हिंदू धर्म में गाय के ग्रंथों में लिखा है कि गाय का दूध अमृत होता है। जिसको यह पीने के लिए मिलता है वह किस्मत वाला होता हैं। ऐसे किसी ग्रंथ या पौराणिक कथा में कहीं नहीं लिखा गया कि कोई बच्चा या बड़ा दूध से भी नफरत करेगा क्योंकि गाय के दूध की तुलना अमृत से की गई है। नफरत तो लोग जहर से करते हैं इसलिए ही तो कोई जहर नहीं पीता।
मनुष्य का बच्चा अभी भी प्राकृतिक ही है। बच्चे नादान होते हैं। वे सच्चे होते हैं इसीलिए ही भोले होते हैं। जो चीज उनको पसंद होती है, उसे पाकर वे खुश होते हैं। मतलब जो चीज उन्हें खुश करती है, आनंद देती है वे उसे फिर से करना चाहते हैं। जैसे गर्मी के दिनों में यदि वे पानी के नल के पास पहुँच जाएँ तो वे पूरे दिन नहाना पसंद करेंगे क्योंकि उनको मजा आता है।
आजकल देशी गायें तो सिर्फ कुछ गौ शालाओं में ही देखने को मिलती है। लोगों ने एक biotechnology से modified विदेशी जानवर को पाल लिया है। उस जानवर का दूध अधूरा बना होता है। यह दूध बड़े लोग तो कोरा ही या फिर चाय में मिलाकर पी जाते हैं। परंतु बच्चे एक बार पी लेते हैं तथा उसको कुछ दिनों तक पीते हैं तो धीरे-धीरे उनका दिमाग उस दूध से (irritated हो जाता है) घृणा करने लगता है।
अब सोचने वाली बात यह है कि बच्चों को भाषा का का इतना ज्ञान नहीं होता है कि वो आपको समझा सके, उस मनोदशा को शब्दों में पिरोकर आपको बता सके। उनके पास शब्दों की कमी होती है। और आपके पास शब्द समझने का तो ज्ञान होता है परंतु आप बच्चों की भावनाओं (feelings) को समझ नहीं पाते हो।
इन कृत्रिम जानवरों का नकली दूध मनुष्य के लिए धीमा जहर है। बड़ों का तो दिमाग थोड़ा विकसित होता है इसलिए वे उसको पी लेते हैं। अब ये समझदार बड़े लोग कर भी तो क्या सकते हैं क्योंकि खाने के लिए कोई ओर विकल्प तो बचा नहीं है। इसलिए मजबूरी वश वे इस धीमे जहर की घुट को पी लेते हैं।
अब रही बात बच्चों की, उनको किसी बात को शब्दों में पिरोना तो आता नहीं है परंतु उनके मन को (शरीर +दिमाग+आत्मा) यह अच्छी तरह पता रहता है कि क्या चीज खाना / पीना उनके लिए सही है। इसलिए बार-बार समझाने पर भी वे दूध पीने से मुकर जाते हैं। परंतु फिर भी कुछ माँ-बाप उनको blackmail करके, पीटकर या गुमराह करके जैसे दूध को चाय या अन्य किसी चीज के साथ मिलाकर, पिलाकर ही दम लेते हैं। ऐसे बाल-शोषण करने वालों को फिर वही बच्चे बुढ़ापे में blackmail करते हैं।
अब यदि कोई बच्चा देशी गाय व बैल के साथ रहता है तो वह दूध तो जरूर पिएगा। आप कुछ दिनों तक देशी गायों का दूध पीकर तो देखो।
एक बात हमेशा याद रखे- यदि आपने कोई गाय पाल रखी है या फिर किसी से गाय का दूध खरीदते हैं तो एक बार सभी सदस्य खाली पेट, उस गाय का कच्चा दूध धापके पीकर देखें, यदि आपका मन अजीब महसूस करता है तो याद रखे कि उस दूध में थोड़ा सा biotechnology का हाथ जरूर है।
यदि आप सोचते हो कि आप अपने बच्चों के लिए ही कमा रहे हो तो फिर कृत्रिम दूध पीलाकर अपने बच्चों का दिमाग कमजोर क्यों करने में लगे हों?
