शुक्रवार, 31 अक्टूबर 2014

गोविन्द को प्रिये बनाना है तो करो गोसेवा

सभी गौभक्तो को "श्री गोपाष्टमी" महापर्व की हार्दिक शुभकामनाये.....।

भगवान श्री कृष्ण गीता में अर्जुन से कह रहे है :-

"गो भिस्तुल्यं न पश्यामि धनं किचिदिहाच्युत"

अर्थात - हे अर्जुन ! मै इस संसार में गौ धन के समान और कोई धन नहीं देखता हूँ.

"सोना-चांदी और रत्न-मणि सब धन है केवल नाम का, यदि है कोई धन जगत में गोधन है बस काम का".

गौ स्वर्ग और मोक्ष की सीढी है.

जब भगवान कृष्ण मात्र 6 दिन के थे तब पूतना व्रज में आई थी,और भगवान ने उसका उद्धार किया था।

जब पूतना की विशाल देह को व्रजवासियो और गोपियों ने देखा तो वे बहुत डर गई और बाल कृष्ण को गौशाला में ले गई गाय के चरणों की धूलि लाला के मस्तक पर
लगायी और बारह अंगों में गोबर लगाया, गोमूत्र से बाल कृष्ण को स्नान कराया.
और फिर गाय की पूछ पकड़कर झाडा दिया और मंत्र बोलकर लाला की नजर उतारने लगी.

व्रजवासियो पर जब भी विपत्ति आई उन्होने गौ माता का ही आश्रय लिया।
यहाँ तक जब इंद्र में वर्षा की तब भगवान ने पहले गो रक्षार्थ हवन गोपूजन करवाया फिर गोवर्धन अर्थात गो +वर्धन गौ ही धन है ऐसे गोवर्धन को अपनी एक उगली पर उठाया.

भगवान ने अपना "नाम" और "धाम" का नाम भी गौ के नाम पर "गोपाल" और "गौलोक धाम" रखा है, क्योकि भगवान को गाय अत्यंत प्रिय है.

यदि हम श्रीमद्भागवत को देखे जिसमे भगवान के गृहस्थ का बड़ा सुन्दर वर्णन आता है उसमे भगवान की दिनचर्या के वर्णन में आता है कि भगवान प्रतिदिन तेरह हजार चौरासी गौए ब्राह्मणों को दान करते थे.

रामचरितमानस में आता है :-

"विप्र धेनु सुर संत हित लीन्ह मनुज अवतार,
निज इच्छा निर्मित तनु माया गुन गो पार"

अर्थात - ब्राह्मण, गौ. देवता और संतो के लिए भगवान ने मनुष्य का अवतार लिया वे माया और उसके गुण (सत्,रज,तम)और इन्दिर्यो से परे है उनका शरीर अपनी इच्छा से ही बना है.

यहाँ धेनु शब्द आया है अर्थात भगवान अपनी प्यारी गौओ के लिए ही इस धरा-धाम पर अवतार लेंते है.

जय गोमाता जय गोपाल।

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