बुधवार, 29 जनवरी 2020

गोबर के कंडो का लाभ

धार्मिक मान्यताओं के अनुसार गोबर के कंडे बहुत ही लाभकारी होते हैं। घर में यदि इनका उपयोग किया जाए तो कोई बाधा आपको परेशान नहीं कर सकती है। घर में गोबर के कंडे का धुंआ करने से कभी भी नकारात्मक दोष उत्पन्न नहीं होते हैं। साथ ही जो भी नकारात्मक दोष घर में होते भी हैं वे भी दूर होते हैं। 

आइये जानते हैं कि कैसे गोबर के कंडे इतने लाभकारी हैं।

1.वास्तु के अनुसार गोबर के कंडों का धुंआ घर में करने से परिवार के सदस्यों के जीवन को नकारात्मक शक्ति प्रभावित नहीं करती है।

2.घर या मंदिर में गोबर के उपले या कंड़े जलाने से इसके शुभ परिणाम घर में सकारात्मक ऊर्जा का संचय करते हैं जिससे परिवार के लोगों में आपसी प्रेम बना रहता है।

3.गोबर के कंडे को जलाकर उसमें कपूर और देसी घी डालकर उसका धुंआ घर में करना अच्छा माना जाता है। इससे घर में भगवान का वास होता है।

4.गोबर के कंड़े को जलाकर उसपर पीली सरसों डालकर घर में धुंआ करें साथ ही घर में रूपए- पैसे रखने के स्थान पर धुंआ करें इसका भी शुभ फल प्राप्त होता है।

5.घर में गोबर के कंड़े का धुंआ करने से घर में धन की बरकत होती हैं और साथ ही धन के व्यर्थ खर्च से भी बचा जा सकता है।

6.मां दुर्गा की पूजा के दौरान भी गोबर के कंड़ों का धुंआ करना बहुत ही शुभ और लाभकारी माना जाता है। नवरात्रों के दौरान गोबर के कंड़े का प्रयोग किया जाता है।

7.मां दुर्गा की पूजा में गोबर के कंडे को जलाकर उसमें कपूर,बताशे और लौंग अर्पण करना अच्छा माना जाता है इससे मां दुर्गा का आशीर्वाद प्राप्त होता है।

8.वहीं नियमित रूप से घर में गोबर के उपले जलाने से किसी भी प्रकार के वास्तु दोष का अंत करने में मदद मिलती है और अवश्य लाभ मिलता है।

9.गाय के गोबर को शास्त्रों के अनुसार बहुत ही शुद्ध और लाभकारी माना जाता है इसलिए पूजा के दौरान इसका प्रयोग करने से अवश्य ही लाभ मिलता है।

10.सांय काल गोबर के उपले का धुंआ घर में करना चाहिए इससे घर में लक्ष्मी जी का वास होता है और तमाम परेशानियां समाप्त होती हैं।

मंगलवार, 28 जनवरी 2020

"गोपालन का महत्व"

"गोपालन का महत्व"
★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★
पोस्ट को ध्यान से पढ़े भाव पूर्ण हे

पुष्टि मार्ग ही एक ऐसो मार्ग है जामे गोपालन।  गो लालन गौसंवर्धन होय हैं ।प्रभु के सम गायन की सेवा होय हैं ताके कई पद हू गवै हैं।तथा प्रभु नंदकुमार की समस्त जीवन क्रियाहू गौचारण मैं भई ।वहीं गौ लीला सो आपको नाम गोपाल भयो ।जगदगुरु वल्लभाचार्य महाप्रभु ने सर्वप्रथम छल्ला बेचिके गाय मगाय प्रभु सेवा में राखी तथा अनेक गायन को पालन आज हू होय हैं ।सर्वप्रथम गाय को दूध आरोग केआपकी ऊध्र्र्व भुजा प्रगटी ।
गोप गण गायन की अष्टान्ग योग सो सेवा करत हैं तासों आठम तिथि को गोपूजन करिके गाय चरावन पधारे । 
तीन दिना ही गौचारण के पद क्यों ❓  
राग भोग श्रंगार की परिपाटी राखी जो तत् तत् रितु मैं तत् तत् सामग्री तत् तत् राग जो मित्र आये हैं ।तासो तीन लोक की गौमाता को आपने चराई अरू वह तीन दिना उत्सवाण्ग भूत पद गान राखे तीन लोक पवित्र करनहेतु अथवा त्रिगुणात्मक गौअन को तीन भावना सो चरावन हेतु तीन दिना ही यह गान होय हैं ।

आज भी श्रीनाथजी की गौ शाला में गौ माता जब तक सुख से भोजन नहीं अरोगे तब तक श्रीनाथजी राजभोग नहीं अरोगते हे सुबह ग्वाल बोले बाद गोपीवल्लभ भोग सर जाते हे तब  ग्वाल मुखिया आयके दर्शन करते हे और श्रीजी बावा से बीनती करते हैं की गौमाता सुखेन विराजत हैं खूब सुख से हे ,तब राजभोग आता है और श्रीनाथजी राजभोग अरोगते हैं ।

मन्दिर के गोवर्धन पूजा चोक को गोबर से लीपा जाता है क्या लोग बाल गोबर को देखकर नाक बंद करते हे खुद कर्ता धर्ता अपने घर में जिसको लिपते हे उस पवित्र गोबर का हम अपमान करते हे ये उचित है क्या

ये ही नहीं नाथद्धारा में खर्च भंडार में तो गौ माता के लिए अलग से रोटी बनाते है वहां से श्रीनाथजी के राजभोग अरोगने से  पहले तो गौ माता के लिए रोटी बनकर जाती है 

प्रभु गाय स्वरूप ही है याके पुराणन मैं तथा भागवत मैं कई बर्णन मिले हैं..
कछुक ----
"गोूर्भूत्वाश्रुमुखि खिन्ना क्रन्दति करूणं विभो"
जब प्रथ्वी भारभूत भई तब गोरूप धरि बैकुण्ठादि लोक सो देवताओं को लेकर प्रभु के पास पहुंची ।
गाय मैं प्रभु बिराजे ताको बर्णन कितने स्थान न मैं प्रभु श्रीकृष्ण हैं ।ये दैत्य लोग अपनी सभा में या प्रकार बर्णन करें हैं ।
---विप्रा गावश्च वेदाश्च तपःसत्यदमः शमः ।
श्रद्धा दया तितिक्षाच क्रतवश्चःहरेस्तनुः ।।
प्रभु प्राकट्य मे सबसे पहले गाय को श्रंगार कियो; गोपाल जो पधारे ।
गावों वृषा वत्सतरा हरिद्रा तैल रूषिताः ।
विचित्र धातु बहेखग बस्त्र काँचन मालिनः ।
जब छोटेपन मै ही पूतना आई तबहू गौमाता सोही रक्षा माँगी ।
गौमूत्रेण स्नापयित्वा पुनर्गो रजसार्भकम ।
रक्षा चक्रुश्च सकृता द्भादशाग्ड़ैषु नामभिः ।
संस्कार न मै भी गौ को ही स्थान--..
खेलन मेभी गौ पूंछ सो क्रीड़ा--
अंतव्रजे तदबला प्रगृहीत पुच्छेः।
बाललीला मै -- "वत्सान मुञ्चन क्वचिदमये क्रोप संजात हासःं"।
पोगण्डलीला मै---ततश्च पौगण्डचयश्रितोब्रजे बभूवतुस्तो पशुपाल सम्मतो ।
गाश्चारयन्तो सखिभिस्तमं पदैवृन्दावन ंपुण्यमतीव चक्रतुः
कुमार लीला मैं--अदुरे व्रजभुवः सह गोपाल दारकैः ।
चारयामासतुर्वत्सान नाना क्रीड़ा परिच्छदैः ।
किशोर लीला में ---
क्वचित वनाशाय मनोदधे ब्रजात प्रातः समुत्थाय वयस्यवत्सपान .।
प्रबोधयन श्रंग रवेण चारुणा बिनिगतो वत्स पुरस्सरे हरेः ।
 येही भावन सो प्रभु गायन के बिना एक क्षण नाही रहे ।अष्टयाम सेवा मे गायन की सेवा बहुत प्रकार बर्णित हैं ।भोजन करते मैं हू मंगल भोग मे भी लीला बर्णन है ।
अरी मैया इक वन व्याई गैया कोर न मुख लो आयो ।
कमलनयन हरि करत कलेऊ कोर न मुख लो आयो । ......

जब हमारे प्रभु गाय के विना आरोगते नहीं हैं ।
हमारा भी कुछ कर्तव्य बनता है ।
गोपालन नहीं कर सकते हैं तो गोसेवा मे तो सहयोग कर ही सकते है ना ,,

कभी गौ माता को आप गलती से भी लात मारते हे या उसका अपमान कर रहे तो भूल जाइयेगा आप की श्रीजी बावा आपकी तरफ देख भी ले कभी  जितना हो सके गौ माता आदर करिये सम्मान करें प्रेम करे गौ माता हमारे श्रीजी बावा का प्राण हे ये ही धन हे ठाकुर जी के लिए..........

