़़़़़़़़़़़़़़गौदूग्ध ़़़़़़़़़़़
१. प्रवरं जीवनीयानां क्षीरमुक्त्तं रसायनम् ।।
अर्थात -सुश्रुत ने भी गौदूग्ध को जीवनीय कहा है । गौदूग्ध जीवन के लिए उपयोगी ।ज्वरव्याधि- नाशक रसायन ,रोग और वृद्धावस्था को नष्ट करने वाला ,क्षतक्षीणरोगीयों के लिए लाभकारी,बुद्धिवर्धक ,बलवर्धक ,दुग्धवर्धक,तथा किचिंत दस्तावरहै ।और क्लम (थकावट) चक्कर आना मद, अलक्ष्मी को दूर करता है ।और दूग्ध आयु स्थिर रखता है,और उम्र को बढ़ाता है ।
२. गाय के दूध का सेवन करते रहने पर कोलेस्ट्राल की वृद्धि नहीं होती ,क्योंकि उसमें विद्धमान" ओरोटिक अम्ल उसे कम कर नियन्त्रित रखता है ।गाय के दूध में कार्बोहाइड्रेट का स्त्रोत लैक्टोज है ,जो विषेशत: नवजात शिशुओ को ऊर्जा। प्रदान करता है ,मानव एंव गाय के दूध में इसकी मात्रा क्रमश:७ तथा ४.८प्रतिशत होती है ।
३. गौदूग्ध अमृततुल्य है ।इसमें ८७.१ प्रतिशत जल तथा १२.९ प्रतिशत घनपदार्थ है ।ए,डी,ई,बी,और सी जीवन सत्त्व है ।इसके अलावा प्रोटिओज, लैक्ओम्युसिन, और मद्धद्रावक प्रोटीन भी अंशत: पाये जाते है ।
४. दूध में प्रोटीन रहित नाईट्रोजन वाले पदार्थ (लैक्टोक्रोम क्रिएटीन, युरिया ,थियोसवनिक एसिड, ओरोटिक एसिड ,हाइपोक्सेन्थीन, जैन्थीन, और यूरिक एसिड ,कोलिनट्राइमेथिलेमिन,ट्राइमेथिलेमिन आक्साइड ,मेथिल ग्वेनिडिन और अमोनियाक्षार)पाये जाते है ।और फास्फोरस वाले पदार्थ (फ्री फास्फेट ,फास्फेट केसीन के साथ मिला हुआ लेसिथिन और सिफेलिन ,डाइमिनो मोनोफास्फोटाइड तथा तीन अम्ल द्रावक सेन्द्रिय फास्फोरस यौगिक ) पाये जाते है ।
५. दूध तत्वों की खास विशेषता यह है ,की वे हमारे भोजन के अन्य पदार्थ -आटा, चावल, आलू, फल-फूल ,शाक, आदि के दोष को नष्ट करने में ,इन पदार्थों को उच्चतर रूप में पलटने में ,इन्हें सुपाच्य बनाने में सहायता करता है ।
६. दूध में कम से कम ५० पदार्थ सवा सौ-- डेढ सौ रूपों में रहते है ।इतना सर्वगुणसम्पन्न और सब प्रकार से परिपूर्ण पौष्टिक और साथ ही बुद्धि में सात्विकता उत्पन्न करने वाला बहुत सस्ता आहार है ।
७. गौ का धारोष्णदूध बलकारक ,लघु ,शीत ,अमृत के समान ,अग्निप्रदीपक ,त्रिदोषशामक होता है । प्रात:काल पिया हुआ दूध वृष्य ,बृहण ,तथा अग्निदीपक होता है ,दोपहर में पिया हुआ दूध बलवर्धक ,कफनाशक ,पित्तनाशक होता है और रात्रि में पिया हुआ दूध बालक के शरीर को बढ़ाता है ।इसलिए दूध प्रतिदिन पीना चाहिए ।
८. शरीर के ९५ प्रतिशत रोग अमाशय के विकार ,रोग-कीटाणु ,वायु और अणुसृष्टि से उत्पन्न होते है ,इन सब विपत्तियों को टालने की शक्ति दूध-दही की अणुसृष्टि में है । दूध -दही में उत्तमप्रकार के पोषण पदार्थ (अणु )अधिक मात्रा में है । ३५ बूंद दूध ( १क्यूबिकसेंटीमीटर ) में ५ सें १० लाख और छाछ में ५ से १० करोड़ पोषक अणु रहते है ।इनका उपयोग रोगाणुओ को मार भगाना है ।
९. सभी दूध दही में एक ही प्रकार के उत्तम अणु नहीं होते ।इसलिए जो भी दूध- दही मिले उसे पीना ठीक नहीं है ।दूध -दही ,उनके बर्तनों की वातावरण आदि की सफाई का विषेश ध्यान रखना आवश्यक है ।दूध- दही छाछ में जो अणूदि्भजनक मूल्य होते वह विशेष रूप से लैक्टिक एसिड बैक्टीरिया ,तथा बेसलिस बल्गेरिक्स जाति के है ।उनमें जीवन रक्षक तत्व होता है दूसरे प्रकार के अणुजीवों कें प्रवेश से दही खट्टा हो जाता है ,गंध ,रंग ,स्वाद में विकार उत्पन्न हो जाता है ।
