"गोपालन का महत्व"
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पोस्ट को ध्यान से पढ़े भाव पूर्ण हे
पुष्टि मार्ग ही एक ऐसो मार्ग है जामे गोपालन। गो लालन गौसंवर्धन होय हैं ।प्रभु के सम गायन की सेवा होय हैं ताके कई पद हू गवै हैं।तथा प्रभु नंदकुमार की समस्त जीवन क्रियाहू गौचारण मैं भई ।वहीं गौ लीला सो आपको नाम गोपाल भयो ।जगदगुरु वल्लभाचार्य महाप्रभु ने सर्वप्रथम छल्ला बेचिके गाय मगाय प्रभु सेवा में राखी तथा अनेक गायन को पालन आज हू होय हैं ।सर्वप्रथम गाय को दूध आरोग केआपकी ऊध्र्र्व भुजा प्रगटी ।
गोप गण गायन की अष्टान्ग योग सो सेवा करत हैं तासों आठम तिथि को गोपूजन करिके गाय चरावन पधारे ।
तीन दिना ही गौचारण के पद क्यों ❓
राग भोग श्रंगार की परिपाटी राखी जो तत् तत् रितु मैं तत् तत् सामग्री तत् तत् राग जो मित्र आये हैं ।तासो तीन लोक की गौमाता को आपने चराई अरू वह तीन दिना उत्सवाण्ग भूत पद गान राखे तीन लोक पवित्र करनहेतु अथवा त्रिगुणात्मक गौअन को तीन भावना सो चरावन हेतु तीन दिना ही यह गान होय हैं ।
आज भी श्रीनाथजी की गौ शाला में गौ माता जब तक सुख से भोजन नहीं अरोगे तब तक श्रीनाथजी राजभोग नहीं अरोगते हे सुबह ग्वाल बोले बाद गोपीवल्लभ भोग सर जाते हे तब ग्वाल मुखिया आयके दर्शन करते हे और श्रीजी बावा से बीनती करते हैं की गौमाता सुखेन विराजत हैं खूब सुख से हे ,तब राजभोग आता है और श्रीनाथजी राजभोग अरोगते हैं ।
मन्दिर के गोवर्धन पूजा चोक को गोबर से लीपा जाता है क्या लोग बाल गोबर को देखकर नाक बंद करते हे खुद कर्ता धर्ता अपने घर में जिसको लिपते हे उस पवित्र गोबर का हम अपमान करते हे ये उचित है क्या
ये ही नहीं नाथद्धारा में खर्च भंडार में तो गौ माता के लिए अलग से रोटी बनाते है वहां से श्रीनाथजी के राजभोग अरोगने से पहले तो गौ माता के लिए रोटी बनकर जाती है
प्रभु गाय स्वरूप ही है याके पुराणन मैं तथा भागवत मैं कई बर्णन मिले हैं..
कछुक ----
"गोूर्भूत्वाश्रुमुखि खिन्ना क्रन्दति करूणं विभो"
जब प्रथ्वी भारभूत भई तब गोरूप धरि बैकुण्ठादि लोक सो देवताओं को लेकर प्रभु के पास पहुंची ।
गाय मैं प्रभु बिराजे ताको बर्णन कितने स्थान न मैं प्रभु श्रीकृष्ण हैं ।ये दैत्य लोग अपनी सभा में या प्रकार बर्णन करें हैं ।
---विप्रा गावश्च वेदाश्च तपःसत्यदमः शमः ।
श्रद्धा दया तितिक्षाच क्रतवश्चःहरेस्तनुः ।।
प्रभु प्राकट्य मे सबसे पहले गाय को श्रंगार कियो; गोपाल जो पधारे ।
गावों वृषा वत्सतरा हरिद्रा तैल रूषिताः ।
विचित्र धातु बहेखग बस्त्र काँचन मालिनः ।
जब छोटेपन मै ही पूतना आई तबहू गौमाता सोही रक्षा माँगी ।
गौमूत्रेण स्नापयित्वा पुनर्गो रजसार्भकम ।
रक्षा चक्रुश्च सकृता द्भादशाग्ड़ैषु नामभिः ।
संस्कार न मै भी गौ को ही स्थान--..
खेलन मेभी गौ पूंछ सो क्रीड़ा--
अंतव्रजे तदबला प्रगृहीत पुच्छेः।
बाललीला मै -- "वत्सान मुञ्चन क्वचिदमये क्रोप संजात हासःं"।
पोगण्डलीला मै---ततश्च पौगण्डचयश्रितोब्रजे बभूवतुस्तो पशुपाल सम्मतो ।
गाश्चारयन्तो सखिभिस्तमं पदैवृन्दावन ंपुण्यमतीव चक्रतुः
कुमार लीला मैं--अदुरे व्रजभुवः सह गोपाल दारकैः ।
चारयामासतुर्वत्सान नाना क्रीड़ा परिच्छदैः ।
किशोर लीला में ---
क्वचित वनाशाय मनोदधे ब्रजात प्रातः समुत्थाय वयस्यवत्सपान .।
प्रबोधयन श्रंग रवेण चारुणा बिनिगतो वत्स पुरस्सरे हरेः ।
येही भावन सो प्रभु गायन के बिना एक क्षण नाही रहे ।अष्टयाम सेवा मे गायन की सेवा बहुत प्रकार बर्णित हैं ।भोजन करते मैं हू मंगल भोग मे भी लीला बर्णन है ।
अरी मैया इक वन व्याई गैया कोर न मुख लो आयो ।
कमलनयन हरि करत कलेऊ कोर न मुख लो आयो । ......
जब हमारे प्रभु गाय के विना आरोगते नहीं हैं ।
हमारा भी कुछ कर्तव्य बनता है ।
गोपालन नहीं कर सकते हैं तो गोसेवा मे तो सहयोग कर ही सकते है ना ,,
कभी गौ माता को आप गलती से भी लात मारते हे या उसका अपमान कर रहे तो भूल जाइयेगा आप की श्रीजी बावा आपकी तरफ देख भी ले कभी जितना हो सके गौ माता आदर करिये सम्मान करें प्रेम करे गौ माता हमारे श्रीजी बावा का प्राण हे ये ही धन हे ठाकुर जी के लिए..........
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