गो- महिमा भाग -०२
इसलिए गाय की रक्षा से,गाय की सेवा से,गाय की भक्ति से और गव्य पदार्थों के सेवन से मनुष्य में सात्विक विचार तथा सात्विकता आती है | सारी समस्याओं का समाधान गोरक्षा से संभव है | बिना गोसेवा एवम् गोरक्षा के विश्वमंगल संभव नहीं | जिस दिन गाय का एक बूंद रक्त भी धरती पर नहीं गिरेगा, उस दिन सारी समस्याओं का उन्मूलन हो जायेगा | सारे विश्व का कल्याण हो जायेगा | यही समझाने को और सिद्धांत की बात है | कहते हैं-
यत्र गावः प्रसन्नाः स्युः प्रसन्नास्तत्र सम्पदः |
यत्र गावो विषण्णाः स्युर्विषण्णास्तत्र सम्पदः ||
यत्र गावः प्रसन्नाः स्युः प्रसन्नास्तत्र सम्पदः |
यत्र गावो विषण्णाः स्युर्विषण्णास्तत्र सम्पदः ||
जहाँ गायें प्रसन्न रहती हैं, वहाँ समस्त सम्पदायें प्रसन्न होकर प्राप्त रहती हैं और जहां गायें दुःखी रहती हैं, वहाँ सम्पदायें दुःखी होकर लुप्त हो जाती हैं | वास्तव में हम गाय के बारे में विचार तो बहुत अधिक करते हैं | कोई हमें गाय के बारे में वक्तव्य देने को कहे तो हम व्याख्यान दे सकते हैं, कोई बहुत बड़ा लेख व्यवस्थित रूप से लिखने को कहे तो लेख भी लिख सकते हैं, लेकिन ईमानदारी से हमारे मन द्वारा गाय की भक्ति नहीं हो पाती | फिर हमारा जो कहा सुना है उसकी कोई महिमा नहीं है, यह तो हम नहीं कह सकते हैं, लेकिन यह एक तरह से मिथ्याचार है | इसलिए हमारे परमपूज्य गुरुदेव ने कहा था कि 'देखो पण्डितजी! जिस दिन एक भी गाय नहीं रखोगे, गाय की सेवा नहीं करोगे, उस दिन गाय के बारे में एक भी वाक्य बोलने के अधिकारी नहीं रहोगे |' इसलिए गाय के बारे में बोलने के अधिकारी बने रहें, इसके लिए चाहे किसी काम में कमी आ जाय लेकिन गोसेवा में कमी नहीं आनी चाहिए | चाहे जैसा संकट भी सहन करके गाय की सेवा करनी चाहिए | पुराणों में गोमहिमा है, स्मृतियों में गोमहिमा है, संतों की वाणी में गोमहिमा है, आवश्यकता है कि वेद से लेकर पुराण, आगम, इतिहास, ग्रन्थ और सन्तों की वाणियाँ- इनका विस्तृत, गहन अध्ययन हो और एक गम्भीर चिन्तन विचारपूर्वक समस्त उद्धरणों को एक जगह संकलित किया जाय, संग्रहीत किया जाय, उनकी व्याख्यायें भी प्रस्तुत की जायें तो हम समझते हैं कि एक विशाल ग्रन्थ तैयार हो जायेगा | इतनी गाय की महिमा है |
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