जय श्री कृष्णा।
एक महत्वपूर्ण पोस्ट। ध्यान से पढ़े।
कल्पना कीजिए के आपके द्वार पर एक स्री / औरत आती है और कुछ खाना देने का आग्रह करती है। वेश भूषा से शायद वो आपके माँ की उम्र की हो, या शायद आपकी बहन की।
उसे देखकर आपको महसूस होता है कि वो निराधार और लाचार है। और भूख और प्यास के कारण आपसे थोड़ी सी खाना मिल जाने की आशा रखती है। शायद ऐसा इसलिए हो क्योंकि उसके परिवार वालो ने उसे त्याग दिया हो। उसका ध्यान नहीं रखा हो।
इसलिए वो थोड़ा सा भोजन पाने की आशा से आपके द्वार पर आपको पुकारती है।
आप क्या करेंगे ???
उसे मना कर देंगे और मुँह फेर लेंगे। या अपने शक्ति अनुसार उसे कुछ भोजन देंगे ???
भाइयों। आज गौमाता का यही हाल है। वो थोड़े से खाने की आशा लेकर हमारे द्वार पर आती है। ऐसे में हमारा कर्त्तव्य क्या बनता है ?
उसे डंडा दिखाकर भगा दे ??? या एक रोटी या घर में रखा कोई और खाना उसे दे। ताकि उसकी थोड़ी सी भूख शांत हो सके। और अगर वो भी ना हो सके तो थोड़ा सा पानी का आग्रह तो हम कर ही सकते है।
जो परमात्मा/ईश्वर, हमारे आराध्य श्री कृष्ण, प्रत्येक जीव में वास करते है, जो समस्त सृष्टि के आधार है, जिनकी पूजा हम प्रतिदिन करते है, वे प्रेम और भक्ति से दिया हुआ एक फूल, एक पत्ती, एक फल या थोड़े से जल से भी तृप्त हो जाते है। गौमाता सामने से चलकर हमारे द्वार पर आकर हमें एक अच्छे कर्म करने का, पुण्य कमाने का, भक्ति युक्त कर्म करने का मौका देती है। क्या इस मौके को आप गौमाता को भगाकर ऐसे ही व्यर्थ जाने देंगे ???
कई भाई कहते है कि उसके मालिक को/रबारी को उसका ध्यान रखना चाहिए। क्योंकि वो उसका दूध लेता है।
इस बात पर गौर करे भाइयों, कि दूध के पैसे रबारी ने हमसे लिए। गौमाता ने नहीं। और अगर वो हमने कर्त्तव्य पथ से हट जाए, तब भी हमारा कर्त्तव्य यही हो जाता है कि हमारे द्वार पर जब वो आए तो हम अपने शक्ति अनुसार उसकी सेवा कर ले। अगर गाय का मालिक गौमाता का ध्यान न रखे, और ऐसी लाचार जीव को और दुःख देकर आप सुखी नहीं हो सकते।
कम से कम आप अपने घर पर काटी गई सब्जी का बचा हुआ वेस्ट भी हर रोज़ डालेंगे तब भी बहोत बड़ा फर्क पड़ जाएगा।
इस बात पर भी ध्यान दे की दूध का व्यापार कोई बहोत फायदे का व्यापर नहीं है। काफी मेहनत लगती है। एक बार करके देखिए, आपके संदेह दूर हो जाएंगे। रबारी/गाय के मालिक आपको बताएँगे कि गौचर ज़मीन जहाँ पहले गाय चरती थी, वहां हमने अपने मकान बना लिए है। इंसान हर कहीं अपना विस्तार फैला देते है, ऐसे में क्या गौमाता और उसके मालिक को शहर के बाहर निकाल देंगे ???
हम अगर लाखों - करोडो रुपए के मकान में रह सकते है, तो बाहर एक गौमाता के लिए ३०० से ४०० रुपये का एक चाट रखकर, घर में बचा खाना/पहली रोटी भी देकर गौमाता की भूख कम कर सकते है। उसे यह महसूस करवा सकते है कि आपके रहते वो निराधार और लाचार नहीं है।
गौमाता चाट हमेशा साफ़ रहता है। कभी गंदा नहीं होता। चित्र में देखे।
थोड़ा सा खाना दे देने से कोई गरीब नहीं हो जाता ? क्या आपने कभी सुना की कोई अतिथि को भोजन करवा करवाकर कर्ज़े में डूब गया या दिवालिया हो गया? किसी को खाना खिलाकर कोई बहोत बड़ा खर्चा नहीं हो जाता, कोई गरीब नहीं हो जाता।
आप हर रोज़ रात नौ बजे तक भरपेट खाना खाकर अपने क्षुधा को शांत कर लेते है। लेकिन बादमे बाहर निकलकर देखिए। गौमाता उतने रात को भी खाना तलाश रही होती है। कभी कागज़ खाती है तो कभी कभी प्लास्टिक।
यह बात सदैव याद रखे कि हमारे दादा-परदादाओ के साथ गौमाता ने सबसे अधिक मेहनत की। खेती में, दूध व्यवसाय में, हर प्रकार से अपना पूरा जीवन हमें प्रगति करवाने में समर्पित किया। आज हम जो कुछ भी है, वो उसके योगदान के बिना संभव हो ही नहीं सकता था।
कोई और करें न करें। आप धर्म का चयन करे। अपने कर्त्तव्य का चयन करे।
कृष्ण सदा गौमाता के पास थे। अगर आप गौमाता के पास है, तो आप कृष्णा के बहोत पास है।
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जय श्री कृष्णा।
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