आज गौमाता का हाल बेहाल है। वो थोड़े से खाने की आशा लेकर हमारे द्वार पर आती है। ऐसे में हमारा कर्त्तव्य क्या बनता है...?
उसे डंडा दिखाकर भगा दे ??? या एक रोटी या घर में रखा कोई और खाना उसे दे। ताकि उसकी थोड़ी सी भूख शांत हो सके। और अगर वो भी ना हो सके तो थोड़ा सा पानी का आग्रह तो हम कर ही सकते है।
जो परमात्मा/ईश्वर, हमारे आराध्य श्री कृष्ण, प्रत्येक जीव में वास करते है, जो समस्त सृष्टि के आधार है, जिनकी पूजा हम प्रतिदिन करते है, वे प्रेम और भक्ति से दिया हुआ एक फूल, एक पत्ती, एक फल या थोड़े से जल से भी तृप्त हो जाते है। गौमाता सामने से चलकर हमारे द्वार पर आकर हमें एक अच्छे कर्म करने का, पुण्य कमाने का, भक्ति युक्त कर्म करने का मौका देती है।क्या इस मौके को आप गौमाता को भगाकर ऐसे ही व्यर्थ जाने देंगे?
कई भाई कहते है कि उसके मालिक को उसका ध्यान रखना चाहिए। क्योंकि वो उसका दूध लेता है।
इस बात पर गौर करे भाइयों, कि दूध के पैसे उसके मालिक ने हमसे लिए। गौमाता ने नहीं। और अगर वो हमने कर्त्तव्य पथ से हट जाए, तब भी हमारा कर्त्तव्य यही हो जाता है कि हमारे द्वार पर जब वो आए तो हम अपने शक्ति अनुसार उसकी सेवा कर ले। अगर गाय का मालिक गौमाता का ध्यान न रखे, और ऐसी लाचार जीव को और दुःख देकर आप सुखी नहीं हो सकते।
आप हर रोज़ रात नौ बजे तक भरपेट खाना खाकर अपने क्षुधा को शांत कर लेते है। लेकिन बादमे बाहर निकलकर देखिए। गौमाता उतने रात को भी खाना तलाश रही होती है। कभी कागज़ खाती है तो कभी प्लास्टिक। कचरे के ढेर पर खड़ी गौमाता को देखकर कुछ तो अपने धर्म का चिन्तन करे
कोई और करें न करें। आप धर्म का चयन करे। अपने कर्त्तव्य का चयन करे।
कृष्ण सदा गौमाता के पास थे। अगर आप गौमाता के पास है, तो आप कृष्णा के बहोत पास है....
।जय गौमाता जय गोपाल।
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