बुधवार, 21 अक्तूबर 2020

गोरक्षा-सम्बन्धी विशेष बात


गोरक्षा-सम्बन्धी विशेष बात
(साभार: साधक संजीवनी)
 मनुष्योंके लिये गाय सब दृष्टियोंसे पालनीय है। गायसे अर्थ, धर्म, काम और मोक्ष—इन चारों पुरुषार्थोंकी सिद्धि होती है। आजके अर्थप्रधान युगमें तो गाय अत्यन्त ही उपयोगी है। गोपालनसे, गायके दूध, घी, गोबर आदिसे धनकी वृद्धि होती है। हमारा देश कृषिप्रधान है। अत: यहाँ खेतीमें जितनी प्रधानता बैलोंकी है, उतनी प्रधानता अन्य किसीकी भी नहीं है। भैंसेके द्वारा भी खेती की जाती है, पर खेतीमें जितना काम बैल कर सकता है, उतना भैंसा नहीं कर सकता। भैंसा बलवान् तो होता है, पर वह धूप सहन नहीं कर सकता। धूपमें चलनेसे वह जीभ निकाल देता है, जबकि बैल धूपमें भी चलता रहता है। कारण कि भैंसेमें सात्त्विक बल नहीं होता, जबकि बैलमें सात्त्विक बल होता है। बैलोंकी अपेक्षा भैंसे कम भी होते हैं। ऐसे ही ऊँटसे भी खेती की जाती है, पर ऊँट भैंसेसे भी कम होते हैं और बहुत मँहगे होते हैं। खेती करनेवाला हरेक आदमी ऊँट नहीं खरीद सकता। आजकल अच्छे-अच्छे जवान बैल मारे जानेके कारण बैल भी मँहगे हो गये हैं, तो भी वे ऊँट जितने मँहगे नहीं हैं। यदि घरोंमें गायें रखी जायँ तो बैल घरोंमें ही पैदा हो जाते हैं, खरीदने नहीं पड़ते। विदेशी गायोंके जो बैल होते हैं, वे खेतीमें काम नहीं आ सकते; क्योंकि उनके कन्धे न होनेसे उनपर जुआ नहीं रखा जा सकता।

 गाय पवित्र होती है। उसके शरीरका स्पर्श करनेवाली हवा भी पवित्र होती है। गायके गोबर-गोमूत्र भी पवित्र होते हैं। गोबरसे लिपे हुए घरोंमें प्लेग, हैजा आदि भयंकर बीमारियाँ नहीं आतीं। इसके सिवाय युद्धके समय गोबरसे लिपे हुए मकानोंपर बमका उतना असर नहीं होता, जितना सीमेन्ट आदिसे बने हुए मकानोंपर होता है। गोबरमें जहर खींचनेकी विशेष शक्ति होती है। काशीमें कोई व्यक्ति साँप काटनेसे मर गया। लोग उसकी दाह-क्रिया करनेके लिये उसको गंगाके किनारे ले गये। वहाँपर एक साधु रहते थे। उन्होंने पूछा कि इस व्यक्तिको क्या हुआ? लोगोंने कहा कि यह साँप काटनेसे मरा है।

 साधुने कहा कि यह मरा नहीं है, तुमलोग गायका गोबर ले आओ। गोबर लाया गया। साधुने उस व्यक्तिकी नासिकाको छोड़कर उसके पूरे शरीरमें (नीचे-ऊपर) गोबरका लेप कर दिया। आधे घण्टेके बाद गोबरका फिर दूसरा लेप किया। इससे उस व्यक्तिके श्वास चलने लगे और वह जी उठा। हृदयके रोगोंको दूर करनेके लिये गोमूत्र बहुत उपयोगी है। छोटी बछड़ीका गोमूत्र रोज तोला-दो-तोला पीनेसे पेटके रोग दूर हो जाते हैं। एक सन्तको दमाकी शिकायत थी, उनको गोमूत्र-सेवनसे बहुत फायदा हुआ है। आजकल तो गोबर और गोमूत्रसे अनेक रोगोंकी दवाइयाँ बनायी जा रही हैं। गोबरसे गैस भी बनने लगी है।

 खेतोंमें गोबर-गोमूत्रकी खादसे जो अन्न पैदा होता है, वह भी पवित्र होता है। खेतोंमें गायोंके रहनेसे, गोबर और गोमूत्रसे जमीनकी जैसी पुष्टि होती है, वैसी पुष्टि विदेशी रासायनिक खादोंसे नहीं होती। जैसे, एक बार अंगूरकी खेती करनेवालेने बताया कि गोबरकी खाद डालनेसे अंगूरके गुच्छे जितने बड़े-बड़े होते हैं, उतने विदेशी खाद डालनेसे नहीं होते। विदेशी खाद डालनेसे कुछ ही वर्षोंमें जमीन खराब हो जाती है अर्थात् उसकी उपजाऊ-शक्ति नष्ट हो जाती है। परन्तु गोबर-गोमूत्रसे जमीनकी उपजाऊ-शक्ति ज्यों-की-त्यों बनी रहती है। विदेशोंमें रासायनिक खादसे बहुत-से खेत खराब हो गये हैं, जिन्हें उपजाऊ बनानेके लिये वे लोग भारतसे गोबर मँगवा रहे हैं और भारतसे गोबरके जहाज भरकर विदेशोंमें जा रहे हैं।

