"प्रिये गौ माता प्रिये गोपाल"
आज जिस तरह से बीमारियों ने हर व्यक्ति को जकड़ लिया है, उसमें एक मात्र उपाय गाय हैं। गाय एक मात्र प्राणी है जिसके शरीर से निकलने वाली हर वस्तु उपयोगी है। वैज्ञानिक परीक्षण के आधार पर बताया गया है कि गाय के गोबर में 23 प्रतिशत ऑक्सीजन होता है और जब इसके कण्डे बन जाते है तो आक्सीजन की मात्रा 27 प्रतिशत हो जाती है। वैज्ञानिकों को आश्चर्य तो तब हुआ जब कंडे की राख की जांच की गई तो 47 प्रतिशत ऑक्सीजन नापा गया। उन्होंने कहा कि मैं यह नहीं कहती कि आप गोबर खाए, लेकिन जिस प्रकार हम दूध और मूत्र का उपयोग कर रहे है तो उसी प्रकार गोबर का भी उपयोग करें। गोबर की राख के दो चम्मच पानी के मटके में घोल दें और फिर उस पानी को पिएं। राख के पानी को पीने से शरीर में कोई रोग नहीं होगा। डॉ शर्मा ने कहा कि हमारी देशी नस्ल की गाय के महत्व को देखते हुए ही एक षडय़ंत्र के तहत भारत में वर्णशंकर अथवा जर्सी गाय का चलन बढ़ा दिया गया। जर्सी गाय का दूध पीने का मतलब है कि सूअर का दूध पीना। देशी गाय के दूध में जो ताकत होती है, वैसी जर्सी गाय के दूध में नहीं होती। 1935 में अंग्रेजों ने एक फरमान जारी कर हमारे नंदी का वध करने का आदेश दे दिए थे। उन्होंने कहा कि गाय एक मात्र पशु है जो श्वास में भी ऑक्सीजन छोड़ता है। आज जो कैंसर जैसे रोग हो रहे हैं उसका कारण है कि हमारे शरीर में कार्बन की मात्रा बढऩा है, लेकिन जो लोग गायों के बीच रहते हैं उन्हें कभी भी रोग नहीं होता। डॉ. शर्मा ने कहाकि देशवासी भगवान कृष्ण को तो मानते हैं, लेकिन जिस कृष्ण ने गाय को माता मानकर जंगलों में चराया, उस गाय से प्रेम नहीं करते हैं। भगवान कृष्ण गाय का मक्खन चुराकर नहीं खाते थे, बल्कि इसके पीछे उन्होंने यह संदेश दिया कि गाय के दूध से बनने वाले उत्पाद को खाना कितना जरूरी है। जो लोग वास्तुशास्त्र जानते हैं, उनका भी कहना है कि जिस स्थान पर गाय रहती है और जहां गोबर और उसका मूत्र गिरता है, उस स्थान पर वास्तु दोष हो ही नहीं सकता। गाय के एक किलो दूध में 60प्रतिशत तो सोना होता है, इसलिए गाय के दूध में पीपालन होता है। इस दूध का घी भी पीला ही नजर आता है।
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