मंगलवार, 21 जनवरी 2020

अंग अंग में गौ माता के,सब देवों का धाम है में,बारम्बार प्रणाम है।।

अंग अंग में गौ माता के,
सब देवों का धाम है में,
बारम्बार प्रणाम है।।

नेत्रों में हैं सूर्य चंद्र,
मस्तक में रहते हैं ब्रम्हा,
सींगों में विष्णु महेश हैं,
गऊ मूत्र में जगदम्बा,
मुख में चारों वेद विराजें,
भजते आठों याम हैं,
गौ माता के श्री चरणों में,
बारम्बार प्रणाम है।।

रोमकूप में ऋषिगण रहते,
यक्ष महाबली बायें हैं,
गरुण दाँत में सर्प नाक में,
वरुण कुबेर जी दायें हैं,
कानों में अश्वनीकुमार,
महिमा की सुनें बखान हैं,
गौ माता के श्री चरणों में,
बारम्बार प्रणाम है।।

थनों में सागर मूत्र स्थान में,
रहतीं गंगा महरानी,
गुदा में सारे तीर्थ बसें और,
गोबर में लक्ष्मी रानी,
वर्णन करना बहुत कठिन है,
अभी करोङों नाम हैं,
गौ माता के श्री चरणों में,
बारम्बार प्रणाम है।।

पृष्ठभाग यमराज विराजें,
रम्भाने में प्रजापति,
उदर में हैं कार्तिकेय और,
जिह्वा में हैं सरस्वती,
तैतीस कोटि देवों को मन से,
सुमिरे ‘परशुराम’ है,
गौ माता के श्री चरणों में,
बारम्बार प्रणाम है।।

अंग अंग में गौ माता के,
सब देवों का धाम है,
गौ माता के श्री चरणों में,
बारम्बार प्रणाम है।।

शुक्रवार, 10 जनवरी 2020

श्री सूरदास जी ने एक पद में वर्णित किया है----

श्री सूरदास जी ने एक पद में वर्णित किया है----
सोभित कर नवनीत लिऐं।
गुटुरुन चलत रेनु तन मंडित, मुख दधि लेप किऐं।।
चारु कपोल, लोल लोचन, गोरोचन तिलक दिऐं।
वे बाललीला में गव्य पदार्थों का आहरण कर उनके प्रति अपने प्रेम को प्रकट करते हैं। पौगण्डलीला में पहली वत्सचारण तत्पश्चात् गोचारणकर गो सेवा के परम आदर्श की प्रतिष्ठा करते हैं। गोवंश-संरक्षणार्थ ही श्री गोवर्धनधारण कर इन्द्रमानमर्दनकर, सुरभि-दुग्धधारा से अभिषिक्त होकर गोविन्द नाम प्राप्त करते हैं। यही कारण है कि महत् पुरुषोंने इष्ट-देवता श्रीकृष्ण की भी इष्ट-देवता होने से गौमाता को अति-इष्ट कहा है।
   (कल्याण सेवा-अड़क्)

सोमवार, 6 जनवरी 2020

गौ माता की सेवा करले

गौ माता की सेवा करले

सो तीरथ का पुण्य मिलेगा मिलेगा हर दुःख से आराम,
गौ माता की सेवा करले समज ले होंगे चारो धाम,

जिसने गौ की सेवा कर्ली वो जीवन तो निहाल,
गौ पालन से ही कन्हियाँ कहलाये गोपाल है,
गौ माता से प्रेम तू करले तेरे हो जाये गे श्याम,
गौ माता की सेवा करले समज ले होंगे चारो धाम,

जिसके एक स्पर्श से होता कितने ही पापो का नाश ,
देवी देवता नदियां तीरथ करते जिसमे हर पल वास,
वेद पुराण और संत मुनि भी करते है जिसको परनाम,
गौ माता की सेवा करले समज ले होंगे चारो धाम,

चाह कर भी तू भुला सके न गौ माता के एहसान को,
पूजना है तो पूज तो सोनू धरती के भगवन को,
जय गौ माता जय गोपाल रट ते रहो सुबह शाम,
गौ माता की सेवा करले समज ले होंगे चारो धाम,