मंगलवार, 25 अगस्त 2015

पंचगव्य एक अत्यधिक प्रभावी जैविक खाद

पंचगव्य एक अत्यधिक प्रभावी जैविक खाद


पंचगव्य एक अत्यधिक प्रभावी जैविक खाद है
जो पौधों की वृद्धि एवं विकास में
सहायता करता है और
उनकी प्रतिरक्षा क्षमता को बढ़ाता है |
पंचगव्य का निर्माण सूर्य नाड़ी वाली गाय
अथवा देसी गाय के पांच उत्पादों दूध, दही, घी,
गौमूत्र व गोबर से होता है क्योंकि देशी गाय के
उत्पादों में पौधों के लिए आवश्यक सभी पोषक
तत्व पर्याप्त व सन्तुलित मात्रा में पाये जाते हैं
| पंचगव्य की 3 प्रतिशत मात्रा को पानी के
साथ मिलाकर प्रयोग किया जाता | पंचगव्य के
उचित लाभ के लिए 15 दिन में एक बार प्रयोग
करना चाहिए | एक एकड़ फसल के लिए 1.8
लीटर पंचगव्य पर्याप्त होता है |
पंचगव्य बनाने की विधि
आवश्यक सामिग्री
पंचगव्य निम्नलिखित सामिग्री से
बनाया जाता है-
1. 5 किलोग्राम देशी गाय का ताजा गोबर
2. 3 लीटर देशी गाय का ताजा गौमूत्र
3. 2 लीटर देशी गाय का ताजा कच्चा दूध
4. 2 लीटर देशी गाय का दही
5. 500 ग्राम देशी गाय का घी
6. 3 लीटर गन्ने का रस या 500 ग्राम गुड़ व
3 लीटर पानी का घोल
7. 3 लीटर नारियल पानी
8. 12 पके हुए केले
बनाने की विधि
1. सबसे पहले 5 किलोग्राम गाय के ताजा गोबर
और 500 ग्राम गाय के घी को एक मिट्टी के
मटके या प्लास्टिक की टंकी में डालकर
अच्छी तरह मिश्रण कर लें |
2. इस मिश्रण को 3 दिन के लिए छाँव में
रखना है और प्रतिदिन सुबह और शाम के समय
अच्छी तरह लकड़ी से घोलना है |
3. 3 दिन बाद इस मिश्रण में 3 लीटर
ताजा गौमूत्र, 2 लीटर गाय का दूध, 2 लीटर
गाय का दही, 3 लीटर गन्ने का रस या 500
ग्राम गुड़ व 3 लीटर पानी का घोल, 3 लीटर
नारियल पानी तथा 12 पके हुए केले को डालकर
अच्छी तरह मिश्रण कर लें |
4. इस मिश्रण को 15 दिनों के लिए छाँव में
रखना है और प्रतिदिन सुबह और शाम के समय
अच्छी तरह लकड़ी से घोलना है |
5. इस प्रकार 18 दिनों के बाद पंचगव्य
उपयोग के लिए बनकर तैयार हो जायेगा |
पंचगव्य की प्रयोग विधि
पंचगव्य का प्रयोग आप गेहूँ, मक्का, बाजरा,
धान, मूंग, उर्द, कपास, सरसों,मिर्च, टमाटर,
बैंगन, प्याज, मूली, गाजर, आलू, हल्दी, अदरक,
लहसुन, हरी सब्जियाँ, फूल पौधे, औषधीय पौधे
आदि तथा अन्य सभी प्रकार के फल पेड़ों एवं
फसलों में महीने में दो बार कर सकते हैं |
पंचगव्य को निम्नलिखित 5 प्रकार से प्रयोग
किया जा सकता है-
1. बीज उपचार द्वारा
2. जड़ उपचार द्वारा
3. फल पेड़-पौधों और फसल पर छिड़काव करके
4. सिंचाई के पानी के साथ प्रवाहित करके
5. बीज भंडारण के लिए
1. बीज उपचार द्वारा
पंचगव्य के 3% घोल में बीज को 10-15 मिनट
के लिए डुबोकर रखें | इसके बाद 30 मिनट तक
छाया में सुखाकर बुवाई करें | 300 मि.ली.
पंचगव्य 60 किलो बीज का उपचार करने के
लिए पर्याप्त होता है |
2. जड़ उपचार द्वारा
पंचगव्य के 3% घोल में पौधों के जड़ भाग
