शुक्रवार, 29 अप्रैल 2022

मनुष्य को स्वयं को बचाने के लिए गाय को बचाना ही होगा...

मनुष्य को स्वयं को बचाने के लिए गाय को बचाना ही होगा........….

गाय पर संकटों की भरमार जिनका प्रत्यक्ष असर मानव, पर्यावरण व सम्पूर्ण जीव जगत पर हो रहा है। 

हमारे मुख मोड़ने से या ध्यान ना देने से या अन्य विकल्पों पर ध्यान केंद्रित करने से समाधान नहीं होगा।समय पर किया गया उपचार ही कारगर होता है और सरल भी होता है 

हम सब के स्वास्थय सुरक्षा व पर्यावरण संरक्षण में गाय की भूमिका 50% से अधिक है। 
लेकिन देशी गाय के संरक्षण व गाय की शक्तियों के सदुपयोग पर 1% भी काम नहीं हो रहा है। 

जो एक गाय अपने जीवन में पर्यावरण व मानव जीवन के लिए अरबों रुपए का योगदान करती है वो गाय भूख व अन्य अनेक मानवीय लापरवाही के कारणों से तड़प तड़प कर मर रही है। कत्ल खानो में कटती हुई गायों की संख्या से कई गुणा ज्यादा गोवंश हमारे आस पास बेमौत मर रहा है
धीरे धीरे हमारे अंदर असंवेदनशीलता बढ़ रही है।

यदि हमने गाय जैसी संपदा या सबसे लाभकारी उद्योग को समय रहते नहीं संभाला तो हमारा सब कुछ लुटने वाला है धन,सुख चैन वैभव,रूप,स्वास्थयआदि

गाय को वास्तविक रूप से बचाने में लगे अनेक लोगों में लगातार निराशा, थकावट व उदासीनता आ रही है जो बहुत अधिक चिंताजनक है।

अभी भी बहुत से लोग व्यापक रूप से विचार कर देशी गाय को बचाने में लगे हैं हमें ऐसे लोगों की मौन तपस्या से जुड़ने की जरूरत है।

वर्तमान में समाज में पैसा खर्च करने का एक ही आधार है प्रशंसा पाना।

गाय की छाछ में ऐसा क्या था जो भगवान श्रीकृष्ण उसे पाने की लिए ऐसी ऐसी लीला किया करते थे।


गाय की छाछ में ऐसा क्या था जो भगवान कृष्ण उसे पाने की लिए ऐसी ऐसी लीला किया करते थे। और हम मुर्ख समझना ही नहीं चाहते.... 

सेस महेस, गनेस, दिनेस, सुरेसहु जाहिं निरन्तर गावैं
जाहि अनादि, अनन्त अखंड, अछेद, अभेद सुवेद बतावैं
नारद से सुक व्यास रटैं, पचि हारे तऊ पुनि पार न पावैं
ताहि अहीर की छोहरियाँ छछिया भर छाछ पे नाच नचावैं

जिस कृष्ण के गुणों का

 शेषनाग, गणेश, शिव, सूर्य, इंद्र निरंतर स्मरण करते हैं। वेद जिसके स्वरूप का निश्चित ज्ञान प्राप्त न करके उसे अनादि, अनंत, अखंड अछेद्य आदि विशेषणों से युक्त करते हैं। नारद, शुकदेव और व्यास जैसे प्रकांड पंडित भी अपनी पूरी कोशिश करके जिसके स्वरूप का पता न लगा सके और हार मानकर बैठ गए, उन्हीं कृष्ण को अहीर की लड़कियाँ छाछिया-भर छाछ के लिए नाच नचाती हैं।

आज हम में इतनी वर्णशकरता आ गई है कि ना तो कृष्ण को मानते हैं और ना ही कृष्ण की गईया को.......
हा जानते जरूर है लेकिन मानते नहीं।

मै ज्यादा तो नहीं कहुंगा हा अगर वास्तव में ही आप कृष्ण की गईया की छाछ वैदिक पद्धति से बनीं सुबह निराहार नियम से पी ले तो  पेट की गर्मी, कब्ज, बवासीर जैसी बीमारी छू मन्तर ना हो जाए तो कहना।

बस छाछ 100प्रतिशत वेदलक्षणा गाय की होनी चाहिए और वैदिक पद्धति से बनीं होनी चाहिए। ना कि दूध डेयरी कम्पनियों की क्योंकि वो चाहे भी तो भी वैदिक पद्धति से छाछ नहीं बना सकते...... 


