गौ के समान उपकारी जीव मनुष्य के लिये दूसरा कोई भी नहीं है
(परम श्रद्धेय गोऋषि स्वामी श्री दत्तशरणानंदजी महाराज)
ब्रह्म सूर्यसमं ज्योतिद्र्यौः समुद्रा समँसरः।
इन्द्र पृथिव्यै वर्षीयान् गोस्तु मात्रा न विद्यते।। (यजुर्वेद 23/48)
जिस ब्रह्मविद्या द्वारा मनुष्य परम सुख को प्राप्त करता है, उसकी सूर्य से उपमा दी जा सकती है। इसी प्रकार द्युलोक की समुद्र से तथा विस्तीर्ण पृथ्वी की इन्द्र से उपमा दी जा सकती है। किन्तु प्राणी मात्र के अनन्त उपकारों को अकेली सम्पन्न करने वाली गौ की किसी से उपमा नहीं दी जा सकती गो निरूपमा है, वास्तव में मनुष्य के लिये गौ के समान उपकारी जीव दूसरा कोई भी नहीं है।
अतएव सभी मानवों को गोमाता की सेवा करने के लिये वेद भगवान का आदेश हुआ। जो व्यक्ति सब प्रकार से अपना कल्याण चाहता हो वह वेद भगवान के आदेश का पालन करे।
श्रुती स्मृति के प्रमाणानुसार पूज्या गोमाता साक्षात सर्वदेव विग्रह है। पूज्या गोमाता की सेवा से, स्मरण से, उनके सान्ध्यि से तथा पंचगव्य सेवन से मानव में देवत्व का अवतरण होता है। क्योंकि पूज्या गोमाता सत्व का समुद्र है। मन, वाणी तथा कर्म से गोमाता की सेवा करने वाला व्यक्ति पृथ्वी का साक्षात देवता हो जाता है। सत्व से ही देवत्व का निर्माण होता है। मानव का आहार शुद्ध ऊर्जावान एवं सत्व युक्त हो तो मानव देव कोटी प्राप्त कर सकता है। एक मात्र पूज्या गोमाता ही मानव जाति को ऐसा पवित्रतम, ऊर्जावान दिव्य आहार प्रदान कर सकती है।
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