गुरुवार, 29 दिसंबर 2016

गौ माता की दु:खद कहानी

गौ माता की दु:खद कहानी


यह कहावत प्रचलित थी कि पहले भारत में घी-दूध की नदियां बहती थीं। यानि भारत देश में इतना गोधन था कि प्रत्येक व्यक्ति को पीने को पर्याप्त मात्रा में शुद्घ दूध एवं खाने को शुद्घ घी मिल जाता था। हर घर में एक या अधिक गाय बंधी होती थीं। न आज जैसी बीमारियां थी न व्यक्ति साधारणतया बीमार होता था। गौधन की बहुतायत के कारण जैविक खेती होती थी। इन तमाम कारणों से पर्यावरण भी शुद्घ था।
परंतु धीरे-धीरे व्यक्ति स्वर्थी एवं लालची होता गया। गाय को घर से बाहर निकाला जाने लगा एवं उसकी हत्या होने लगी। तेजी से गो-पशुओं की संख्या घटने लगी। स्थिति विषम होती गयी। दूध एवं घी की पूर्ति के लिए इसमें मिलावट की जाने लगी। जैविक कृषि की जगह रासायनिक खाद का प्रयोग किया जाने लगा। जिसका परिणाम हम देख रहे हैं, कैंशर जैसी भयानक बीमारियां तेजी से बढ़ रही हैं एवं हजारों व्यक्ति प्रतिदिन कैंसर जैसी बीमारियों से असमय ही मौत का शिकार हो रहे हैं। प्रत्येक दस व्यक्तियों में 7-8 प्रतिशत किसी न किसी बीमारी से पीडि़त हैं। भारत में गाय को माता का दर्जा दिया गया है। उसमें सैकड़ों देवी देवता निवास करते हैं, उसे पूजा जाता था। परंतु वही व्यक्ति कितना निर्दयी हो गया है कि उसी गौमाता को घर से निकाल कर उसे मरने को मजबूर किया जा रहा है।
जब तक गाय दूध देती है उसे स्वार्थवश पूरा एवं अच्छा आहार दिया जाता है, उसकी सेवा की जाती है।
जैसे ही वही गाय दूध देना बंद कर देती है तो उसे आवारा छोडक़र भटकने के लिए मजबूर किया जाता है। उसकी खोज खबर तक नही ली जाती है। बेचारी मूक वह गाय आंसू बहाती हुई दर-दर भटकती रहती है एवं लोगों के पत्थर एवं लाठियां खाती है। आज तो स्थिति यह हो रही है कि गर्भवती गाय को भी छोड़ दिया जाता है तथा वह भटकती रहती है।
जब वह गाय मालिक के घर से कहीं दूर बिहाय जाती है तथा उसके मालिक को उसके बिहाने का पता लगता है तो वह भागा-भागा हुआ जाता है एवं अपना अधिकार जताते हुए उस गाय बछड़े को घर लाता है। आज यह स्थिति प्रत्येक शहर ही नही अब तो गांवों में भी देखी जा सकती है। हर गांव गली में गाय तड़पते हुए मरती देखी जा सकती है।
एक आवारा बेचारी भूखी गाय अपनी भूख शांत करने के लिए शहर गांव के कूड़े पर आकर वहां बिखरा हुआ कचरा, यहां तक पड़ी हुई प्लास्टिक की पन्नी भी खा जातीी है जो उसकी आंतों को चीरकर तड़पते हुए मरने को मजबूर करता है।
एक गाय व्यक्ति को दूध दही घी तो देती ही है। इसके अलावा उसका गोबर एवं मूत्र संपूर्ण मानव जाति के लिए बड़ा उपयोगी है जो शुद्घ शाद एवं विभिन्न प्रकार की दवाईयां बनाने के काम आता है। गाय जीते जी तो यह सब देती है परंतु मरने के बाद उसकी खाल एवं हड्डियां भिन्न-भिन्न कार्यों में काम आती हैं। इस प्रकार गौमाता जिंदा रहते हुए तो मनुष्य का पालन करती ही है, मरने के बाद भी वह बहुत कुछ मनुष्य को देती है। परंतु स्वार्थी मनुष्य इसी गौमाता को अपने घर से निकालकर उसे आवारा भटकने एवं तड़पते हुए मरने के लिए मजबूर कर रहा है।
पिछले 7-8 माह में मेरे निवास के पास की गलियों से मुझे कई बार सूचनाएं मिलीं कि अमुक गली में एक गाय को मालिक के घर से बहुत दूर बिहाए को घंटों हो चुके हैं परंतु उसका कोई धणी धोरी नही है। जैसे ही हमारे द्वारा उस बिहाई गाय बछड़े को गौशाला ले जाने की व्यवस्था की जाती है तो मालिक दौड़ा-दौड़ा आता है तथा गाय पर अपना अधिकार जताते हुए गाय बछड़े को घर ले जाता है जबकि वह गाय कई दिनों से लावारिस घूम रही थी। परंतु ऐसी ही दूसरी गाय गोदूध नही देती वह गाय मालिक के घर से बहुत दूर कई दिनों से तड़प रही होती है। तथा ऐसी गाय को गौशाला लाया जाता है तो उस गाय का कोई मालिक बनकर नही आता, वहन् गाय उस गौशाला की होकर रह जाती है। क्यों हो रहा है गौमाता के साथ यह अत्याचार। क्या गौमाता अपने मालिक को श्राप नही देगी। ऐसा व्यक्ति कभी सुखी नही रह सकता। मेरे पास व्यक्ति मिलने आते हैं तथा कई व्यक्तियों के फोन भी आते रहते हैं कहते हैं कि अब गाय ने दूध देना बंद कर दियाा है।
उसका खर्चा भारी हो रहा है, वह बोझ हो गयी है। उसे गौशाला में रखा जावे। मैंने ऐसे व्यक्तियों से यह प्रार्थना की कि, आप इतनी उस गाय के लिए केवल एक चारे की गाड़ी की व्यवस्था कर देवें उसके बाद उस गाय की शेष जीवन की व्यवस्था गौशाला करेगी। इसके बाद तो ऐसे व्यक्तियों का कोई प्रत्युत्तर नही आता है। क्या गौमाता आज हमारे लिए बोझ बन गयी है, जिस गाय ने उक्त परिवार का माता की तरह पालन पोषण किया है। ऐसी गायें कत्लखाने को भेजी जाती हैं।
जेठमल जैन एडवोकेट

गौ की उत्पत्ति और उसका सर्वोपरि महत्व

गौ की अपार महिमा और दैवी गुणों से हिन्दू शास्त्रों के पृष्ठ भरे पड़े हैं। पुराणों में गौ के प्रभाव और उसकी श्रेष्ठता की ऐसी अनगिनत कथाएँ मिलती हैं जिन से विदित होता है कि हमारे पूर्वज गौ के महान भक्त थे और उसकी रक्षा करना अपना बहुत बड़ा धर्म समझते थे। गौ-रक्षा में प्राण अर्पण कर देना हिन्दू बड़े पुण्य की बात समझते थे और उसका पालन करना बड़े सौभाग्य की बात मानी जाती थी। गौ का महत्व यहाँ तक समझा जाता था कि उसके शरीर में उन 33 करोड़ देवताओं का निवास बतलाया गया और उसकी उत्पत्ति अमृत,लक्ष्मी आदि चौदह रत्नों के अंतर्गत मानी गई । यद्यपि ये कथायें एक प्रकार की रूपक हैं पर उनके भीतर बड़े-बड़े आध्यात्मिक तथा कल्याणकारी तत्त्व भरे हैं।

गौ की उत्पत्ति की पुराणों में कई प्रकार की कथायें मिलती हैं। पहली तो यह है कि जब ब्रह्मा एक मुख से अमृत पी रहे थे तो उनके दूसरे मुख से कुछ फेन निकल गया और उसी से आदि-गाय सुरभि की उत्पत्ति हुई। दूसरी कथा में कहा गया है कि दक्ष प्रजापति की साठ लड़कियाँ थीं उन्हीं में से एक सुरभि भी थी। तीसरे स्थान पर यह बतलाया गया है कि सुरभि अर्थात् स्वर्गीय गाय की उत्पत्ति समुद्र मंथन के समय चौदह रत्नों के साथ ही हुई थी। सुरभि से सुनहरे रंग की कपिला गाय उत्पन्न हुई। जिसके दूध से क्षीर सागर बना।
प्राचीन काल से आर्य-जाति गौ की बहुत अधिक महिमा मानती आई है। ऋग्वेद तथा अन्य वेदों में भी गौ के गुणानुवाद के सैकड़ों मंत्र भरे पड़े हैं। गीता में श्रीकृष्ण भगवान ने भी कहा है कि ‘गौओं में कामधेनु मैं हूँ।” गाय के शरीर में सभी देवता निवास करते हैं। शास्त्रों में कहा गया है कि धन की देवी लक्ष्मी जी पहले गाय के रूप में आयी और उन्हीं के गोबर से विल्व वृक्ष की उत्पत्ति हुई।
कपिल मुनि के शाप से जले हुये अपने साठ हजार पूर्वजों की राख का पता जब राजा रघु नहीं लगा सके तब वे गुरु वशिष्ठ जी के पास आये। गुरुजी ने दया करके उनकी आँखों में नन्दिनी गाय का मूत्र आँज दिया, जिससे रघु को दिव्य दृष्टि प्राप्त हो गई और वे पृथ्वी में दबी हुई अपने पुरखों की राख का पता लगाने में समर्थ हो सके।
गंगाजी को पहले पहल जब संसार (मृत्यु लोक) में आने को कहा तो वे बहुत दुखी हुई और आना कानी करने लगीं। उन्होंने कहा कि “पृथ्वी पर पापी लोग मुझ में स्नानादि करके अपवित्र किया करेंगे, इसलिये मैं मृत्युलोक में न जाऊँगी। तब पितामह ब्रह्माजी ने समझाया कि “लोग तुमको कितना भी अपवित्र करें किन्तु फिर भी गौ का पैर लगने से तुम पवित्र होती रहोगी।” इससे भी गौ और गंगा के हिन्दू धर्म से विशेष सम्बन्ध होने पर प्रकाश पड़ता है।
रामचन्द्र जी पूर्वज महाराज दलीप की गौ-सेवा का उदाहरण बड़ा महत्वपूर्ण है। उन्होंने एक दिन मार्ग में जाती हुई नन्दिनी को देखकर प्रणाम नहीं किया, इस पर उसके महाराज को पुत्रहीन होने का शाप दे दिया। इससे दुखी होकर वे गुरु वशिष्ठ के पास गये और शाप से मुक्ति पाने के लिए बड़ी विनय करने लगे। वशिष्ठ जी ने नन्दिनी गाय उनको दे दी और उसका भली प्रकार से पूजन और सेवा करने को कहा। उनके आदेशानुसार राजा और रानी दोनों मिलकर उसकी सेवा करने लगे। राजा गाय को वन में चराने ले जाते। वे नन्दिनी के चलने पर चलते थे, उसके बैठने पर बैठ जाते थे। एक दिन राजा का ध्यान जरा देर के लिए वन के दृश्य की तरफ चला गया कि नन्दिनी बड़े जोर से चिल्लाई। राजा ने देखा कि एक सिंह गाय को दबोच कर खाना चाहती है। उन्होंने तुरन्त अपना धनुष उठाकर तीर चलाना चाहा, पर दैवी मायावश तीर छूट न सका। तब राजा ने विवश होकर नन्दिनी गाय के बदले अपना शरीर सिंह को देने के लिये चुपचाप उसके सामने पड़ गये। पर जब कुछ देर तक पड़े रहने पर भी सिंह ने उनको नहीं खाया तो उन्होंने मस्तक उठाकर देखा। उस समय वह माया रूपी सिंह गायब हो चुका था और केवल नन्दिनी खड़ी प्रसन्न हो रही थी। राजा की इस अनुपम भक्ति से वह संतुष्ट हो गई और उसने राजा को पुत्र होने का वरदान दे दिया।
प्रसिद्ध देशभक्त महादेव गोविन्द रानाडे के जन्म के सम्बन्ध में भी ऐसी ही बात सुनने में आई है। उनके माता पिता के कोई पुत्र न था और वे वृद्ध हो चले थे। एक दिन कोई संत उनके दरवाजे पर भिक्षार्थ आ गए। दंपत्ति ने उनकी बड़ी सेवा की । साधु ने उन्हें उदास देखकर कारण पूछा और निस्सन्तान होने की बात सुनकर कहा-तुम एक दूध देने वाली सवत्सा काली गाय रखो। उसको साबुत गेहूँ खिलाओ, जो गोबर के साथ निकल आवें। उन्हीं दानों को धोकर, साफ करके आटा तैयार करो। ब्रह्मचर्यपूर्वक रहकर उसी की रोटी खाओ। छह मास तक ऐसा करने से तुम्हारी मनोकामना पूर्ण हो सकेगी। दंपत्ति ने वैसा ही किया और फलस्वरूप उनको पुत्ररत्न प्राप्त हुआ काली गाय से पुत्र प्राप्त होने की बात भारतवर्ष में सर्वत्र प्रसिद्ध है।
गणेश जी के जन्म समय की एक मनोहर कथा इस प्रकार है कि गणेशजी जब उत्पन्न हुये उसी समय महादेव जी ने भूल से उनका मस्तक काट दिया। इससे पार्वती जी बहुत अधिक रोने लगी। गणेश जी को ठीक करने को देवताओं के वैद्य अश्विनी कुमार बुलाये गये और उनको मुँह माँगा वरदान देने को कहा गया। इस पर उन्होंने किसी हाथी का मस्तक जोड़ कर गणेशजी को जीवित कर दिया और वरदान में स्वयं महादेवजी को ही माँगा। इस पर बड़ी समस्या उपस्थित हो गई और निपटारा करने को देवताओं की पंचायत की गई। उसमें महादेवजी का मूल्य एक गाय रक्खा गया और वही अश्विनी कुमार को देकर संतुष्ट किया।
