गो - महिमा भाग -०१
जिनका अन्तःकरण अतिशय पवित्र हो जाता है वह गो तत्व को समझ सकते हैं । अत्यन्त पवित्र का तात्पर्य है- त्रिगुण अर्थात सत्व, रज तथा तम तीनों से रहित चित्त और बुद्धि गुणातीत हो जाए तो वह पदार्थ की महत्ता को जाना जा सकता है । सनातन धर्म क्या है ? इसके सम्बन्ध में वाल्मीकि रामायण के सुन्दरकाण्ड में पर्वतश्रेष्ठ मैनाक श्री हनुमान जी को सनातन धर्म का रहस्य समझाते हुए कहते हैं कि -
#कृते_च_प्रति_कर्त्तव्यमेष_धर्मस्सनातनः ।।
अर्थात् जिसने हमारे प्रति किञ्चित भी उपकार किया है, उसके प्रति सदा कृतज्ञ रहना , यही सनातन धर्म है । भगवान की सृष्टि में गाय के जैसा कोई कृत अन्य प्राणी नहीं है । प्रेम को स्वीकार करने वाला तथा उपकार का ऐसा उत्तर देने वाला गाय के जैसा कोई प्राणी नही है ।
भगवान् की सृष्टि में गाय जैसा कोई कृतज्ञ प्राणी नहीं है । प्रेम को स्वीकार करने वाला तथा उपकार का ऐसा उत्तर देने वाला गाय के जैसा कोई प्राणी नहीं है अड़सठ करोड़ तीर्थ एवं तैंतीस करोड़ देवताओं का चलता फिरता विग्रह गाय है । सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड पर गाय का जो उपकार है , उसका वर्णन नहीं किया जा सकता । भगवान् के सम्बन्ध में यह बात कही जाती है कि शुक, सनकादि शेष और शारदा भी प्रभु के गुणों का सांगोपांग वर्णन करें, यह संभव नहीं , उन श्री भगवान के चरणों में कोई प्रार्थना करे कि प्रभु आप अपनी उपास्य देवता गौ माता के गुणों का वर्णन करें ,उनके उपकारों का वर्णन तो सम्भवतया भगवान् भी गौ माता के चरण रज को मस्तक पर चढ़ाकर अश्रुपूरित नेत्रों से मूक रहकर ही गौ माता की महिमा का वर्णन करेंगे, ऐसी गौ माता की महिमा है ।
गौ महिमा के विषय में कहा भी गया है -
आगे गाय , पाछे गाय इत गाय उत गाय ।
गायन में नन्दलाल बसिबौहि भावै ।।
गायन के संग धावे, गायन में सचु पावै ।
और गायन की खुर रेणु अंग लपटावै ।।
गायन तैं ब्रज छायो , बैकुण्ठउँ बिसरायो ।
गायन के हेतु कर गिरि लै उठावै ।।
छीतस्वामी गिरिधारी विठ्ठलेश वपुधारी ।
ग्वारिया को भेषधारि गायन में आवे ।।
अर्थात् हम गाय के प्रति जैसा होना चाहिए, वैसा कोई उपकार नहीं कर पा रहे हैं । गाय ही हमारे प्रति उपकार कर रही है। अपने तन, मन, प्राण से अपने रोम-रोम से अपने दूध, दही, घृत, मूत्र एवं गोमय के द्वारा केवल अपनी उपस्थिति से अपने स्वांश- प्रश्वास के द्वारा, अपने खुर की रज से, गोवंश को छूकर प्रवाहित होने वाली वायु से जो सम्पूर्ण जगत् का कल्याण करने वाली है , ऐसी गाय का कितना उपकार है समाज पर, जड़- चेतन सब जीवो पर , उसे कहा नहीं जा सकता ।
गाय के प्रति हम कृतज्ञ हो, यही सनातन धर्म है । हमारी सामान्य सेवा से गाय कृतज्ञ होती है । यत्किञ्चित् गाय की सेवा बन जाए तो उससे गौमाता इतनी सन्तुष्ट होती है, इतनी कृपा करती है कि वह अपने सेवक के प्रति कृतज्ञ रहती है । गाय धर्म का प्रतीक है क्योंकि गाय के जैसी कृतज्ञता मनुष्य में भी नहीं है । गाय के प्रति कृतज्ञ होना यही सनातन धर्म है । आज जितनी भी भयंकर - भयंकर समस्याएं हैं, उन सब का मूल कारण है - रजोगुण और तमोगुण की वृद्धि । सात्विकता कहीं दिखाई नहीं पड़ती । भगवान् ने अपनी सृष्टि में सर्वाधिक सत्वगुण को गाय के भीतर प्रतिष्ठित किया है । गाय सात्विकता का आधार एवं पूज्य है, इसलिए गाय की रक्षा से, गाय की सेवा से, गाय की भक्ति से और गव्य पदार्थों के सेवन से मनुष्य में सात्विक विचार तथा सात्विकता आती है।
।। जय श्री राम ।।
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