देशी गाय की छाछ जहर को भी समाप्त करने की क्षमता रखती है।


देशी गाय की छाछ जहर को भी समाप्त करने की क्षमता रखती है।

देशी गाय की छाछ के बारे में तो ऐसा बताते हैं कि अगर समुद्र मंथन के समय छाछ की उत्पत्ति हो गई होती तो भगवान शंकर का नाम नीलकंठ नहीं होता। इतनी शक्ति है देशी गाय की वैदिक पद्धति से बनाई गई छाछ में, वैदिक विधि से बनाई गई छाछ जहर को भी समाप्त कर देती है।

देशी गाय के दुध से बना दही जिस दही में चार गुना जल मिलाकर मथा जाये उसे छाछ (तक्र) कहते है ।

तक्र का गुण :- 

  आयुर्वेद मे छाँछ को पृथ्वी का अमृत कहा हैं । देशी गाय के दुध का जमाया हुआ दही मथकर जो छाँछ बनाया जाता हैं उसे ' तक्र ' कहते है । यह खट्टा होने से शीध्र ही वातरोग नष्ट करता हैं , मीठा होने से पित्तविकार नष्ट करता है । और कसैल होने से कफ नष्ट करता हैं , अर्थात तीनो दोषों का शमन करनेवाला होता हैं । छाँछ भोजन मे रुचि तथा भुख दोनों बढाता हैं । खाने की इच्छा न होतो छाँछ के साथ भोजन करने से खाने की इच्छा होती हैं । 

                छाँछ मेधा ( वुद्धि ) बढाता हैं । बवासीर मे भी उपयुक्त हैं ।ग्रहणी नामक व्याधि ( पतले , दुर्गधियुक्त दस्त ) मे छाँछ का सेवन अत्यंत उपयुक्त हैं ।
खुन की कमी , मोटापा  , पेट की बीमारियँ , प्यास तथा पेट मे किड़े होना ( कृमी ) मे छाँछ उपयुक्त हैं 
 
   भावप्रकाश मे तो यहाँ तक कहा हैं कि नित्य तक्र का सेवन करनेवाला व्यक्ति कभी भी बीमार नहीं पड़ता हैं और तक्र के प्रभाल से नष्ट हुये रोग पुनः कभी उत्तपन्न नही हो सकते । अतः इसे पृथ्वीतल का अमृत कहा गया हैं ।

शुक्रवार, 8 अप्रैल 2022

गाय और भैंस में अचंभित करने वाला अंतर


गाय और भैंस में अचंभित करने वाला अंतर
जिसकी जानकारी बेहद कम लोगो को हैं।

आवाज एक पहल
भैंस को गन्दगी पसन्द है, कीचड़ में लथपथ रहेगी,, 

पर गाय अपने गोबर पर भी नहीं बैठेगी उसे स्वच्छता प्रिय है।
भैंस को घर से 2-4 किमी दूर तालाब में छोड़कर आ जाओ वह घर नहीं आ सकती उसकी याददास्त जीरो है। 

गाय को घर से 5 किमी दूर छोड़ दो। 
वह घर का रास्ता जानती है,आ जायेगी। 
गाय के दूध में #स्मृति तेज है।
दस भैंसों को बाँधकर 20 फुट दूर से उनके बच्चों को छोड़ दो, एक भी बच्चा सीधे अपनी माँ को नहीं पहचान सकता, 

