गाय का महत्त्व (भाग -2)
गाय का आर्थिक महत्त्व:
• राष्ट्रीय आय का प्रतिवर्ष एक बड़ा भाग ; 3 से 5 प्रतिशतद्ध पशुध्न से प्राप्त होता है।
• 50 हजार मेगावाट अश्वशक्ति पशुध्न से प्राप्त होती है।
• 5 करोड़ टन दूध् प्रतिवर्ष पशुध्न से प्राप्त होता है और अब तो भारत सबसे बड़ा दूध् उत्पादक देश हो गया है।
• लाखों गैलन गोमूत्रा ;कीटनियंत्राकद्ध गोवंश से प्राप्त होता है।
• राष्ट्र की कुल विद्युत शक्ति का लगभग 10 प्रतिशत पशुशक्ति से प्राप्त हो सकता है। एक गोवंशीय प्राणी के गोबर से बनी केवल नाडेप खाद का मूल्य न्यूनतम 20 हजार रुपये होता है।
• गोवंश न केवल उत्तम दूध्, दही, छाछ, मक्खन, घी देता है बल्कि औषिध्यों और कीट नियंत्राकों का आधर गोमूत्रा भी देता है। साथ ही उत्तम जैविक खाद का Ïोत गोबर भी देता है।
• भारतीय गोवंश से खेती के आधर उत्तम बैल प्राप्त होते हैं। अभी भी 50 प्रतिशत खेती में हल चलाने का काम बैलों से लिया जाता है।
• बैल भार ढोने के काम भी आते हैं। उनसे भारतीय रेलों की अपेक्षा अध्कि यातायात का काम लिया जाता है।
• भारतीय गोवंश के मूत्रा और गोबर से लगभग 32 औषिध्यों का निर्माण किया जा रहा है। उनमें से कापफी औषिध्याँ महाराष्ट्र, उत्तर प्रदेश, राजस्थान आदि सरकारों से मान्यता प्राप्त है।
• गोमूत्रा, गोबर, दूध्, छाछ आदि से मनुष्योपयोगी दवाओं के निर्माण केन्द्र देवलापार ;नागापुरद्ध के अनुसंधन केन्द्र को नागपुर स्थित भारतीय शोध् संस्थान नीरी द्वारा शोध् संस्थान के तौर पर मान्यता दी गर्इ है।
• भारत की खेती हमारे गोवंश पर और गोवंश भारतीय खेती पर निर्भर है। एक के बिना दूसरे की उत्राति की कल्पना नहीं की जा सकती। वैज्ञानिक चकाचौंध् में भारतीय गोवंश का भारत के मुख्य ध्ंध्े खेती में उपयोग भूलाया जा रहा है।
• गोमूत्रा में तांबा होता है जो मनुष्य के शरीर में पहुँच कर स्वर्ण में परिवर्तित हो जाता है। स्वर्ण में सर्वरोगनाशक शक्ति होती है।
• बुलन्दशहर में बैल चालित ट्रैक्टर का निर्माण हुआ है। किसान बैठकर खेती के अनेक कार्य कर सकेगा और आयातित डीजल की आवश्यकता नहीं होगी।
• गोमूत्रा में अनेक रसायन होते हैं जैसे नाइट्रोजन, कार्बोलिक एसिड, दूध् देती गाय के मूत्रा में लेक्टोज, सल्पफर, अमोनिया गैस, कापर, पोटेशियम, मैंगनीज, यूरिया, साल्ट तथा अन्य कर्इ क्षार, आरोग्यकारी अम्ल आदि होते हैं।
• गाय के गोबर में 94 प्रकार के उपयोगी खनिज पाए जाते हैं।
• आज के प्रदूषण की विकट समस्या डीजल, पेट्रोल, कार्बनडायआक्साइड के कारण पैदा होती है। इसका एक हल गोबर-गोमूत्रा तथा वनस्पतियों का उपयोग बढ़ाना है।
• मरे पशु के एक सींग में गोबर भरकर भूमि के दबाने से कुछ समय के उपरान्त एक एकड़ भूमि के लिए सींग या अणु खाद प्राप्त होती है।
• मरे पशु के शरीर को भूमि में दबाने से कुछ मास में समाध् िखाद मिलता है। जो कर्इ एकड़ भूमि के लिए उपयोगी होता है।
• गोमूत्रा में आक, नीम या तुलसी आदि उबालकर कर्इ गुना पानी में मिलाकर बढ़िया कीटनियंत्राक बनते हैं।
• गोबर का खाद ध्रती का प्राकृतिक आहार है। इससे ध्रती की उर्वरा शक्ति बनी रहती है। ऐसा भारत में हजारों वर्ष से होता आया है। इसके विपरीत रासायनिक उर्वरकों और कीटनाशकों के प्रयोग से ध्रती की उर्वरा शक्ति घटकर बंजर होने के कगार पर पहुंच गयी है।
• बायो-गैस ;जैविक खाद संयत्रांद्ध ने मèयप्रदेश के ग्राम मोहद, जिला नरसिंहपुर में नर्इ क्रांति को जन्म दिया है। गैस, र्इंध्न और चालक शक्ति के तौर पर प्रयोग हो रहा है। गैस से बिजली का निर्माण हो सकता है।