 हमारे देशकी गायें सौम्य और सात्त्विक होती हैं। अत: उनका दूध भी सात्त्विक होता है, जिसको पीनेसे बुद्धि तीक्ष्ण होती है और स्वभाव शान्त, सौम्य होता है। विदेशी गायोंका दूध तो ज्यादा होता है, पर उन गायोंमें गुस्सा बहुत होता है। अत: उनका दूध पीनेसे मनुष्यका स्वभाव क्रूर होता है। भैंसका दूध भी ज्यादा होता है, पर वह दूध सात्त्विक नहीं होता। उससे सात्त्विक बल नहीं आता। सैनिकोंके घोड़ोंको गायका दूध पिलाया जाता है, जिससे वे घोड़े बहुत तेज होते हैं। एक बार सैनिकोंने परीक्षाके लिये कुछ घोड़ोंको भैंसका दूध पिलाया, जिससे घोड़े खूब मोटे हो गये। परन्तु जब नदी पार करनेका काम पड़ा तो वे घोड़े पानीमें बैठ गये। भैंस पानीमें बैठा करती है; अत: वही स्वभाव घोड़ोंमें भी आ गया। ऊँटनीका दूध भी निकलता है, पर उस दूधका दही, मक्खन होता ही नहीं। उसका दूध तामसी होनेसे दुर्गति देनेवाला होता है। स्मृतियोंमें ऊँट, कुत्ता, गधा आदिको अस्पृश्य बताया गया है।

 सम्पूर्ण धार्मिक कार्योंमें गायकी मुख्यता है। जातकर्म, चूड़ाकर्म, उपनयन आदि सोलह संस्कारोंमें गायका, उसके दूध, घी, गोबर आदिका विशेष सम्बन्ध रहता है। गायके घीसे ही यज्ञ किया जाता है। स्थान-शुद्धिके लिये गोबरका ही चौका लगाया जाता है। श्राद्ध-कर्ममें गायके दूधकी खीर बनायी जाती है। नरकोंसे बचनेके लिये गोदान किया जाता है। धार्मिक कृत्योंमें 'पंचगव्य’ काममें लाया जाता है, जो गायके दूध, दही, घी, गोबर और गोमूत्र—इन पाँचोंसे बनता है।

 कामनापूर्तिके लिये किये जानेवाले यज्ञोंमें गायका घी आदि काममें आता है। रघुवंशके चलनेमें गायकी ही प्रधानता थी। पौष्टिक, वीर्यवर्धक चीजोंमें भी गायके दूध और घीका मुख्य स्थान है।

 निष्कामभावसे गायकी सेवा करनेसे मुक्ति होती है। गायकी सेवा करनेमात्रसे अन्त:करण निर्मल होता है। भगवान् श्रीकृष्णने भी बिना जूतीके गोचारणकी लीला की थी, इसलिये उनका नाम 'गोपाल’ पड़ा। प्राचीन-कालमें ऋषिलोग वनमें रहते हुए अपने पास गाय रखा करते थे। गायके दूध, घीसे उनकी बुद्धि प्रखर, विलक्षण होती थी, जिससे वे बड़े-बड़े ग्रन्थोंकी रचना किया करते थे। आजकल तो उन ग्रन्थोंको ठीक-ठीक समझनेवाले भी कम हैं। गायके दूध-घीसे वे दीर्घायु होते थे। इसलिये गायके घीका एक नाम 'आयु’ भी है। बड़े-बड़े राजालोग भी उन ऋषियोंके पास आते थे और उनकी सलाहसे राज्य चलाते थे।

 गोरक्षाके लिये बलिदान करनेवालोंकी कथाओंसे इतिहास, पुराण भरे पड़े हैं। बड़े भारी दु:खकी बात है कि आज हमारे देशमें पैसोंके लोभसे रोजाना हजारोंकी संख्यामें गायोंकी हत्या की जा रही है! अगर इसी तरह गो-हत्या चलती रही तो एक समय गोवंश समाप्त हो जायगा। जब गायें नहीं रहेंगी, तब क्या दशा होगी, कितनी आफतें आयेंगी—इसका अन्दाजा नहीं लगाया जा सकता। जब गायें खत्म हो जायँगी, तब गोबर नहीं रहेगा और गोबरकी खाद न रहनेसे जमीन भी उपजाऊ नहीं रहेगी। जमीनके उपजाऊ न रहनेसे खेती कैसे होगी? खेती न होनेसे अन्न तथा वस्त्र (कपास) कैसे मिलेगा? लोगोंको शरीर-निर्वाहके लिये अन्न-जल और वस्त्र भी मिलना मुश्किल हो जायगा। गाय और उसके दूध, घी, गोबर आदिके न रहनेसे प्रजा बहुत दु:खी हो जायगी। गोधनके अभावमें देश पराधीन और दुर्बल हो जायगा। वर्तमानमें भी अकाल, अनावृष्टि, भूकम्प, आपसी कलह आदिके होनेमें गायोंकी हत्या मुख्य कारण है। अत: अपनी पूरी शक्ति लगाकर हर हालतमें गायोंकी रक्षा करना, उनको कत्लखानोंमें जानेसे रोकना हमारा परम कर्तव्य है।

 गायोंकी रक्षाके लिये भाई-बहनोंको चाहिये कि वे गायोंका पालन करें, उनको अपने घरोंमें रखें। गायका ही दूध-घी खायें, भैंस आदिका नहीं। घरोंमें गोबर-गैसका प्रयोग किया जाय। गायोंकी रक्षाके उद्देश्यसे ही गोशालाएँ बनायी जायँ, दूधके उद्देश्यसे नहीं। जितनी गोचर-भूमियाँ हैं, उनकी रक्षा की जाय तथा सरकारसे और गोचर-भूमियाँ छुड़ाई जायँ। सरकारकी गोहत्या-नीतिका विरोध किया जाय और सरकारसे अनुरोध किया जाय कि वह देशकी रक्षाके लिये पूरे देशमें तत्काल पूर्णरूपसे गोहत्या बन्द करे

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