गो- महिमा भाग-०३
श्रीमद्भागवत में भी गो की महिमा का बहुत वर्णन किया गया है, उस समय गोवंश कितना समृद्ध था, इस बात की भी चर्चा भागवत के कतिपय प्रसंगों में की गयी है | गोकर्णजी का प्राकट्य गौ से ही है और गाय के उदर से उत्पन्न गोकर्ण महात्मा इतने प्रभावशाली हुए कि भागवत के माहात्म्य में इनकी उपमा श्रीरामजी से की गयी | जैसे भगवान श्रीराम ने समस्त अवधवासियों को अपने नित्यधाम की प्राप्ति करायी, उसी प्रकार महात्मा गोकर्ण की वाणी के प्रसाद से भगवान श्रीकृष्ण का अवतरण हुआ और भगवान द्वारा भागवत के समस्त श्रोताओं को नित्य धाम की प्राप्ति करायी गयी | भागवत के प्रधान वक्ता श्रीशुकदेवजी महाराज भिक्षा में गोदुग्ध ग्रहण करते हैं-ऐसा श्रीमद्भागवत तथा अन्यान्य ग्रन्थों में वर्णित है |
श्रीमद्भागवत में गाय की बहुत बड़ी महिमा वर्णित है | एक गोसेवक भक्त को केवल गोसेवा से भगवान की गोचारणलीला दर्शन एवं नित्य लीला में प्रवेश मिला |
जबतक हमारी बुद्धि में यह बात बनी रहेगी कि गाय पशु है तब तक ठीक से सेवा नहीं बन पायेगी | सेवा सदा सेव्य की होती है, उपासना सदैव उपास्य की होती है और उपासना-सेवा तब संभव है, जब सेव्य के प्रति-उपास्य के प्रति हमारी बुद्धि बन जाय कि वह साक्षात भगवान है | गाय ही साक्षात भगवान है, यह बात हमारे ध्यान में ई जाय और ऐसा ध्यान करके गोसेवा की जाय तो गोसेवा से भगवत्प्राप्ति हो जाय | लेकिन हमारे गाय के प्रति अपराध बनते जाते हैं, इसका कारण हमारी गाय के प्रति पशुबुद्धि बनी रहती है |
श्रीमद्भागवत में गाय की बहुत बड़ी महिमा वर्णित है | एक गोसेवक भक्त को केवल गोसेवा से भगवान की गोचारणलीला दर्शन एवं नित्य लीला में प्रवेश मिला |
जबतक हमारी बुद्धि में यह बात बनी रहेगी कि गाय पशु है तब तक ठीक से सेवा नहीं बन पायेगी | सेवा सदा सेव्य की होती है, उपासना सदैव उपास्य की होती है और उपासना-सेवा तब संभव है, जब सेव्य के प्रति-उपास्य के प्रति हमारी बुद्धि बन जाय कि वह साक्षात भगवान है | गाय ही साक्षात भगवान है, यह बात हमारे ध्यान में ई जाय और ऐसा ध्यान करके गोसेवा की जाय तो गोसेवा से भगवत्प्राप्ति हो जाय | लेकिन हमारे गाय के प्रति अपराध बनते जाते हैं, इसका कारण हमारी गाय के प्रति पशुबुद्धि बनी रहती है |
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