शनिवार, 22 नवंबर 2014

गो सरंक्षण

अब तक गौरक्षा हेतु धर्मनीति और राजनीति स्तर पर बडे प्रयास हुए लेकिन पूर्ण सफलता नहीं मिली अर्थनीति पर जोर देकर ही गौमाता को बचा सकते है क्योकि सारी दुनियाॅ इस समय धन के पीछे भाग रही हैं अगर सभी गौभक्त गोबर गौमूत्र का उपयोग मानव उपयोगी औषधी, सौन्दर्य प्रसाधन कृषि औषधि, कृषिखाद, बिजली उत्पादन गैस उत्पादन में करने लगे तो गौमूत्र व गोबर 10 रूपये लीटर/ किलो बेचा जा सकता है ऐसे में एक गौमाता 200 रू. प्रतिदिन गौपालक को देती है 10 गौमाता रखने वाले को दूध के अलावा 7 लाख रूपये प्रतिवर्ष लाभ होगा। ऐसी स्थिति में कोई गौमाता को काटने के लिए कत्ल खाने नहीं भेजेगा। हम सभी गौभक्त संकल्प करें की पंच-गव्य से बनी सामाग्री जैसे शेम्पू, जेल, तेल, कृषि औषधि, क्रीम, सीरप, गोली, अगरबत्ती, साबून इत्यादि का ही उपयोग करे।
इस समय हम लोगों की जो दुर्दशा हो रही है, वह इसी पाप का प्रायश्चित हो रहा है जगत का सारा व्यवहार इसी नियम पर चलता है कि जहाँ जिस चीज की मांग होगी, वहीँ उसकी पूर्ति भी होगी, हम लोग भैंस का दूध अधिक पसंद करते हैं और यह नहीं जानते कि भैंस गौ का काल है गांधी जी चिल्ला – चिल्ला के लोगों से यह कह चुके हैं कि केवल गौ के दूध का सेवन करो यदि हम लोग हिन्दू होकर गौ का इतना आदर और उसके लिए इतना त्याग न कर सकें कि अधिक दाम देकर भी गौ का दूध ही लें और भैंस के दूध के स्वाद की इच्छा न करें तो हम लोग गौ को गोमाता कहकर पूजने के अधिकारी नहीं हैं, इसमें स्वाद की इच्छा का त्याग भी नहीं है वैज्ञानिक रीति से यह बात साबित हो चुकी है कि गाय का दूध भैंस से कहीं ज्यादा उत्तम है जब तक कोई चीज कीमती नहीं होती तब तक उसकी बर्बादी नहीं रोकी जा सकती है गोओं को हम बचा सकते हैं, यदि हम गाय के ही दूध का सेवन और गाय के दूध से बने पदार्थों का सेवन करें तो अवश्य ही गाय माता की रक्षा होगी

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