गोचर-भूमि छोड़ने की महिमा
गोप्रचारं यथाशक्ति यो वै त्यजति हेतुना।
दिने दिने ब्रह्मभोज्यं पुण्यं तस्य शताधिकम्।।
तस्माद् गवां प्रचारं तू मुक् त्वा स्वर्गात्र हीयते।
यश्छिनत्ति द्रुम पुण्यं गोप्रचारं छिनत्यपि।।
तस्यैकविंशपुरुषाः पच्यन्ते रौरवेषु च।
गोचारध्नं ग्रामगोपः शक्ति ज्ञात्वा तू दण्डयेत्।।
(पद्मपुराण,सृष्टि० ५१।३८-४०)
'जो मनुष्य गौओं के लिए यथाशक्ति गोचरभुमि छोड़ता है, उसको प्रतिदिन सौसे अधिक ब्राह्मण भोजनका पुण्य प्राप्त होता है। गोचर भूमि छोड़नेवाला कोई भी मनुष्य स्वर्ग भ्रष्ट नहीं होता। जो मनुष्य गोचरभूमि रोक लेता है और पवित्र वृक्षों को काट डालता है। उसकी इक्कीस पीढ़ी रौरव नरक में गिरती है। जो व्यक्ति गौओंके चरने में बाधा देता है, समर्थ ग्रामरक्षक को चाहिए कि उसे दण्ड दे। '
गोप्रचारं यथाशक्ति यो वै त्यजति हेतुना।
दिने दिने ब्रह्मभोज्यं पुण्यं तस्य शताधिकम्।।
तस्माद् गवां प्रचारं तू मुक् त्वा स्वर्गात्र हीयते।
यश्छिनत्ति द्रुम पुण्यं गोप्रचारं छिनत्यपि।।
तस्यैकविंशपुरुषाः पच्यन्ते रौरवेषु च।
गोचारध्नं ग्रामगोपः शक्ति ज्ञात्वा तू दण्डयेत्।।
(पद्मपुराण,सृष्टि० ५१।३८-४०)
'जो मनुष्य गौओं के लिए यथाशक्ति गोचरभुमि छोड़ता है, उसको प्रतिदिन सौसे अधिक ब्राह्मण भोजनका पुण्य प्राप्त होता है। गोचर भूमि छोड़नेवाला कोई भी मनुष्य स्वर्ग भ्रष्ट नहीं होता। जो मनुष्य गोचरभूमि रोक लेता है और पवित्र वृक्षों को काट डालता है। उसकी इक्कीस पीढ़ी रौरव नरक में गिरती है। जो व्यक्ति गौओंके चरने में बाधा देता है, समर्थ ग्रामरक्षक को चाहिए कि उसे दण्ड दे। '
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