समाज की मूल इकाई परिवार है। परिवार के आकार-प्रकार, सुख-शांति, सम्पन्नता का आधार बिंदु गृहिणी ही है। 'गृहस्थी' है क्यों कि 'गृहिणी' है। संसार की प्रथम पाठशाला, परिवार की मुख्य अध्यापिका गृहिणी ही है। गोवंश रक्षा एवं संवर्धन के महायज्ञ में प्रथम आहुति गृहिणी की ही हो सकती है। निम्न मुख्य बिंदुओं का पालन कर गृहिणी गौ माता के प्रति कृतज्ञता ज्ञापित कर सकती है :-
१. घर में गाय के दूध, दही, गोघृत का उपयोग करें। पंच गव्य निर्मित साबुन, शैम्पू व उबटन का ही उपयोग करें। बीमारियों में यथासम्भव पंचगव्य औषधियों का उपयोग करें।
२. प्रतिदिन प्रातः गो दर्शन कर दिन का शुभारम्भ करें।
३. भोजन से पहले गो ग्रास देने की आदत परिवार के प्रत्येक सदस्य में डालें।
४. परिवार के बच्चे, बहू-बेटियाँ व अन्य सदस्यों को गो महिमा समझाकर गोसेवा हेतु प्रवृत्त करें।
५. गोपाष्टमी, गोवत्सद्वादशी, बलराम जयंती (हलधर षष्ठी), श्रीकृष्ण जन्माष्टमी, मकर संक्राति इत्यादि गो पर्व तथा गो उत्सव मनाने की परम्परा प्रारम्भ करें। परिवार में गौ कीर्तन व गो महिमा से सम्बधित शास्त्रों का पठन पाठन करे।
६. फलों व सब्जियों का उपयोग में न आने वाला हिस्सा कचरे में न फेंकते हुए गोवंश को दें। घर के सामने आनेवाले गोवंश को पानी पिलायें। परिवार के भोजन के बाद बचा हुआ अन्न सब्जी भी गोवंश को खिलावें।
७. प्लास्टिक की थैलियों का कम से कम उपयोग करें। कचरा प्लास्टिक की थैलियों में भरकर न फेंके क्यों कि ये थैलियाँ ही गाय का आहार बनती हैं तथा प्लास्टिक की थैलियाँ खाने से गौ माता अस्वस्थ होकर मृत्यु का ग्रास बनती है।
८. गौमाता में समस्त देवी-देवताओं का वास होता है। घर में गोमाता का एक चित्र अवश्य लगवायें तथा परिवार समेत नमन करें ताकि परिवार में गो श्रध्दा व गो सेवा का भाव जगे ।
९. गो सेवा हेतु कम से कम एक रुपया प्रतिदिन एक डिब्बे में डालें व वर्ष में एक बार गोशाला या गो सेवा से सम्बधित संस्था को दान देवें।
१०. भारतीय नस्ल की गाय पालें व गो सेवा के आनंद का प्रत्यक्ष अनुभव करें।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें