे, परिकरमा कर माँ के आगे !!२१!!

हाँथ जोड़ शिव बात बताई,
तपती देह श्राप से माई !!२२!!

तोरी शरण मात मैं आया,
शीतल कर दो मेरी काया !!२३!!

सुरभि देह में प्रविशे शंकर,
जग कोलाहल मचा भयंकर !!२४!!

तब सबहिं देव मिल स्तुति गाये,
पता पाय गोलोक सिधाये !!२५!!

सूर्य समान सुरभि सुत देखा,
नील नाम था तेज विशेषा !!२६!!

गो सेवक थे कृष्ण मुरारी,
जिनकी महिमा सबसे न्यारी !!२७!!

कान्हा वन में गाय चराते,
दूध दही पी माखन खाते !!२८!!

जबहिं कृष्ण बाँसुरी बजायें,
बछड़े गाय लौट आ जायें !!२९!!

जिस घर हो माँ तेरा वासा,
दुःख पीड़ा किम आवहिं पासा !!३०!!

हो जहँ कामधेनु की पूजा,
पुण्य नहीं इससे बड़ दूजा !!३१!!

माता तुमने ऋषि मुनि तारे,
देव मनुज के भाग्य सँवारे !!३२!!

वेद पुराणों में तव गाथा,
युगों युगों से है तव साथा !!३३!!

तुमहिं मनुज के भाग्य सँवारे,
अंत काल वैतरिणी तारे !!३४!!

तव महिमा किम गाऊँ माते,
तुममे चारो धाम समाते !!३५!!

पंचगव्य की महिमा न्यारी,
तुमसे ही है दुनिया सारी !!३६!!

प्रातकाल जो दर्शन पायें ,
बिगड़े काज आप बन जायें !!३७!!

हाँथ जोड़ जो शीश नवाये,
बुरी बला से मात बचाये !!३८!!

जो जन गौ चालीसा गाये,
सुख सम्पति ताके घर आये !!३९!!

'चेतन' है माँ तेरा दासा,
मात ह्रदय में करो निवासा !!४०!!

गौ चालीसा जो पढ़े, नित्य नियम उठ प्रात !
ज्ञान संग धन यश बढ़े, कष्ट हरे गौ मात !!
गौ वंदन जो कर लिये, पूरण चारो धाम !
तरणि तीर कान्हा मिले, पाये सरयू राम !!

गौमाता का भजन

_/\_ गाय भजन _/\_

कृष्ण वहीं हैं भोग लगाते,
जहां रहे गौ माता,
खुशी जहां गौ माता रहती,
सब सदगुन वहां आता
कृष्ण वहीं है....

कृष्ण का है गौऔं में डेरा,
बनता वहां गायों का घेरा,
रस भी होता रास भी होता,
अनन्द न हृदय समाता
कृष्ण वहीं हैं...

भक्ति की गाय पहली सीढी
तर जायेंगी सातों पीढी
पापी भी जो शरण में आये,
भव सागर तर जाता
कृष्ण वहीं हैं..

गाय को जानों गाय को मानों,
कहां भगवान यह पहचानों,
जानें वहीं जिसे राम जनायें,
जन्म सफल हो जाता
कृष्ण वहीं हैं...

गोसेवा – हरि सेवा भगवत्सेवा

गोसेवा – हरि सेवा भगवत्सेवा
        

जिन क्षेत्रों में अधिक गोसमुदाय होता है, वहाँ रोग कम पनपते हैं।

जिस स्थान पर गाय, बैल, बछड़ा आदि मूत्र का विसर्जन करते हैं, उस स्थान पर दीमक नहीं लगती। गाय के गोबर की खाद सभी खादों से अधिक उपजाउ और भूमि के लिये रसवर्धक होती है।

बरसात के दिनों में फसलरहित खेतों में गायों के अधिक घूमने-चरने से उन खेतों में रबी की फसल अधिक पैदा होती है और वह फसल रोगरहित होती है। गोमूत्र से जो औषधि बनती है, वह उदर रोगों की अचूक दवा होती है। खाली पेट थोड़ा-सा गोमूत्र पीने से बीमारियाँ नहीं होती हैं।

गोमूत्र में आँवला, नींबू, आम की गुठली तथा बबूल की पत्ती इत्यादि के गुण होते हैं। नींबू रस पेट में जाकर पेट की गंदगी को चुनकर पेट को साफ करता है, वैसे ही गोमूत्र से मुँह, गला एवं पेट शुद्ध होता है।
जिस भूमि पर गायें नहीं चरतीं, वहाँ पर स्वाभाविक ही घास का पैदा होना कम हो जाता है।

भूमि पर उगी हुई घास गाय के चरने से जल्दी बढ़ती एवं घनी होती है। बीजयुक्त पकी घास खाकर भूमि पर विचरण करके चरते हुए गायों के गोबर के द्वारा एक भूमि से दूसरी भूमि (स्थान) पर घास के बीजों का स्थानांतरण होता रहता है।