• भारत में 54 करोड़ कृषि योग्य भूमि है। प्रति एकड़ भूमि को पांच टन जैविक खाद चाहिए अर्थात् कुल 250 करोड़ टन। घट गए गोवंश से केवल 40 ;चालीसद्ध करोड़ टन गोबर उपलब्ध् है। इसमें 92 करोड़ जलाने में आ जाता है। शेष बचा 25 करोड़ टन। वर्तमान प(ति से गोबर सूखने पर केवल 5 करेाड़ टन गोबर गैस मिलेगा। नडेप कम्पोस्ट खाद प(ति से एक किलो गोबर से तीस किलो तक खाद मिलेगा। हमारी आवश्यकता की पूर्ति इस जैविक प(ति की खादों से हो सकती है।
• नडेप काका ;नारायणदेव पांढरी पाण्डेद्ध तीन देसी गायों को पालकर वार्षिक लगभग 2 लाख 85 हजार रुपये केवल गोबर के उत्पाद से प्राप्त करते हैं जिसमें साबुन, अंगराग पाऊडर, कम्पोस्ट खाद, दीवार रंग, ध्ूपबत्ती आदि सम्मिलित हैं। नडेप कम्पोस्ट खाद को महाराष्ट्र व राजस्थान सरकारों के कृषि विभाग व आर्इñआर्इñटीñ दिल्ली, आर्इñपीñसीñएलñ बडौदा ने मान्यता प्रदान की है।
• देवलापुर नागपुर स्थित गोविज्ञान अनुसंधन केन्द्र में 983 गोवंश पर आधरित उत्पादों से 40 परिवारों को रोजगार मिल रहा है। यहां पर किए
जा रहे सपफल अनुसंधनों के परिणामों से कर्इ असाèय रोगों की प्रभावी चिकित्सा संभव हुर्इ है।
• पंचगव्य आयुर्वेद व गोवंशाधरित कृषि तन्त्रा को अपनाने से देश के सभी गावों में रोजगार मिल सकेगा। इससे पर्यावरण व जनस्वास्थ भी सुरक्षित रहेगा।
• विदर्भ ;नागपुर के आस पासद्ध के सूचीब( किसान जैविक खेती कर रहे हैं।
• महाराष्ट्र के मनोहरराव परचुरे, एडवोकेट, भास्कर हरि सावे, आनन्दराव सूबेदार, मोहनशंकर देशपाण्डे, अशोक संघवी जैसे बड़े-बड़े किसान ;सौ-सौ एकड़ से अध्कि भूमिद्ध पर जैविक खेती कर रहे हैं।
• कर्नाटक, गुजरात, मèयप्रदेश में जैविक खेती निरन्तर प्रगति पर है। गोबर से बने जैविक खाद और गोमूत्रा से बने कीटनियंत्राकों का ही प्रयोग होता है।
• गोविज्ञान अनुसंधन केन्द्र, देवलापार, नागपुर व अन्य ऐसे ही सपफल प्रयोगों से सि( हो गया है कि महात्मा गांध्ी के चरखा आन्दोलन से भी अध्कि प्रभावी रोजगार व ग्रामीण तथ्यों के आधर पर दूध् न देने वाला गोवंश स्वावलम्बन का साध्न है।
• कृषकों एवं गोपालकों में जनजागरण हेतु देश में 92 गोवंश रक्षा जनजागरण रथ, विश्व हिन्दु परिषद् के माèयम से विभिन्न प्रदेशों में लोक जागृति का कार्य कर रहे हैं।
5 हमारी दृढ़ धरणा है कि केवल गो माता ही नहीं, सम्पूर्ण गोवंश की रक्षा होनी चाहिए। गोवंश को कटने से बचाना चाहिए। कत्लखाने, यािन्त्राक वध्शालाओं सहित, बन्द होने चाहिए। मांस निर्यात पर प्रतिबंध् लगना चाहिए। हमारी गोवंश की कल्पना पश्चिम से भिन्न है। हम गाय दूध्, दही, घी, लस्सी, मक्खन के लिए तथा बैल हल चलाने एवं बोझ ढोने के लिए तथा दोनों को उनके गोबर और गोमूत्रा के लिए पालते हैं। पश्चिम में गोवंश कृषि के लिए उपयोगी नहीं होता। वहां दो प्रकार की गौएं पाली जाती हैं- दूध् के लिए तथा मांस के लिए। दूध् के लिए जर्सी, होलस्टेन आदि नस्लें है। मांस के लिए पाली जाने वाली गौओं को मोटा-ताजा बनाया जाता है।
हमारे गोवंश का मुख्य उत्पाद गोबर तथा गोमूत्रा है, जो भारतीय कृषि के लिए उत्तम जैविक खाद तथा बढ़िया पफसलें कीटनियंत्राक निर्माण करने तथा भूमि की उर्वरता बनाए रखने एवं बढ़िया पफसलें प्राप्त करने के लिए आवश्यक है। भारतीय गोवंश जीवन भर अनुत्पादक नहीं होता। मरने के बाद भी मनुष्य को अनेक प्रकार के लाभ देता हैं जीते ही गोवंश गोबर, गोमूत्रा देता ही है जो खेती के लिए बहुत आवश्यक और किसान के लिए उपयोगी होते हैं। इन्हीं के उपयोग से उन पर होने वाले व्यय से कर्इ गुना आय प्राप्त हो सकती है।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें