श्री सूरदास जी ने एक पद में वर्णित किया है----
सोभित कर नवनीत लिऐं।
गुटुरुन चलत रेनु तन मंडित, मुख दधि लेप किऐं।।
चारु कपोल, लोल लोचन, गोरोचन तिलक दिऐं।
वे बाललीला में गव्य पदार्थों का आहरण कर उनके प्रति अपने प्रेम को प्रकट करते हैं। पौगण्डलीला में पहली वत्सचारण तत्पश्चात् गोचारणकर गो सेवा के परम आदर्श की प्रतिष्ठा करते हैं। गोवंश-संरक्षणार्थ ही श्री गोवर्धनधारण कर इन्द्रमानमर्दनकर, सुरभि-दुग्धधारा से अभिषिक्त होकर गोविन्द नाम प्राप्त करते हैं। यही कारण है कि महत् पुरुषोंने इष्ट-देवता श्रीकृष्ण की भी इष्ट-देवता होने से गौमाता को अति-इष्ट कहा है।
(कल्याण सेवा-अड़क्)
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