बुधवार, 23 सितंबर 2015

बकरीद पर बेजुबान जीवों की सामूहिक हत्या अनुचित...

“नहीं पहुँचते अल्लाह के पास गोश्त और लहू के लुकमे,
पहुचती है अल्लाह के पास तेरी परहेजगारी और दयानतगारी।”
बकरीद पर बेजुबान जीवों की सामूहिक हत्या अनुचित...
मेरे हृदय से किसी भी मुश्लिम मित्र को 'बकरीद' के दिन मुबारकबाद नहीं निकलती है।
मेरे कुछ मुस्लिम मित्र भी जानकार हैं, लेकिन उन्हें भी मैं बकरीद के दिन मुबाकरबाद नहीं दे सकता ।
अनेकों को शायद बुरा भी लगता होगा, लगे तो लगे, मुझे कोई फर्क नहीं पड़ता।
जो लोग धर्म की आड़ में मूक जानवरों की हत्या करते हैं, मैं उन्हें कभी भी मुबारकबाद दे ही नहीं सकता ।
बकरीद का दिन (इस साल 25 सितम्बर, 2015) एक ऐसा दिन जो साल के 365 दिन में मेरे लिये सबसे दुखद दिन होता है।
बकरीद के दिन धर्म के नाम पर, बेजुबान और बेगुनाह जानवरों की सामूहिक हत्या करके 'ईद' अर्थात् खुशियाँ मनाना कहीं से भी गले नहीं उतरता है।
मैं किसी की भावनाओं को ठेस नहीं पहुंचाना चाहता ।
किसी भी जीव की हत्या करना मेरी नजर में अधर्म है।
मैंने इस्लाम धर्म की अनेक प्रतिष्ठित पुस्तकों को पढा है।
मुस्लिम विद्वानों द्वारा हिन्दी में अनुवादित कुरान को भी पढा है।
मुझे कहीं भी मोहम्मद साहब का ऐसा कोई सन्देश पढने को नहीं मिला, जिसमें यह कहा गया हो कि निर्दोष और मूक जानवर की बली देने से खुदा प्रसन्न होता है या इस्लाम को मानने वाले को निर्दोष और मूक जानवर की हत्या करना जरूरी शर्त है।
फिर धर्म के नाम पर बेजुबान जीवों की हत्या करने का औचित्य समझ से परे है?
ऐसा भी नहीं है कि बकरों आदि अनेक जीवों की हत्या सामान्य दिनों में नहीं होती है, निश्चय ही रोज गाय-भैंस, भेड़-बकरों आदि जीवों का कत्ल होता है।
विश्व स्तर पर इस तथ्य को भी मान्यता मिल चुकी है कि यदि लोग मांस का सेवन नहीं करेंगे तो भूखों मरने की नौबत आ सकती है।
इसके अलावा अनेक मांसाहारी लोगों द्वारा ऐसे तर्क भी दिये जाते हैं कि पर्यावरण एवं प्रकृति को संन्तुलित बनाये रखने के लिये भी गैर-जरूरी जीवों को नियन्त्रित रखना जरूरी है।
लेकिन मुझे लगता है की प्रकृति के सन्तुलन को तो सबसे ज्यादा मानव ने बिगाड़ा है, तो क्या मानव की हत्या करके उसके मांस का भी भक्षण शुरू कर दिया जाना चाहिये।
मुझे पता है कि मांस भक्षण करने वालों की संख्या तेजी से बढ रही है।
इस्लाम धर्म में बकरीद के दिन निर्दोष जीवों की बलि जरूरी हो चुकी है, इन सब बातों को रोकना असम्भव है।
फिर भी संविधान प्रत्येक व्यक्ति को अपने विचार व्यक्त करने की आजादी देता है। इसलिये मैं अपने विचारों को अभिव्यक्ति देकर अपने आपको हल्का अनुभव कर रहा  हूँ।
मैं मुस्लिम समुदाय के सभी लोगों से अपील करता  हूँ की बकरीद पर गाय-बैल आदि बेजुबान जीवों की हत्या ना करे....
हम निर्बल है मूक जीव बस ऐसे ही रह जाते हैं,
सुबह सलामत देखते हैं पर शाम हुई कट जाते हैं...
कितने हैं इंसान लालची, गिरे हुए यह मत पूछो,
मांस मिले गर खाने को तो मजहब से हट जाते हैं।"

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