जबकि गौशालाओं में दिन भर गाय व बछड़े अलग-अलग शैड में रखते हैं, सायंकाल जब सबका माता से मिलन होता है तो सभी बच्चे (हजारों की स॔ख्या में) अपनी अपनी माँ को पहचान कर दूध पीते हैं, ये है गाय दूध की याददास्त।
जब भैंस का दूध निकालते हैं तो भैंस सारा दूध दे देती है, 

परन्तु  गाय थोड़ा-सा दूध ऊपर चढ़ा लेती है, और जब उसके बच्चे को छोड़ेंगे तो उस चढ़ाये दूध को उतार देती है। 
ये गुण माँ के हैं जो भैंस मे नहीं हैं।
गली में बच्चे खेल रहे हों और भैंस भागती आ जाये तो बच्चों पर पैर अवश्य रखेगी...

लेकिन गाय आ जाये तो कभी भी बच्चों पर पैर नही रखेगी।
भैंस धूप और गर्मी सहन नहीं कर सकती...

जबकि गाय मई जून में भी धूप में बैठ सकती है।
भैंस का दूध तामसिक होता है.... 
जबकि गाय का सात्विक। 
भैंस का दूध आलस्य भरा होता है, उसका बच्चा दिन भर ऐसे पड़ा रहेगा जैसेे भाँग खाकर पड़ा हो। 
जब दूध निकालने का समय होगा तो मालिक उसे उठायेगा...

परन्तु गाय का बछड़ा इतना उछलेगा कि आप रस्सा खोल नहीं पायेंगे।
फिर भी लोग भैंस खरीदने में लाखों रुपए खर्च करते हैं.... 
जबकि गौमाता का दूध अमृत समान होता है।।

गोमाता को मत भूलना, वरना राम भी साथ नहीं देंगे


गोमाता को मत भूलना, वरना राम भी साथ नहीं देंगे,,, राम और श्याम को पहचानो,,, जो गाय को अपना इष्ट मानते थे, वे राम और श्याम थे,,, गाय से मुंह मोड़ लिया तो राम रूठ जायेंगे।
बिना गोभक्त हुए कोई राम का नहीं हो सकता,,, मन का छलावा है,,, सावधान हो जाओ केवल राम के भक्तों,,, राम के गुरु की नंदिनी को नहीं बचा पाए तो राम तुम्हारे लिए खाली नहीं बैठे हैं,,,
गो के साथ द्रोह से कोई नहीं बच पायेगा,,, वसुंधरा ने गो को हथपूर्वक इग्नोर किया,,, सत्ता से बाहर होना पड़ा,,, अगर उस कार्यकाल में गौसेवा कर देती तो आने वाली सरकार उनकी थी,,, थोड़े अंतर से हराया,,, आभास कराने के लिए,,, अभी भी हिंदूवादी पार्टियों गौसेवा से विमुख रही तो राम सामने नहीं देखेंगे। जो गाय का है, वही राम का हैं।
अपने आकाओं को समझाओ, गो का श्राप मत लो,,, क्यों देश को बर्बाद कर रहे हो। गौहत्या का पाप राजा और प्रजा सबको लील जायेगा,,, हे नेताओं! क्यों तुमसे गो की रक्षा और सेवा नहीं होती? माना कि किन्हीं कारणों से आप अभी तक केंद्र में सत्तारूढ़ होकर भी गौहत्या का कलंक भारत के माथे से मिटा नहीं सके, पर गोमाता को चारा देने से किसने रोका है,,, इसके तो कोई तरीके हो सकते हैं। अशोक जी गहलोत ने कैसे 6 माह का अनुदान दिया? आपके मन में ऐसे गौसेवा के भाव क्यों नहीं हैं? यह हम सब हिंदुओं के लिए दुःख की बात है।  क्या आप गोमाता की सेवा का कोई रास्ता नहीं जानते? सब जानते हो, लेकिन गाय को गिनते नहीं हो, गाय को कुछ नहीं समझते हो। इससे हम गोभक्तो की आत्मा रोती हैं। किसको कहें? अपने रूठ गए अब गैरों के टुकड़ों पर पलते हैं!