को 10-15 मिनट के लिए डुबोकर रखें | इसके
बाद 30 मिनट तक छाया में सुखाकर बुवाई करें
| 300 मि.ली. पंचगव्य एक एकड़ खेत
की रोपाई करने के लिए पर्याप्त होता है |
3. फल पेड़, पौधों और फसल पर छिड़काव करके
पंचगव्य के 3% घोल को फल पेड़-पौधों और
फसल पर छिड़काव करके प्रयोग
किया जा सकता है | 3 लीटर पंचगव्य एक
एकड़ फसल के लिए पर्याप्त होता है |
4. सिंचाई के पानी के साथ प्रवाहित करके
पंचगव्य के 3% घोल को सिंचाई के पानी के
साथ प्रवाहित करके प्रयोग किया जा सकता है
| 3 लीटर पंचगव्य एक एकड़ खेत के लिए
पर्याप्त होता है |
5. बीज भंडारण के लिए
बीज को भंडारण करने से पहले पंचगव्य के 3%
घोल में 10-15 मिनट के लिए डुबो कर रखें
उसके बाद सुखाकर भंडारण करें | ऐसा करने से
बीज को लगभग 360 दिनों तक सुरक्षित
रखा जा सकता है |
पंचगव्य का प्रभाव
पत्ती
पंचगव्य का छिड़काव करने से पौधों के पत्ते
आकार में हमेशा बड़े एवं अधिक विकसित होते हैं
तथा यह प्रकाश संश्लेषण की प्रक्रिया को तेज
करता है जिससे पौधे की जैविक क्षमता बढ़
जाती है एवं उपापचय क्रियायें तेज हो जाती हैं
|
तना
तना अधिक विकसित और मजबूत होता है जिससे
परिपक्वता के समय पौधे पर जब फल लगते हैं
तब पौधा फलों का वजन सहने में अधिकतम
सक्षम होता है तथा शाखाएं भी अधिक विकसित
तथा मजबूत होती हैं |
जड़ें
जड़ें अधिक विकसित तथा घनी होती हैं
तथा इसके अलावा वे एक लंबे समय के लिए
ताजा एवं स्वस्थ रहती हैं | जड़ें मृदा में
गहरी परतों में फैलकर वृद्धि करती हैं
तथा आवश्यक पोषक तत्वों एवं
पानी को अधिकतम मात्रा में अवशोषित कर
लेती हैं जिससे पौधा स्वस्थ बना रहता है
तथा पौधों में तेज हवा, अधिक वर्षा व सूखे
की स्थति को सहने की एवं रोगों के प्रति लड़ने
की क्षमता बढ़ जाती है |
उपज
पंचगव्य के प्रयोग से फसल की एक
अच्छी उपज मिलती है | यह रासायनिक
खेती को जैविक खेती में परिवर्तित करने में बहुत
प्रभावकारी है तथा वातावरण की प्रतिकूल
परिस्थितियों (कम या उच्च नमी ) में भी एक
समान फसल की पैदावार देने में
सहायता करता है| यह न केवल फसल की उपज
को बढ़ाता है बल्कि अनाज, फल, फूल व
सब्जियों का उत्पादन एक बेहतर रंग, स्वाद,
पौष्टिकता तथा विषाक्त अवशेषों के
बिना करता है जिससे फसल की बाजार में अधिक
कीमत मिलती है | यह बहुत सस्ता एवं अधिक
प्रभावकारी है जिससे कृषि में कम लागत पर
अधिक लाभ मिलता है |
शुष्क वातावरण अवधि
इसके प्रयोग से पत्तियों एवं तने पर एक
पतली तेलीय परत का गठन हो जाता है जिससे
पानी का वाष्पीकरण कम होता है तथा जड़ें
मृदा में गहरी परतों में फैलकर वृद्धि करती हैं और
आवश्यक पोषक तत्वों एवं पानी को अधिकतम
मात्रा में अवशोषित कर लेती हैं जिससे पौधे
शुष्क वातावरण अवधि को सहने में सक्षम
हो जाते हैं तथा पौधे के लिए 30% तक सिंचाई
के पानी की आवश्यकता कम हो जाती है |

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