भगवान कृष्ण का गौ-पालन और गौ-भक्ति तो प्रसिद्ध ही है जिससे उनका नाम ही गोपाल पड़ गया। वे स्वयं गायों को चराते थे, उनकी सब प्रकार से सेवा सुश्रूषा करते थे, जो गायों को कष्ट पहुँचाता था उसे दण्ड देते थे। गायों की रक्षा को ही उन्होंने गोवर्धन धारण किया और इन्द्र का मान मिटा दिया। भागवत में बतलाया है कि जब गोपियों के साथ रास करते हुये वे अत्यन्त शान्त हो गये तो अपने बाँये अंग से उन्होंने गौ उत्पन्न की जिससे दूध का एक कुण्ड बन गया और सब किसी ने उसी दूध को पीकर अपनी कान्ति दूर की। कृष्णजी के सम्बन्ध में ऐसी कथाएँ भरी पड़ी हैं। यह कहने में कोई अत्यन्ति नहीं कि भगवान कृष्ण को गौ-पालन से ही अपूर्व शक्ति प्राप्त हुई थी जिसके प्रभाव से उन्होंने संसार का उद्धार करने वाली गीता का ज्ञान प्रकट किया।
च्यवन ऋषि के विषय में भी एक बड़ी रोचक कथा है कि एक बार वे गंगाजी के गर्भ में तपस्या कर रहे थे। वहीं पर कुछ मछुए मछली मारने आये तो जाल में मछली के बदले मुनिजी ही फँस कर चले आये। मछुए उनको राजा के दरबार में बेचने के लिये ले गये। राजा ने उनके बदले में एक थैली सोने की मोहरें मछुओं को देना चाहा, परन्तु मुनि जी ने कहा कि हमारा मोल इतना कम नहीं हो सकता । राजा ने और भी बहुत सा सोना और अन्त में अपना समस्त राज्य मुनिजी के बदले में देना चाहा, पर उन्होंने उसे कम ही बतलाया। तब राजा ने विनयपूर्वक पूछा ‘महाराज, आप ही बतलायें कि आपका मूल्य क्या होगा?” च्यवन ऋषि बोले कि हमारा मूल्य एक गाय है। आप एक गाय दे दीजिये, बस यही हमारा वास्तविक मूल्य है।” इस पर मछुओं को एक गाय दे दी गई। इससे प्रकट होता है कि उस युग में गाय का मूल्य राज्य से भी अधिक समझ जाता था।
राजस्थान के क्षत्रियों में प्रमुख सिसोदिया वंश के संस्थापक बघा रावल बचपन में गायें चराया करते थे। एक दिन की बात है कि एक गाय ने गोष्ठ (गौशाला) में आकर दूध नहीं दिया। मालकिन ने यह शंका करके कि बघा ने गाय को दुहकर सब दूध पी लिया है, उसे खूब पीटा। निरपराध बघा को इससे मर्यान्तक पीड़ा हुई। दूसरे दिन भी वह गाय चराने गया और इस बात की खूब निगरानी रखने लगा कि गाय के दूध को कौन पीता है। संध्या के समय जब गायें घर की ओर चलीं तो उसने देखा कि एक गाय झुण्ड से अलग होकर एक लिंग-महादेव पर दूध ढाल रही है। अब तो बघा को चोर का पता लग गया और वह लाठी लेकर महादेव को पीटने लगा। भोले बाबा उसकी सरलता और सच्चाई को देखकर प्रसन्न हुये और उन्होंने बघा को वरदान दिया । इससे आगे चलकर वे बड़े प्रतापशाली नरेश बने और उन्होंने महान सिसोदिया वंश की स्थापना की। इसी वंश में राणा साँगा और महाराणा प्रताप जैसे देशभक्त, उत्पन्न हुये जिनका नाम और यश आज भी लोगों को प्रेरणा दे रहा है।
इसी प्रकार भारतवर्ष में सदा से बड़े-बड़े व्यक्ति गौ की सेवा में संलग्न रहे हैं और इसके प्रभाव से उनको यश, मान, धन आदि समस्त साँसारिक सफलतायें प्राप्त हुई हैं। वास्तव में गौ भारतवर्ष के सामाजिक और धार्मिक जीवन की एक स्तम्भ के समान है और उसे सदैव सुदृढ़ बनाये रखना हमारा परम कर्त्तव्य है।
(श्री धर्मेन्द्रनाथ, ढकियारघा)

गौ माता का अपने गौरक्षक पुत्रों के नाम खुला पत्र

गौ माता का अपने गौरक्षक पुत्रों के नाम खुला पत्र


मेरे प्यारे पुत्रों,
मैं आप सब के नाम एक खुला खत लिख रही हूँ। चौंक गए? चौंकने की कोई जरूरत नहीं है। आज जब मैं राष्ट्रीय विमर्श का केंद्र-बिंदु बन चुकी हूँ तो सोचा वो वक़्त आन पहुंचा है जब मैं भी अपने मन की बात कर लूँ।
आप सब को तो पता ही है कि मैं घास-भूसा खाती रही हूँ, गोबर करती हूँ, उस गोबर से उपले थापे जाते हैं, उपलों से किसी गरीब का चूल्हा जलता है, उसपे दो वक़्त की रोटी बनती है और उनका पेट भरता है। पर आप सब ये जानकर फूले नहीं समायेंगे कि आजकल मैं भ्रष्टाचार, बलात्कार, सुखाड़, कमरतोड़ महंगाई, रुपये में गिरावट, किसानों की आत्महत्या जैसे महत्वपूर्ण मुद्दे खाती हूँ। और तो और गोबर करने के लिए मैंने कुछ बुद्धि के विंध्याचल चिन्हित कर रखे हैं। वे अपने श्रीमुख से लगभग नित्य प्रति नियम से गोबर करते हैं, और फिर उस गोबर को लोगों के दिमाग में ठूंसा जाता है। उससे राजनीतिक कुनबे का चूल्हा जलता है, उसपे राजनीतिक रोटियां सेंकी जाती हैं और उससे उनका वोट वाला बैंक भरता है।
आपको ये जानकर हैरानी होगी कि मेरी पूँछ में इतनी शक्ति है कि कोई पार्टी अथवा नेता उसे पकड़ ले तो मैं उसकी चुनावी वैतरणी भी पार लगाने का माद्दा रखती हूँ। गौमूत्र तो अब इतना पवित्र हो गया है कि फिनाइल की जगह इसे छिड़का जा रहा है। वो दिन दूर नहीं जब गंगा में भी चंद बूँद गौमूत्र डालने से ही इसकी सफाई हो जायेगी। स्विस बैंकों में पड़े काला धन पर गौमूत्र छिड़क देने से ही ये सफेद हो जाएगा और काला धन धारकों को दो घूँट गौमूत्र पिला देने से उनका हृदय-परिवर्तन हो जाएगा। वो घड़ी लगभग आ ही गयी है जब नासा वाले मंगल समेत तमाम ग्रहों पर पानी और जीवन की जगह गौ और गौमूत्र तलाशना आरंभ करेंगे।   आजकल बीफ कंपनियों के करोड़ों रुपये के चंदे से पार्टी चलाने वाले लोग गौ रक्षा के लिए प्रतिपल समर्पित रहते हैं।  ये बात जानकर मेरा तो इंसानियत पे भरोसा ही दुगुना हो गया। ये मेरे लिए गौरव का विषय ही है कि विश्व की सबसे बड़ी राजनीतिक पार्टी के लोग अब रामलला को रिमेम्बर करने की बजाय गौमाता का गरिमा-गायन कर रहे हैं।
मेरे लिए इससे ज्यादा संतोष की बात क्या हो सकती है कि मेरे मातृभक्त सपूत गौ-हत्या की अफवाह तक पर इंसान की जान लेने को उतारू हों। मुझे फक्र है कि कल तक लोग मेरे नाम पर सिर्फ चारा खाते आये थे, किन्तु अब मेरे नाम पे भाईचारा भी खा रहे हैं। कुल मिलाकर देखा जाए तो मेरे ‘अच्छे दिन’ चल रहे हैं। यूपी से यूएन और ऊना से हरियाणा तक हर ओर बस मेरे नाम का ही शोर है।
