इस्लाम और शाकाहार: गाय और कुरान - 2
मुजफ्फर हुसैन
गतांक से आगे....
उन्होंने कहा कि आप ईश्वर से हमारे लिए प्रार्थना करो कि वह कैसी हो? सामान्य गाय जैसी हो। हमें मालुम पड़ जाने पर हम सही गाय को ढूंढ सकेंगे? गाय ऐसी हो जो हल चलाने के काम न आ सके, खेत में काम नही कर रही हो, वह पूर्ण हो यानी समस्त अंग सही सलामत हों और बिना किसी धब्बे की हो।।
मूसा ने उत्तर दिया कि वह बिना चिन्ह के होनी चाहिए।
उन्होंने कहा अब आपने हमें ठीक बतला दिया है। हम उसका बलिदान करेंगे, लेकिन वह दुर्लभ है, इसलिए कठिनाई से ही मिल सकेगी। उपर्युक्त कथा यहूदी परंपरा में स्वीकार की गयी है, जो कि ओल्ड टेस्टामेंट के निर्देशों पर आधारित है। गाय की यह यहूदी कथा जिसमें मोजेज और एरोन ने यहूदियों को आदेश दिया कि वे एक लाल गाय, जिसके शरीर पर कोई धब्बा न हो, उसका बलिदान करें। मोजेज ने उस गाय के बलिदान के लिए कहा तब यहूदी एक के बाद एक ऐसे बहाने करने लगे और प्रश्नों की झड़ी लगाने लगे मानो वे मोजेज के आदेशों का पालन कर रहे हों। उनके प्रश्नों की झड़ी लगाने लगे मानो वे मोजेज के आदेशों का पालन कर रहे हों। उनके प्रश्नों में आलोचना अधिक थी, उन्हें जानने की कोई इच्छा नही थी। उनमें मार्गदर्शन प्राप्त करने के लिए कोई उत्सुकता अथवा कामना नही थी। अंत में वे वैसा करने के लिए तैयार हो गये। उन्होंने बलिदान तो किया, लेकिन पूरी आस्था के साथ नही। यदि किया होता तो उनके समस्त पापों को क्षमा कर दिया जाता। गाय के शरीर को जला दिया गया और हड्डियों की भस्म को पापों से मुक्ति प्राप्ति के लिए सुरक्षित रख लिया। उपयुक्त कथा से हमें यह शिक्षा मिलती है कि गाय को मारना अत्यंत खतरनाक था और यह उपदेश का कोई भाग नही था। जहां तक लोगों का प्रश्न था, वे यह काम करने में बड़ी हिचकिचाहट महसूस कर रहे थे। यद्यपि उनको यह आदेश महान पैगंबर हजरत मूसा से मिला था। इसलिए गाय का यह बलिदान कोई जल्दबाजी या सनक में लिया गया निर्णय नही था, बल्कि बहुत सारी बातों को ध्यान में रखकर लिया गया था। गाय के बलिदान की बात उसके मांस को खाने के लिए नही कही गयी थी, बल्कि गाय के शरीर को जलाने के लिए कहा गया था। उसकी भस्म पापों से मुक्त और पवित्र आदर्श के लिए उपयोग करने के लिए कहा गया था।
यह बात बड़ी महत्वपूर्ण है कि वर्तमान समय में भी गाय का बलिदान प्रतिबंधित है। क्योंकि आज की दुनिया में कोई भी ऐसा विद्वान व्यक्ति मौजूद नही है, जो इस प्रकार के बलिदान की क्रिया पूरी कर सके और लोगों को सही परिप्रेक्ष्य में समझा सके। इस आधार पर यह कहा जा सकता है कि कुरान में गाय को मारने की कहीं भी स्वीकृति प्रदान नही की गयी है।
जिस गाय के बलिदान का वर्णन है, वह कोई मांस खाने के संबंध में नही है, बल्कि अपने पापों से प्रायश्चित करके शुद्घि प्राप्ति के हेतु से है। प्रसिद्घ ईरानी विद्वान अलगजाली जो इसलाम के दार्शनिक के रूप में विख्यात हैं, उनका कहना है कि रोटी के टुकड़े के अतिरिक्त जो भी हम खाते हैं, वह केवल अपनी इच्छाओं की पूर्ति के लिए है।
क्रमश:
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