एक बात ओर, आजकल बहुत सी शंकर नस्लें भी कुछ मूर्खों ने बना दी हैं। उनके दूध से भी बचे।
मनुष्य का बच्चा अभी भी प्राकृतिक ही है। बच्चे नादान होते हैं। वे सच्चे होते हैं इसीलिए ही भोले होते हैं। जो चीज उनको पसंद होती है, उसे पाकर वे खुश होते हैं। मतलब जो चीज उन्हें खुश करती है, आनंद देती है वे उसे फिर से करना चाहते हैं। जैसे गर्मी के दिनों में यदि वे पानी के नल के पास पहुँच जाएँ तो वे पूरे दिन नहाना पसंद करेंगे क्योंकि उनको मजा आता है।
आजकल देशी गायें तो सिर्फ कुछ गौ शालाओं में ही देखने को मिलती है। लोगों ने एक biotechnology से modified विदेशी जानवर को पाल लिया है। उस जानवर का दूध अधूरा बना होता है। यह दूध बड़े लोग तो कोरा ही या फिर चाय में मिलाकर पी जाते हैं। परंतु बच्चे एक बार पी लेते हैं तथा उसको कुछ दिनों तक पीते हैं तो धीरे-धीरे उनका दिमाग उस दूध से (irritated हो जाता है) घृणा करने लगता है।
अब सोचने वाली बात यह है कि बच्चों को भाषा का का इतना ज्ञान नहीं होता है कि वो आपको समझा सके, उस मनोदशा को शब्दों में पिरोकर आपको बता सके। उनके पास शब्दों की कमी होती है। और आपके पास शब्द समझने का तो ज्ञान होता है परंतु आप बच्चों की भावनाओं (feelings) को समझ नहीं पाते हो।
इन कृत्रिम जानवरों का नकली दूध मनुष्य के लिए धीमा जहर है। बड़ों का तो दिमाग थोड़ा विकसित होता है इसलिए वे उसको पी लेते हैं। अब ये समझदार बड़े लोग कर भी तो क्या सकते हैं क्योंकि खाने के लिए कोई ओर विकल्प तो बचा नहीं है। इसलिए मजबूरी वश वे इस धीमे जहर की घुट को पी लेते हैं।
अब रही बात बच्चों की, उनको किसी बात को शब्दों में पिरोना तो आता नहीं है परंतु उनके मन को (शरीर +दिमाग+आत्मा) यह अच्छी तरह पता रहता है कि क्या चीज खाना / पीना उनके लिए सही है। इसलिए बार-बार समझाने पर भी वे दूध पीने से मुकर जाते हैं। परंतु फिर भी कुछ माँ-बाप उनको blackmail करके, पीटकर या गुमराह करके जैसे दूध को चाय या अन्य किसी चीज के साथ मिलाकर, पिलाकर ही दम लेते हैं। ऐसे बाल-शोषण करने वालों को फिर वही बच्चे बुढ़ापे में blackmail करते हैं।
अब यदि कोई बच्चा देशी गाय व बैल के साथ रहता है तो वह दूध तो जरूर पिएगा। आप कुछ दिनों तक देशी गायों का दूध पीकर तो देखो।
एक बात हमेशा याद रखे- यदि आपने कोई गाय पाल रखी है या फिर किसी से गाय का दूध खरीदते हैं तो एक बार सभी सदस्य खाली पेट, उस गाय का कच्चा दूध धापके पीकर देखें, यदि आपका मन अजीब महसूस करता है तो याद रखे कि उस दूध में थोड़ा सा biotechnology का हाथ जरूर है।
यदि आप सोचते हो कि आप अपने बच्चों के लिए ही कमा रहे हो तो फिर कृत्रिम दूध पीलाकर अपने बच्चों का दिमाग कमजोर क्यों करने में लगे हों?
एक बात ओर, आजकल बहुत सी शंकर नस्लें भी कुछ मूर्खों ने बना दी हैं। उनके दूध से भी बचे।
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