आपको बताऊँ कि समय के साथ हमारी बिरादरी भी मॉडर्न हो गयी है। भरोसा न हो तो जरा नज़रें घुमाकर देखो कि कैसे गौशालों से उठकर ट्रैफिक सिग्नलों और चारागाहों से ऊबकर म्युनिसिपेलिटी के कचरा घरों के पास अब यह चौपाया जानवर पाया जाता है। इसलिए वक़्त आ गया है कि आपलोग मेरी चिंता करने की बजाय रोजगार के अन्य अवसर तलाशें। मेरी आप सब से प्रार्थना है कि वैदिक काल के मकड़जाल में फंसकर धर्मधुरंधर शाकाल न बनें। जब मैं अपने गोबर से परमाणु बम तक को बेअसर करने की क्षमता रखती हूँ, तो फिर मेरी रक्षा के लिए आपलोग क्यों अपनी सींग घुसेड़ते रहते हो ? अरे जब मंगोल,अफगान, तुर्क, तातार, तुग़लक़, ग़ुलाम, लोदी, मुग़ल,अंग्रेज़ इत्यादि का सदियों लंबा अत्याचार मेरा वजूद नहीं मिटा पाया, तो ये सिकुलर सरकार पिंक रेवोल्यूशन को पीक पर पहुंचाकर या बीफ खाने वाले को मंत्री बनाकर मेरी बिरादरी का क्या बिगाड़ लेगी ?
मैं आप सब को भरोसा दिलाना चाहती हूँ कि उन मुट्ठी भर चिरकुटों की बीफ पार्टी वगैरह करने से मेरा नामोनिशान नहीं मिटने वाला। आप लोग निश्चिन्त रहें,  मेरे अस्तित्व पे कोई खतरा नहीं मंडरा रहा है। अतः मेरी रक्षा के लिए फोटोशॉप-विद्या तथा अफवाह-उद्योग का उपयोग न करने की कृपा करें। ऐसा नहीं है कि आप सब ये करते हैं तो मुझे अच्छा नहीं लगता है। बस आपकी परवाह करती हूँ। आखिर माँ हूँ न। ये नाशपीटे निकम्मे ठुल्ले खामखा मेरे प्राणों से प्रिय बेटे-बेटियों पर फर्जी एफआईआर ठोक देते हैं। फिर फ़ालतू का गोइंग टू जेल एंड चक्की पीसिंग एंड पीसिंग एंड ऑल ! अभी गुजरात में देखा न… गौरक्षा वालों ने दलितों की पीठ पर जरा बैटिंग प्रैक्टिस क्या की पूरी की पूरी क्रिकेट टीम को उठाकर जेल में डाल दिया।
आपकी इतनी ही श्रद्धा है तो #SelfieWithDaughter की तर्ज पर#SelfieWithMotherCow जैसे पॉजिटिव कैंपेन चलायें। वो क्या है न मुझे भी नेगेटिविटी से थोड़ी एलर्जी सी हो गयी है। वैसे भी जब इस तरह के अभियान से बेटी बचायी जा सकती है तो मैं क्यों नहीं ? इसलिए आपसे गुज़ारिश है कि अब से हर इतवार अपनी-अपनी गाय माता के साथ सेल्फी खींचिए और बेझिझक ट्वीटीए। घर में गाय की जगह कुत्ता पालते हों तो फोटोशॉप विद्या इस्तेमाल में लाएं और उसी को गाय बनायें। बाकी मैंने तो मेरी तरह “मैं-मैं” करने वाला ब्रांड एम्बेस्डर बना ही रखा है।

गौ माता की सेवा की कथा से सीखे जीवन मे सुखी रहने का तरीका

गौ माता की सेवा की कथा से सीखे जीवन मे सुखी रहने का तरीका

शास्त्रो मे बताया गया है की गाय इस सृष्टि का सर्वोत्तम एवम् पूज्य प्राणी है तथा गाय की महत्वता, उपादेयता, आवश्यकता आध्यात्मिक, धार्मिक तथा वैज्ञानिक दृष्टि से सर्वविदित है। यदि हम व्यवहारिक रुप में  प्रतिदिन गाय की सेवा करते हैं तो उसको बहुत आश्चर्यचकित करने वाले सकारात्मक प्रभाव देखने को मिलते है, बहुत सी आयुर्वेदिक औषधि है जो गौ मूत्र से ही बनाई जाती है और कई गंभीर बीमारिओ की चिकित्सा मे बहुत लाभप्रत होती है |
आज की दुनिया मे लोग सुख पाने के लिए कई उपाय करते है पर सफल नही होते है | कुछ लोग धन, सुविधाएं आने से सुखी हो जाते हैं और इनके जाने से दुखी भी हो जाते हैं। यदि हम दोनों ही परिस्थितयों के साथ अपनी सोच मे बदलाव करे तो हम धन जाए पर भी सुखी रह सकते है |
इस साधारण कहानी से समझे सुखी रहने का सीधा तरीका…
एक आश्रम में संत महात्मा अपने शिष्य के साथ रहते थे। एक दिन प्रात: शिष्य ने गुरु जी से कहा कि गुरुजी एक भक्त ने हमारे आश्रम के लिए गाय दान की है।
संत ने मुस्कुराते हुए कहा कि यह तो अच्छा है। अब हमे रोज ताजा दूध पीने का तथा गौ माता की सेवा का सौभाग्य प्राप्त होगा | संत और शिष्य ने गाय के दूध का सेवन करने लगे।
कुछ दिन बाद शिष्य ने संत के कहा कि गुरुजी जिस भक्त ने गाय दान मे दी थी, वह अपनी गाय का पुन: वापस ले गया है।
संत ने फिर मुस्कुराते हुए कहा कि अच्छा है। अब रोज-रोज गोबर उठाने की परेशानी खत्म हो गई।
 इस कहानी की सीख यही है कि परिस्थिति कितनी ही विपरीत क्यो ना हो अगर हम अपनी सोच पर नियंत्रण करे और सकारात्मक सोचे तो हम अपने जीवन को सुखी जीवन बना सकते है |

सकारात्मक विचारो के लिए हमे अपने मन को शांत रखना बहुत आवश्यक है और मन को शांत करने का सबसे अच्छा उपाय है अपने ईष्ट देव की पूजा तथा माता पिता की पूजा |

Cow Quotes

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Sayings About Indian Cow(Gomata)

शुक्रवार, 23 दिसंबर 2016

गौ कथा ।।धेनुमानस ।।

शास्त्रो मे बताया गया है की गाय इस सृष्टि का सर्वोत्तम एवम् पूज्य प्राणी है तथा गाय की महत्वता, उपादेयता, आवश्यकता आध्यात्मिक, धार्मिक तथा वैज्ञानिक दृष्टि से सर्वविदित है।

यदि हम व्यवहारिक रुप में  प्रतिदिन गाय की सेवा करते हैं तो उसको बहुत आश्चर्यचकित करने वाले सकारात्मक प्रभाव देखने को मिलते है, बहुत सी आयुर्वेदिक औषधि है जो गौ मूत्र से ही बनाई जाती है और कई गंभीर बीमारिओ की चिकित्सा मे बहुत लाभप्रत होती है,
                कान्हा और गौ माता को ऐसा सुंदर संयोग है दोनो ही बङे उदार और सब भांति क्लयानकारी और अनन्ददायक है....
भगवान विष्णु के वाहन गरुण ने भी गरुण पुराण गायों के महत्व का उल्लेख किया है। उनके अनुसार जीवन के बाद मोक्ष प्राप्ति का सीधा मार्ग गाय की सेवा ही है।
    परम् पूज्य अग्रदूत गौपाल मणि जी द्वारा रचित #"_धेनु_मानस_" ग्रंथ जिसमे गाय माता की असीम महिमा का सुंदर सत्य वर्णन है...

