महाभारत अनुशासन पर्व में वृषभ ध्वज की कथा है ।एक समय सुरभि अपने बछड़े को दूध पिला रही थी । उनके स्तनों में मानो दूध का झरना फूट पड़ा, उससे बछड़े के मुंह में दूध का झाग कैलाश पर बैठे शिव जी के मस्तक पर गिरा। शिवजी ने ललाटस्थ तीसरा नेत्र खोला। उस रुद्र तेज से गायों का अनेक वरण वर्ण हो गया । तब प्रजापति ने शिवजी को समझाया कि गौ माता का दूध झूठा नहीं होता, जैसे अमृत झूठा नहीं होता है । पुनः उन्हें कुछ गाये तथा एक वृषभ दिया । श्री शिव जी ने वृषभ को अपना वाहन बना लिया तथा वृषभ को अपनी ध्वजा पर अंकित किया ।अतः उनका नाम वृषभध्वज प्रसिद्ध हुआ । संपूर्ण देवताओं ने उन्हें पशुपति पद पर प्रतिष्ठित किया। सदा शिव गायों के मध्य भजन करने से वृषभान्क कहलाये।