शनिवार, 26 नवंबर 2016

श्रीभाईजी-पदरत्नाकर

श्रीभाईजी-पदरत्नाकर ---
अब उन भाग्यवती गायों का,गोकुल का शुभ करिये ध्यान।
जिनकी अपने कर-कमलों से सेवा करते हैं भगवान।
थकी थनों के विपुल भार से मन्थर गति से जो चलती।
बचे तृणांकुर दाँतों में न चबाती नहीं जरा हिलती।
पूँछों को लटकाये देख रहीं श्रीहरि के मुख की ओर।
अपलक नेत्रों से घेरे श्री हरि को वे आनन्द-विभोर।
छोटे-छोटे बछड़े भी हैं घेरे श्री हरि को सानन्द।
मुरली से अति मीठे स्वर में गान कर रहे हरि स्वच्छन्द।
खड़े किये कानों से सुनते हैं हैं वे परम मधुर वह गान।
भरा दूध मुँह में, पर उसको वे हैं नहीं रहे कर पान।
फेनयुक्त वह दूध बह रहा उनके मुख से अपने-आप।
बड़े मनोहर दीख रहे हैं, हरते हैं मन का संताप।
अतिशय चिकनी देह सुगन्धित-युत वह गो-वत्सों का दल।
सुखदायक हो रहा सुशोभित जिनका भारी गल कम्बल।
दोनों कान उठाये सुनते मुरली का रव साँड़ विशाल।
महाभाग वे पशु, जो हरि का संग पा रहे हैँ सब काल।
प्रिय गौमाता प्रिय गोपाल
जय जय श्री राधे

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