गौ सेवा करें,  सबसे उत्तम सेवा गौ सेवा..

मंगलवार, 20 दिसंबर 2016

जिनका अन्त:करण अतिशय पवित्र हो जाता है, वे गोततत्व को समझ सकते हैं

गाय के तत्व को समझने के लिये जैसी पावनता, निर्मलता, विचारों की गहनता, सूक्ष्मता होनी चहिये, वैसी भावना उन भक्तों में आ सकती है, जिनका तन-मन-प्राण गोभक्तिसे अनुप्राणित हो।
जिनका अन्त:करण अतिशय पवित्र हो जाता है, वे गोततत्व को समझ सकते हैं। अत्यंत पवित्र का तात्पर्य है त्रिगुण (सत्व, रज, तम) - रहित चित्त और बुद्धि गुणातीत हो जाय तो गोपदार्थ की महत्ता को जाना जा सकता है।
सनातन धर्म क्या है? इसके सम्बन्ध में वाल्मीकीय रामायण के सुन्दरकाण्ड में पर्वत श्रेष्ठ मैनाक श्री हनुमान जी को सनातन धर्म का रहस्य समझाते हुए कहते हैं - 'कृते च प्रतिकर्तव्यं एष धर्म: सनातन:' अर्थात् जिसने हमारे प्रति किंचित् भी उपकार किया है, उसके प्रति सदा कृतज्ञ रहना- यही सनातन धर्म है।
भगवान की सृष्टि में गाय के जैसा कोई कृतज्ञ प्राणी नहीं है, प्रेम को स्वीकार करने वाला तथा उपकार ऐसा उत्तर देने वाला गाय के जैसा कोई प्राणी नहीं है। अड़सठ करोड़ तीर्थ एवं तैंतीस करोड़ देवताओं का चलता-फिरता विग्रह गाय है। सम्पूर्ण ब्रह्मांड पर गाय का जो उपकार है, उसका वर्णन नहीं किया जा सकता।
श्री भगवान के चरणों में कोई प्रार्थना कर कि प्रभु आप अपनी उपास्य देवता गोमाता के गुणों का वर्णन करें, उनके उपकारों को गिनायें तो सम्भवतया भगवान भी गोमाता की चरण रज को मस्तक पर चढ़ाकर, अश्रुपूरित नेत्रों से मूक रहकर ही गोमाता की महिमा का वर्णन करेंगे; ऐसी गोमाता की महिमा है।

डॉक्टर बोले-ऑपरेशन करना पड़ेगा,जान को खतरा है,पंचगव्य पिलाया तो सामान्य प्रसव हुआ।

पंचगव्य
पंचगव्य माने  देशी गाय का दूध, दही, घी, गौ मूत्र एवं गोबर
पंचगव्य चिकित्सा में वो सारी चमत्कारिक शक्तियां मौजूद हैं, जिससे हर तरह के रोगों का सफल इलाज संभव है, गाय हमारे प्राणों का रक्षण एवं पोषण करती है, इसलिए उसे हम मां कहते हैं...
हमारी प्राकृतिक चिकित्सा पद्धति इतनी मजबूत और महत्वपूर्ण है की जिसके अन्तर्गत मनुष्य में उत्पन्न होने वाली तमाम असाध्य बीमारियों को जड़ से समाप्त किया जा सकता है.... लेकिन हम मुर्ख इंसान......अपनी तकनीको को छोड़ के बाहरी तकनीको पे ज्यादा विश्वास करने लगे है.... पोथापंडित डॉक्टर्स को भगवान मानने लगे है... और इसी का नतीजा हम भुगत रहे है इन बड़ी बड़ी फाइवस्टार होस्पिटलो के चक्कर काट के......
यदि वर्तमान समय में गौ चिकित्सा तत्काल पुनः प्रारम्भ नहीं की गई तो अस्पतालो में रोगियों की संख्या बढ़ने के कारण समस्या उत्पन्न हो जायेगी