गौरक्षा - गाय की सुरक्षा : सर्वस्व की रक्षा
“गावो विश्वस्य मातर |”
गौमाता जो आजीवन हमें अपने दूध- दही- घी आदि से पोषित करती है| अपने इन सुंदर उपहारों से जीवनभर हमारा हित करती है| ऐसी गौमाता की महानता से अनभिज्ञ होकर मात्र उसके पालन-पोषण का खर्च वहन ना कर पाने के बहाने उन्हें कत्लखानों के हवाले करना विकास का कौन सा मापदंड है ? क्या गौमाता के प्रति हमारा कोई कर्त्तव्य नहीं है ?
पंडित मदन मोहन मालवीयजी ने कहा है: ’यदि हम गौओं की रक्षा करेंगे तो गौएँ भी हमारी रक्षा करेंगी |’
सदियों से अहिंसा का पुजारी भारतवर्ष आज हिंसक और मांस निर्यातक देश के रूप में उभरता जा रहा है| यह बड़ी विडम्बना है कि एशिया का सबसे बड़ा कत्लखाना अन्य इस्लामिक देशों में नहीं बल्कि भारत के महाराष्ट्र प्रान्त में है, जहाँ हजारों गायें रोज कटती है| दूसरी अल कबीर गोवधशाला आंध्रप्रदेश में है | यहाँ रोज 6 हजार गौएँ , इससे दुगुनी भैसें तथा पड़वे काटे जाते है| इसका लगभग 30,000 टन मांस विदेशों में निर्यात होता है |
गौमाता जो आजीवन हमें अपने दूध- दही- घी आदि से पोषित करती है| अपने इन सुंदर उपहारों से जीवनभर हमारा हित करती है| ऐसी गौमाता की महानता से अनभिज्ञ होकर मात्र उसके पालन-पोषण का खर्च वहन ना कर पाने के बहाने उन्हें कत्लखानों के हवाले करना विकास का कौन सा मापदंड है ? क्या गौमाता के प्रति हमारा कोई कर्त्तव्य नहीं है ?
पंडित मदन मोहन मालवीयजी ने कहा है: ’यदि हम गौओं की रक्षा करेंगे तो गौएँ भी हमारी रक्षा करेंगी |’
सदियों से अहिंसा का पुजारी भारतवर्ष आज हिंसक और मांस निर्यातक देश के रूप में उभरता जा रहा है| यह बड़ी विडम्बना है कि एशिया का सबसे बड़ा कत्लखाना अन्य इस्लामिक देशों में नहीं बल्कि भारत के महाराष्ट्र प्रान्त में है, जहाँ हजारों गायें रोज कटती है| दूसरी अल कबीर गोवधशाला आंध्रप्रदेश में है | यहाँ रोज 6 हजार गौएँ , इससे दुगुनी भैसें तथा पड़वे काटे जाते है| इसका लगभग 30,000 टन मांस विदेशों में निर्यात होता है |
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