आज के समय में वनों के अधिक नष्ट होने का कारण भी गोवंश और गोपालकों की कमी ही है, क्योंकि गोपालकों की संख्या अधिक होती तो गायों की संख्या भी अधिक होती और अधिक गायों को चराने के लिये गोपालक वनों को जाते, जिससे वनों की सुरक्षा वे स्वयं करते तो वनों की बहुत वृद्धि होती, किंतु अब ऐसा न होने से वन असुरक्षित हो गये हैं।

गोसेवा से जितना लौकिक लाभ है, उतना ही अलौकिक लाभ भी है। जो गोसेवा निष्कामभाव से की जाती है अर्थात् पूरी उदारता से की जाती है, उसका सीधा सम्बन्ध भगवान की सेवा से ही होता है। इसलिये गायों की सेवा परम लाभ का साधन है।

गाय स्वयं पवित्र है, इसलिये उसका दूध भी परम पवित्र है। गाय अपवित्र वस्तु को भी पवित्र बना देती है, क्योंकि उसके शरीर में पवित्रता के अलावा और कुछ है ही नहीं।

गौ_माता_बिना_जीवन_नहि

गौ_माता_बिना_जीवन_नहि         

प्राचीन भारतीय गुरूकुल शिक्षा-व्यवस्था में गुरू की सेवा के साथ-साथ गाय की सेवा भी आवश्यक थी। मुगल सम्राट बाबर ने तो राज्य को स्थायी रखने का मुख्य साधन गोवंश की रक्षा जानते हुए अपने पुत्र हुमायूँ को गोरक्षा की विशेष आज्ञा भी दी थी।

गोसेवा के महात्म्य की चर्चा करते हुए कहा गया है- ‘जो पुण्य तीर्थों के स्नान में है, जो पुण्य ब्राह्मणों को भोजन कराने में है, जो पुण्य व्रतोपवास तथा तपस्या द्वारा प्राप्त होता है,

जो पुण्य श्रेष्ठ दान देने में है और जो पुण्य देवताओं की अर्चना में है, वह पुण्य तो केवल गाय की सेवा से ही तुरन्त प्राप्त हो जाता है।’

गाय के महात्म्य की चर्चा करते हुए कहा गया है कि ‘जिस गाय की पीठ में ब्रह्मा, गले में विष्णु, मुख में रुद्र, मध्य में समस्त देवगण, रोमकूपों में महर्षिगण, पूँछ में नाग, खुराग्रों में आठों कुलपर्वत, मूत्र में गंगा आदि नदियाँ, दोनों नेत्रों में सूर्य और चन्द्रमा तथा स्तनों में वेद निवास करते हैं, वह गाय मुझे वर देने वाली हो।’

जीवनीशक्ति गोदुग्ध की महिमा में बताया गया है कि यदि पृथ्वी तल पर गाय का दूध न होता तो ईश्वर की संतानों का पालन-पोषण एवं वृद्धि नहीं हो पाती। दैवयोग से किसी का जीवन रह भी जाता तो वह रूखा, वीर्यहीन, शक्तिहीन, अतिकृश और कुरूप होता।

महाभारत के अनुशासन पर्व में महर्षि च्यवन ने राजा नहुष से कहा- हे राजन्! मैं इस संसार में गौओं के समान कोई दूसरा धन नहीं देखता हूँ। पौराणिक मत है कि जगत में सर्वप्रथम वेद, अग्नि, गाय तथा ब्राह्मण की रचना हुई। वेदोक्ति है कि गाय सम्पूर्ण ब्राह्मण का स्वरूप है।

आनन्द_की_भंडार_गौ_माता

आनन्द_की_भंडार_गौ_माता

भगवान की भी पूज्या सेव्या उपास्या सर्वेश्वरी जगद्माता ही सात्विक्ता का भंडार हैं...

भारतीय देसी गाय माता की महिमा का बखान करना किसी के भी वश में नहि , क्योकिं जैसे हरि अनन्त हैं वैसे ही उनकी उपास्या गौ माता भी अनन्त है...
          संसार से कामों से मानसिक दुखी, चिंता में रहने के कारण जीवन को दुखमय जीते हैं...
लेकिन अगर वे आनन्द की अनुभुति चाहते है..दुख को कम करना चाहते है, मिटाना चाहते है तो...  गौ माता के सानिध्य प्राप्त करें....
       कुछ ही दिनों में बिना दवा के आपकी मानस्कि स्थिती मजबूत हो जायेगी.... 
   हमारे अंदर नकरात्मक विचार बहुत आते हैं जो हमें कमजोर करते है..

लेकिन गौ माता के सानिध्य से, सेवा से हमारे अंदर सातविक्ता, शांती आती है...

काफी बातें कहने सुनने से समझ भी नहि आती...इसलिये कुछ बाते करके भी देखनी चाहिये....