गोपाल संग कजरी गाय....!! (3)
वन विहार के समय आज श्यामसुंदर कुछ उत्तावले से हैं, कजरी उन्हें दूर से निहार रही है।
बालपन से पोंगड अवस्था तक और अब कैशौर्य अवस्था में भी जिस तरह से मूक वनपक्षी व वन्य जीव श्यामसुंदर के हृदय में राधे को लेकर जो योग-वियोग के भाव हैं कजरी भी उनकी स्थिति की पूर्ण साक्षी है।
दरअसल आज श्यामा जु अभी तक वन में नहीं पधारीं हैं जबकि उनकी समस्त सखियां वहाँ आ चुकी हैं।
तो कन्हैया इस परिस्थिति में आज केवल श्यामा जु के बारे में ही सोच रहे हैं और उनकी ही राह तक रहे हैं।
जहाँ सब गईयां वन में विहर रही हैं वहाँ कजरी अभी भी श्यामसुंदर में ही खोई सी है।
उसकी आँखें नम हैं और वह सहज गति से श्याम जु की तरफ ही बढ़ रही है।
श्यामसुंदर एक मधुर छांव वाले वृक्ष के नीचे उदास से बैठे श्यामा जु की राह तक रहे हैं।
वे अपनी कटि पर बंधे परने से बांसुरी निकालते हैं और उसमें राधे जु का नाम आतृ भाव से पुकारने लगते हैं।
कजरी इस धुन को सुनते ही तीव्र गति से श्याम जु की तरफ खिंच सी जाती है।
वंशी की धुन से मुग्ध हुई कजरी वहीं श्यामसुंदर के पास ही जा बैठती है और उन्हें करूणा भरी नज़र से निहारने लगती है।
कन्हैया की आँखें बंद हैं, वे वंशी की धुन में राधे को पुकारते हुए गहरा और गहरा डूबते जा रहे हैं और नहीं जानते कि कजरी वहीं उनके समक्ष है।
उन्हें तो अब ये भी ज्ञात नहीं कि वे वन में गईयां चराने आए हैं।
कजरी इस वियोग भरी वंशी धुन को सुनकर वहीं शीतल घास पर लोटने लगती है और उसके वत्सलता व करूण नेत्रों से भी अश्रु बहने लगते हैं।
कान्हा की वंशी की आतृ ध्वनि पूरे कुंज के वातावरण को गुंजा देती है और सब दिशाओं के वन्य जीव यहाँ तक कि सभी सखागण व सखियां भी व्याकुल हो उठतीं हैं।
वे सब तो जानते ही हैं श्यामसुंदर जु की इस विदशा का कारण श्यामा जु से वियोग है।
सबके कानों में ये वंशी के स्वर पड़ते ही उनके क्रिया काज में विघ्न पड़ने लगता है और हर ओर से पंछियों की करूण चहचहाहट और गईयों के रम्भाने की आवाजें आने लगतीं हैं।
पर कजरी अभी भी सिर्फ और सिर्फ श्यामसुंदर की वंशी की धुन को ही सुन पा रही है, मूक है कोई हलचल नहीं।
बस एकटक कन्हैया को निहारती हुई नम आँखों से, हृदय भीतर वो भी श्यामा जु को ही पुकार रही है।
श्यामसुंदर तो पूरे जग की व्यथा को जानने वाले ठहरे, पर प्रियतमा वियोग में ऐसे डूबे कि अब मिलन हो तो सब दुरूस्त हो।
तभी एकदम से उनके चेहरे पर चित्त को छू लेने वाली मुस्कन।
हाँ प्रियतम मुस्करा दिए और धीरे से नयन खोल कर उन्होंने कजरी को देखा।
कजरी भी उसी क्षण होश संभाल उठ खड़ी होती है और देखती है श्यामसुंदर संग श्यामा जु को गलबहियां डाले दोनों पहले एक दूजे को फिर कजरी को प्रेम से निहारते हुए।
कजरी भी अब भीतर से उन्माद से भर जाती है जैसे उसे आज अपने प्राणधन के प्रिया जु के साथ दिव्य दर्शन हो गए हों।
प्रियाप्रियतम कजरी के समक्ष ही गहन प्रेमालिंगन देते हुए उसे ये जतलाते हैं कि वे दोनों तो अभिन्न हैं और प्रिया जु दूर होते हुए भी श्यामसुंदर की एक ही पुकार पर उनमें से ही प्रकट हो जातीं हैं।
कजरी को दिव्यता प्रदान कर श्यामसुंदर प्रिया जु संग उनके पास आ बैठते हैं और उसके अश्रु पोंछते हुए उसे स्नेह स्पर्श देकर उसे कृतार्थ करते हैं।
धन्य कजरी के भाग कि आज उसकी बरसों की तपस्या पूर्ण हुई।
अब वो वहीं बैठ श्यामाश्याम जु के स्पर्श से भावपूर्ण होकर लीन सी हो जाती है और श्यामसुंदर व प्रिया जु भी वहीं कजरी की आढ़ में बैठे बतियाते रहे और घंटों तक प्रेम में डूबे रहते हैं।
कभी हंसते-मुस्कराते तो कभी इठलाते-बतियाते उन्हें वहाँ शाम होने को है।
इतने में सब सखियां और सखागण वहाँ आ जाते हैं...
खिलखिलाते हंसते-मुस्कराते सब कान्हा और लाडली जु पर खूब मीठे कटाक्ष करते हैं और 'अब देर हो रही है कन्हैया' कहकर घर चलने को कहते हैं।
सखियां भी श्यामा जु को मईया के क्रुद्ध होने का कह कर उन्हें कान्हा से विलग करतीं हैं।
श्यामसुंदर फिर से वंशी की धुन से विदाई लेते हैं और सब गईयों को भी पुकारने लगते हैं।
सब वहाँ एकत्रित होते हैं पर कजरी तो अभी भी अपने भावों में ही खोई है।
तभी कन्हैया उसे पीठ पर सहलाकर उठने को कहते हैं और उसके संग नंदभवन की ओर रूख करते हैं।
क्रमशः
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