गाय के तत्व को समझने के लिये जैसी पावनता, निर्मलता, विचारों की गहनता, सूक्ष्मता होनी चहिये, वैसी भावना उन भक्तों में आ सकती है, जिनका तन-मन-प्राण गोभक्तिसे अनुप्राणित हो।
जिनका अन्त:करण अतिशय पवित्र हो जाता है, वे गोततत्व को समझ सकते हैं। अत्यंत पवित्र का तात्पर्य है त्रिगुण (सत्व, रज, तम) - रहित चित्त और बुद्धि गुणातीत हो जाय तो गोपदार्थ की महत्ता को जाना जा सकता है।
सनातन धर्म क्या है? इसके सम्बन्ध में वाल्मीकीय रामायण के सुन्दरकाण्ड में पर्वत श्रेष्ठ मैनाक श्री हनुमान जी को सनातन धर्म का रहस्य समझाते हुए कहते हैं - 'कृते च प्रतिकर्तव्यं एष धर्म: सनातन:' अर्थात् जिसने हमारे प्रति किंचित् भी उपकार किया है, उसके प्रति सदा कृतज्ञ रहना- यही सनातन धर्म है।
भगवान की सृष्टि में गाय के जैसा कोई कृतज्ञ प्राणी नहीं है, प्रेम को स्वीकार करने वाला तथा उपकार ऐसा उत्तर देने वाला गाय के जैसा कोई प्राणी नहीं है। अड़सठ करोड़ तीर्थ एवं तैंतीस करोड़ देवताओं का चलता-फिरता विग्रह गाय है। सम्पूर्ण ब्रह्मांड पर गाय का जो उपकार है, उसका वर्णन नहीं किया जा सकता।
श्री भगवान के चरणों में कोई प्रार्थना कर कि प्रभु आप अपनी उपास्य देवता गोमाता के गुणों का वर्णन करें, उनके उपकारों को गिनायें तो सम्भवतया भगवान भी गोमाता की चरण रज को मस्तक पर चढ़ाकर, अश्रुपूरित नेत्रों से मूक रहकर ही गोमाता की महिमा का वर्णन करेंगे; ऐसी गोमाता की महिमा है।
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