वेदलक्षणा गाय हमारे लिए ईश्वर का वरदान है.......
वेदों मे वर्णित परम पिता परमेश्वर ने हम मानवजाति पर बडा ही कृपा और करुणायुक्त उपकार करके परोपकारार्थ इन स्वदेशी ममतामयी करुणामुर्ति गौमाताओं को यह पृथ्वी ग्रह पर उत्पन्न किया है !
हमारे भौतिक-आध्यात्मिक अभ्युदय, उत्थान, प्रगति और विकास हेतु स्वदेशी गौवंश रुपी अमुल्य, बहुमूल्य वरदान सृष्टि कर्ता सर्वेश्वर ने हमारे लिए जबसे यह सृष्टि का शुभारंभ हुआ तबसे ही हमें बड़े ही बृहद उपकारों, उपहारों के रुप मे प्रीति पुर्वक प्रदान कर दिया है !!
लेकिन हम मनुष्य धीरे-धीरे प्रति दिन,महिने बरसों से इतने धूर्त एवं मूर्ख सिद्ध होते जा रहे हैं कि हमें आज अभी तक ईश्वरीय दो तरह के अमुल्य वरदान वेद और वेदलक्षणा गौमाताओं के मौजूदा अस्तित्व से हमारे सम्यक् धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष रुपी पुरुषार्थ चातुष्टय कि सर्वोत्कृष्ट एवं सर्वोत्थानित उन्नतियों कि अमुल्य आनंददायक सिद्धियों का लाभ कैसे लिया जाय .. !? यह पता ही नहीं है !!!
अब हमारी यह घोर अज्ञानतावश परिणाम यह देखा जा रहा है कि, --> जैसे कोई कीमती हीरे मोती को धूल-मिट्टी मे धूमिल कर दिया हो,ढकेल दिया हो ! ऐसे हालात इन ईश्वरीय वरदान का कर दिया है हमने .. !!
जब जड़ या चेतन वस्तु या पदार्थों कि हमारी जड़्यता-अज्ञानता वश पहचान या महिमा मालुम न हों तो तब .. हम मूर्ख व्यक्तित बनकर क्या पागलपन करते है उनका सटीक उदाहरण चाणक्य पंडित ने अपने नीतिश्लोक मे पेश किया है कि, -- जंगल के उम्रवान हाथियों के गंडस्थल से गजमौक्तिक्य नामक बहुमूल्य रत्न जमीन पर गिरते रहते हैं! अब जंगल मे रहने और घूमने वाली भीलनी स्त्रियों इन गजमौक्तिक्यों को निरर्थक, साधारण या वृथा मानते हुये कुतूहल वश हाथों में लेकर कूछ काल पर्यन्त खिलवाड़ कर के फेंक देती है! और गुंझा ( चणकबाबा,चणोठी) नामक लता के लाल,काले,सफ़ेद बीजों को धागे मे पिरोकर उनका हार बनाके शृंगार के रुप मे गले में पहनती है .. !!
चाणक्य पंडित कहते हैं कि, -- " गजे गजे न मौक्तिक्यम् " || अब हर हाथी के गंडस्थल मे से मोती नहीं नीचे गिरते ! वो तो दुर्लभ हाथी ही होते हैं।
बिलकुल वैसे ही हमारे स्वदेशी भारतीय गौवंश जैसी वात्सल्यमयी, ममतामयी गौवंश नश्लें पाश्चात्य यवनम्लेच्छयहूदियों के मुल्कों मे उत्पन्न नहीं होती!
अब हमारे फ़िलहाल हालात वो जंगल कि भीलनी जैसे है।
हमारे विविध स्वदेशी गौवंश रुपी बहुमूल्य-अमुल्य रत्नों का हमे ख़ुद महिमा-मूल्य ही मालुम्मात नहीं है कि ,--> उनके भरपूर सात्विक अस्तित्व का उपयुक्त उपयोग कैसे किया जाय .. !? उनके द्वारा प्राप्त पंचगव्यामृतों का.......
गाय से जुड़े रहने के लिए......
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