गायों के भरण पोषण का भार ठाकुर जी ने हम मनुष्यों को सौंपा है इससे हम पल्ला नहीं झाड़ सकते
🚣🏻♀️ एक मल्लाह नाविक नाव खेकर अपने एवं अपने परिवार का भरण पोषण करता था एक बार बारिश के मौसम में उसको कुछ परदेसी यात्रियों को नदिया के पार पहुंचाना था परदेसियों ने मौसम का रुख देखकर उस पार जाने में असमर्थता व्यक्त की लेकिन नाविक ने उन्हें कुशलतापूर्वक उस पार पहुंचाने का आश्वासन देकर अपनी नाव में बिठा लिया जैसे ही नाव बीच धार में पहुंची तेज हवाएं चलने लगी जिस से नाव में भय का वातावरण निर्मित हो गया नाविक को लग गया था कि आज नाव नहीं बच पाएगी इतने यात्रियों के जीवन का भार मेरे ऊपर है अब क्या करूं जब मेरे ही प्राण खतरे में है जैसे तैसे मैं अपने प्राण तो बचाऊ यह सोचकर उसने यात्रियों से कहा कि अपने अपने प्राण बचाओ मैं तो चला और यह कह कर उसने नदी में छलांग लगा दी मल्लाह के नदी में कूदने से यात्री और ज्यादा भयभीत हो गए थोड़ी देर में तेज बारिश शुरू हो गई और मल्लाह सहित सारे के सारे यात्री नदी में डूब कर मर गए यह प्रकरण जब यमराज के पास पहुंचा तो यमराज ने इस घटना को संज्ञान में लेकर चित्रगुप्त से पूछा की बताओ चित्रगुप्त इतने जनों की मृत्यु का पाप किसके सिर पर मढ़ा जाए चित्रगुप्त ने न्यायोचित विचार कर उत्तर दिया कि यह पाप इस मल्लाह के सिर पर ही मढा जाना चाहिए इस पर मल्लाह ने गिड़गिड़ा कर अनुनय विनय करते हुए कहा कि महाराज मेरे लाख प्रयत्न करने पर भी नाव को मैं बचा नहीं पाता इसलिए मैं अपने प्राण बचाने के लिए नदी में कूद गया इसमें मेरी क्या गलती है तब यमराज ने कहा इसमें सारी गलती तुम्हारी है जैसे ही तुमने इन यात्रियों को अपनी नाव में बिठाया इन सबके प्राणों का भार तुम्हारे ऊपर आ गया था तुम्हारा नैतिक कर्तव्य बनता था की इनके प्राणों की रक्षा करते लेकिन इनकी प्राण रक्षा की थोड़ी सी भी कोशिश किए बिना ही तुम यह समझ कर पानी में कूद गए की अब बचना मुश्किल है अगर तुम नाव को तूफान से बचाने की कोशिश में मारे जाते तो तुम्हारा कोई दोष नहीं होता किंतु दूसरे के प्राणों का भार तुम्हारे ऊपर होने पर भी तुमने अपने कर्तव्य को नहीं समझा और स्वयं के प्राण बचाने के चक्कर में तुमने इन सबके जीवन के साथ खिलवाड़ किया अतः इन सारे यात्रियों की अकाल मृत्यु का पाप तुम्हारे सिर पर मढा जाकरतुम्हें घोर यम यातना का दंड दिया जाता है भैया यह कहानी तो यहीं समाप्त हो गई लेकिन इस कहानी में एक संदेश छुपा हुआ है कि हम मनुष्यों को धरती पर गौ माता के भरण पोषण का भार ठाकुर जी ने सौंपा है लेकिन आज हम अपनी स्वार्थ पूर्ति के वशीभूत होकर इस उत्तरदायित्व से उस मल्लाह की तरह ही विमुख होकर गौ माता को मौत के मुंह में डाल रहे हैं जरा सोचिए जब हम भगवान के यहां जाएंगे और भगवान हमसे यह पूछेंगे कि मैंने जो तुम्हें गौ माता के भरण पोषण का भार तुम्हें सौंपा था तुमने तो गौ माता को जीते जी स्वयं की स्वार्थ सिद्धि के वशीभूत होकर मार दिया भाइयों इस पाप से हम बच नहीं सकते इसलिए हमारा यह नैतिक कर्तव्य बनता है की इस संसार में रहते हुए हमारे आस पड़ोस में जो भी गऊ माता भूखी प्यासी घूम रही है उन्हें कभी भी भूख से बीमारी से मरने नहीं देना है क्योंकि भगवान के घर में जब न्याय होगा तो इसके जिम्मेदार उस मल्लाह की तरह हम ही ठहराए जाएंगे
जय गौ माता जय गोपाल