नमो देव्यै महादेव्यै सुरभ्यै च नमो नमः।
गवां बीजस्वरूपायै नमस्ते जगदंबिके।।
नमो राधाप्रियायै च पद्मांशायै नमो नमः।
नमः कृष्णप्रियायै च मात्रे नमो नमः।।
कल्पवृक्षस्वरूपायै सर्वेषां सततं परे।
श्रीदायै धनदायै बुद्धिदायै नमो नमः।।
शुभदायै प्रसन्नायै गोप्रदायै नमो नमः।
यशोदायै कीर्तिदायै धर्मदायै नमो नमः।। (देवीभागवत ९।४९।२४-२७)
अर्थात- देवी एवं महादेवी सुरभि को नमस्कार है।जगदंबिके। तुम गोओ की बीजस्वरूपा हो, तुम्हें नमस्कार है। तुम श्रीराधा को प्रिया हो,तुम्हे नमस्कार हे। तुम लक्ष्मी की अंशभूता हो। तुम्हें बारंबार नमस्कार है। श्रीकृष्णप्रिया को नमस्कार है। गोओ की माता को बारंबार नमस्कार है। जो सबके लिए कल्पवृक्षस्वरूपा तथा श्री, धन और बुद्धि प्रदान करने वाली है, उन भगवती सुरभि को बारंबार नमस्कार है। शुभदा प्रसन्ना और गोप्रदायिनी सुरभि को बार-बार नमस्कार है।यश और कीर्ति प्रधान करने वाली धर्मज्ञा देवी को बार-बार नमस्कार है।
इस स्तुति से आदि गो सुरभि प्रसन्न हो गई। फिर तो सारा विश्व।दूध से परिपूर्ण हो गया। दूध से धृत बना और धृत से यज्ञ होने लगे जिससे देवता भी प्रसन्न हो गई।
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