यदि आप अपने आपको बुद्धिमान समझते हैं और आप खामोश है तो आप कातिल हो, हत्यारे हो। बुद्धिजीवियों की खामोशी ने देशी गाय की जान ले ली। यदि आप आज बाजार में दारू के भाव देखोगे तो गुणवत्ता के हिसाब से किमतों में बहुत फर्क है। परंतु गाय चाहे कैसी भी हो दूध एक ही भाव बिकता है। गौ माता के साथ ये अन्याय क्यों?
इन चीजों का मूल्य निर्धारण करने वाले ठेकेदारों ने दूध का मूल्य गुणवत्ता के हिसाब क्यों नहीं निर्धारित किया? अब इन अक्षर ज्ञान वाले पढ़े लिखे गँवारों को क्या कहें?
इस डेयरी उद्योग की वजह से गाँवों के भोले-भाले किसानों ने लोभवश देशी गाय को घर से बाहर निकाल दिया और एक विदेशी जानवर घर लाकर मूर्खतापूर्ण दूध बेचने की प्रतियोगिता शुरू कर दी।
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