ये दावा देश के किसी हिन्दूवादी संगठन का नहीं , बल्कि ऑस्टे्लियाई युवा वैज्ञानिकों के एक दल का है। भविष्य में एयरक्राफ़ट कैसे होंगे और उनमें किस तरह का ईधन इस्तेमाल होगा ,इसके बारे में इन दिनों यूरोप में एक मुकाबला चल रहा है । इसमें दुनिया भर के युवा वैज्ञानिकों को अपने आइडिया या मॉडल पेश करने थे । यूरोप की प्लेन बनाने वाली कम्पनी एयरबस ने इस मुकाबले का आयोजन किया था । इसमें आखिरी में जो पांच आइडिया शॉटलिस्ट किए गये उसमें से एक गोबर से प्लेन उडाने वाला भी था ।
टीम कलीमा नाम के वैज्ञानिक दल का दावा है कि गाय के गोबर और फार्म में पैदा होने वाले दूसरे कचरे से बनने वाली मीथेन गैस को प्लेन में बतौर ईधन इस्तेमाल किया जा सकता है । मॉडल के मुताबिक इस गैस को खूब ठण्डा करके एक खास किस्म के सांचे में भर दिया जायेगा । यहां से इन्जन के साथ फिट किया जायेगा । यहां से इन्जन की जरूरत के मुताबिक ईंधन की सप्लाई होती रहेगी । मगर अभी इस मॉडल में एक दिक्कत भी है । दरअसल प्लेन उडाने के लिए जितने ईधन की जरूरत है ,उसके हिसाब से गोबर की कमी पड जायेगी । इस वैकल्पित ईंधन पर काम करने वाले बताते हैं कि एक गाय साल भर में जितना गोबर देती है, उससे सत्तर गैलन ईंधन तैयार किया जा सकता है ।
लंदन सं न्यूयार्क जाने वाली फ़लाइट का उदाहरण लें तो साढे तीन हजार मील की दूरी तय करने वाली इस फ़लाइट के लिए हवाई जहाज को 17,500 गैलन ईंधन चाहिए । इस तरह मौजूदा दर से देखें तो एक हजार गाय तीन महीने में जितना गोबर करेंगी , उससे पैदा हुए गैस इस एक फ़लाइट में बतौर ईंधन खर्च हो जायेगी ,इसलिए फिलहाल साइंटिस्ट इस तरह से प्रयोग कर रहे हैं जिसमें कम से कम गोबर से ज्यादा गैस यानी ईंधन प्रॉड़यूस किया जा सके ।
यदि यह प्रयोग सफल रहा तो पर्यावरण के लिए भी बेहतर होगा । कलीमा टीम का आंकलन है कि गोबर से बनने वाला ईंधन कार्बन-डाईआक्साइड का बनना 97 फीसदी तक कम कर सकता है । मीथेन का प्लेन उडाने के लिए बतौर ईंधन पहली मर्तबा इस्तेमाल होगा । लेकिन अमेरिका में खेती में काम आने वाले कई वाहन इसी तरह के ईंधन से चलते हैं । इसका प्रोसेस बहुत सरल होता है । गाय-भैंस के गोबर और फार्म पर पैदा होने वाले दूसरे कचरे को एक टैंक में स्टोर किया जाता है । सूरज की रोशनी पडने के बाद इस टैंक में मीथेन गैस पैदा होती है ,जिसका इस्तेमाल ईंधन के तौर पर किया जाता है ।
टीम कलीमा नाम के वैज्ञानिक दल का दावा है कि गाय के गोबर और फार्म में पैदा होने वाले दूसरे कचरे से बनने वाली मीथेन गैस को प्लेन में बतौर ईधन इस्तेमाल किया जा सकता है । मॉडल के मुताबिक इस गैस को खूब ठण्डा करके एक खास किस्म के सांचे में भर दिया जायेगा । यहां से इन्जन के साथ फिट किया जायेगा । यहां से इन्जन की जरूरत के मुताबिक ईंधन की सप्लाई होती रहेगी । मगर अभी इस मॉडल में एक दिक्कत भी है । दरअसल प्लेन उडाने के लिए जितने ईधन की जरूरत है ,उसके हिसाब से गोबर की कमी पड जायेगी । इस वैकल्पित ईंधन पर काम करने वाले बताते हैं कि एक गाय साल भर में जितना गोबर देती है, उससे सत्तर गैलन ईंधन तैयार किया जा सकता है ।
लंदन सं न्यूयार्क जाने वाली फ़लाइट का उदाहरण लें तो साढे तीन हजार मील की दूरी तय करने वाली इस फ़लाइट के लिए हवाई जहाज को 17,500 गैलन ईंधन चाहिए । इस तरह मौजूदा दर से देखें तो एक हजार गाय तीन महीने में जितना गोबर करेंगी , उससे पैदा हुए गैस इस एक फ़लाइट में बतौर ईंधन खर्च हो जायेगी ,इसलिए फिलहाल साइंटिस्ट इस तरह से प्रयोग कर रहे हैं जिसमें कम से कम गोबर से ज्यादा गैस यानी ईंधन प्रॉड़यूस किया जा सके ।
यदि यह प्रयोग सफल रहा तो पर्यावरण के लिए भी बेहतर होगा । कलीमा टीम का आंकलन है कि गोबर से बनने वाला ईंधन कार्बन-डाईआक्साइड का बनना 97 फीसदी तक कम कर सकता है । मीथेन का प्लेन उडाने के लिए बतौर ईंधन पहली मर्तबा इस्तेमाल होगा । लेकिन अमेरिका में खेती में काम आने वाले कई वाहन इसी तरह के ईंधन से चलते हैं । इसका प्रोसेस बहुत सरल होता है । गाय-भैंस के गोबर और फार्म पर पैदा होने वाले दूसरे कचरे को एक टैंक में स्टोर किया जाता है । सूरज की रोशनी पडने के बाद इस टैंक में मीथेन गैस पैदा होती है ,जिसका इस्तेमाल ईंधन के तौर पर किया जाता है ।
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