१०. बिना तपाया हूआ दूध घंटों तक पड़ा रहे तो उसमें हवा धूल प्रकाश आदि के कारण हानिकारक परिवर्तन होता है । ताज़ा या धारोष्णदूध में अणुद्भिजों की बहुलता रहती है अत: वह दही जमाने के लिए अच्छा होता है ।दूध को मंदआँच पर उबाल लो ।फिर ठंडा करके उसमें पिछले दिन का साफ़ दही जामन के रूप में १ प्रतिशत ( जाड़े के दिन में २ प्रतिशत ) डालकर उसे अच्छी तरह हिलाकर छोडदे ।कँाच के बर्तन में दही अच्छा नहीं जमता ।मिट्टी के बर्तन आर्दश होते है जो दही एकसमान हो ,पानी न छूटा हो ,फुदकी न पड़ी हो ,स्वाद में खट्टामीठा हो वह दही लाभ करता है ।दही में ज्यादा जल डालने पर छाछ का पोषणमुल्य घटेगा । हवा ,प्काश ,धूप और धूऐं से उसके अनिवार्य सुक्ष्म तत्व घटेगे ।
१. प्रवरं जीवनीयानां क्षीरमुक्त्तं रसायनम् ।।
अर्थात -सुश्रुत ने भी गौदूग्ध को जीवनीय कहा है । गौदूग्ध जीवन के लिए उपयोगी ।ज्वरव्याधि- नाशक रसायन ,रोग और वृद्धावस्था को नष्ट करने वाला ,क्षतक्षीणरोगीयों के लिए लाभकारी,बुद्धिवर्धक ,बलवर्धक ,दुग्धवर्धक,तथा किचिंत दस्तावरहै ।और क्लम (थकावट) चक्कर आना मद, अलक्ष्मी को दूर करता है ।और दूग्ध आयु स्थिर रखता है,और उम्र को बढ़ाता है ।
२. गाय के दूध का सेवन करते रहने पर कोलेस्ट्राल की वृद्धि नहीं होती ,क्योंकि उसमें विद्धमान" ओरोटिक अम्ल उसे कम कर नियन्त्रित रखता है ।गाय के दूध में कार्बोहाइड्रेट का स्त्रोत लैक्टोज है ,जो विषेशत: नवजात शिशुओ को ऊर्जा। प्रदान करता है ,मानव एंव गाय के दूध में इसकी मात्रा क्रमश:७ तथा ४.८प्रतिशत होती है ।
३. गौदूग्ध अमृततुल्य है ।इसमें ८७.१ प्रतिशत जल तथा १२.९ प्रतिशत घनपदार्थ है ।ए,डी,ई,बी,और सी जीवन सत्त्व है ।इसके अलावा प्रोटिओज, लैक्ओम्युसिन, और मद्धद्रावक प्रोटीन भी अंशत: पाये जाते है ।
४. दूध में प्रोटीन रहित नाईट्रोजन वाले पदार्थ (लैक्टोक्रोम क्रिएटीन, युरिया ,थियोसवनिक एसिड, ओरोटिक एसिड ,हाइपोक्सेन्थीन, जैन्थीन, और यूरिक एसिड ,कोलिनट्राइमेथिलेमिन,ट्राइमेथिलेमिन आक्साइड ,मेथिल ग्वेनिडिन और अमोनियाक्षार)पाये जाते है ।और फास्फोरस वाले पदार्थ (फ्री फास्फेट ,फास्फेट केसीन के साथ मिला हुआ लेसिथिन और सिफेलिन ,डाइमिनो मोनोफास्फोटाइड तथा तीन अम्ल द्रावक सेन्द्रिय फास्फोरस यौगिक ) पाये जाते है ।
५. दूध तत्वों की खास विशेषता यह है ,की वे हमारे भोजन के अन्य पदार्थ -आटा, चावल, आलू, फल-फूल ,शाक, आदि के दोष को नष्ट करने में ,इन पदार्थों को उच्चतर रूप में पलटने में ,इन्हें सुपाच्य बनाने में सहायता करता है ।
६. दूध में कम से कम ५० पदार्थ सवा सौ-- डेढ सौ रूपों में रहते है ।इतना सर्वगुणसम्पन्न और सब प्रकार से परिपूर्ण पौष्टिक और साथ ही बुद्धि में सात्विकता उत्पन्न करने वाला बहुत सस्ता आहार है ।
७. गौ का धारोष्णदूध बलकारक ,लघु ,शीत ,अमृत के समान ,अग्निप्रदीपक ,त्रिदोषशामक होता है । प्रात:काल पिया हुआ दूध वृष्य ,बृहण ,तथा अग्निदीपक होता है ,दोपहर में पिया हुआ दूध बलवर्धक ,कफनाशक ,पित्तनाशक होता है और रात्रि में पिया हुआ दूध बालक के शरीर को बढ़ाता है ।इसलिए दूध प्रतिदिन पीना चाहिए ।
८. शरीर के ९५ प्रतिशत रोग अमाशय के विकार ,रोग-कीटाणु ,वायु और अणुसृष्टि से उत्पन्न होते है ,इन सब विपत्तियों को टालने की शक्ति दूध-दही की अणुसृष्टि में है । दूध -दही में उत्तमप्रकार के पोषण पदार्थ (अणु )अधिक मात्रा में है । ३५ बूंद दूध ( १क्यूबिकसेंटीमीटर ) में ५ सें १० लाख और छाछ में ५ से १० करोड़ पोषक अणु रहते है ।इनका उपयोग रोगाणुओ को मार भगाना है ।
९. सभी दूध दही में एक ही प्रकार के उत्तम अणु नहीं होते ।इसलिए जो भी दूध- दही मिले उसे पीना ठीक नहीं है ।दूध -दही ,उनके बर्तनों की वातावरण आदि की सफाई का विषेश ध्यान रखना आवश्यक है ।दूध- दही छाछ में जो अणूदि्भजनक मूल्य होते वह विशेष रूप से लैक्टिक एसिड बैक्टीरिया ,तथा बेसलिस बल्गेरिक्स जाति के है ।उनमें जीवन रक्षक तत्व होता है दूसरे प्रकार के अणुजीवों कें प्रवेश से दही खट्टा हो जाता है ,गंध ,रंग ,स्वाद में विकार उत्पन्न हो जाता है ।
१०. बिना तपाया हूआ दूध घंटों तक पड़ा रहे तो उसमें हवा धूल प्रकाश आदि के कारण हानिकारक परिवर्तन होता है । ताज़ा या धारोष्णदूध में अणुद्भिजों की बहुलता रहती है अत: वह दही जमाने के लिए अच्छा होता है ।दूध को मंदआँच पर उबाल लो ।फिर ठंडा करके उसमें पिछले दिन का साफ़ दही जामन के रूप में १ प्रतिशत ( जाड़े के दिन में २ प्रतिशत ) डालकर उसे अच्छी तरह हिलाकर छोडदे ।कँाच के बर्तन में दही अच्छा नहीं जमता ।मिट्टी के बर्तन आर्दश होते है जो दही एकसमान हो ,पानी न छूटा हो ,फुदकी न पड़ी हो ,स्वाद में खट्टामीठा हो वह दही लाभ करता है ।दही में ज्यादा जल डालने पर छाछ का पोषणमुल्य घटेगा । हवा ,प्काश ,धूप और धूऐं से उसके अनिवार्य सुक्ष्म तत्व घटेगे ।
11.उपनिषद्, महाभारत,चरकसंहिता,अष्टंागहृदय,भावप्रकाश,निघंटु,आर्यभिषेक,आिद ग्रंथों में तथा विज्ञान और साहित्य में गाय के दूध की महिमा गाई गई है ।
1२.गाय तो भगवान की भगवान है, भूलोक पर गाय सर्वश्रेष्ठ प्राणी है ।
1३.दूध जैसा पौष्टिक और अत्यन्त गुण वाला ऐसा अन्य कोई पदार्थ नहीं है ।दूध जो मृत्युलोक का अमृत है ।सभी दूधों में अपनी माँ का दूध श्रेष्ठ है,और माँ का दूध कम पड़ा तो वहाँ से गाय का दूध बच्चों के लिए अमृत सिद्ध हुआ है ।
1४.गौदु््ग्ध मृत्युलोक का अमृत है मनुष्यों के लिए । शक्तिवर्धक,रोगप्रतिरोधक,रोगनाशक तथा गौदुग्ध जैसा दिव्य पदार्थ त्रिभुवन में भी अजन्मा है ।
1५.गौदुग्ध अत्यन्त स्वादिष्ट स्िनग्ध,कोमल,मधुर,शीतल,रूचीकर,बुद्धिवर्धक,बलवर्धक,स्मृति वर्धक ,जीवनीय,रक्तवर्धक,तत्काल वीर्यवर्धक ,बाजीकरण,्स्थिरता प्रदान करने वाला,ओजप्रदान करने वाला ,देहकान्ति बढ़ाने वाला सर्वरोगनाशक ,अमृत के समान है ।
1६.आधुनिक मतानुसार गौदुग्ध में विटामिन "ए" पाया जाता है जो कि अन्य दूध में नहीं विटामिन "ए" रोग -प्रतिरोधक है जो आँख का तेज बढ़ाता है और बुद्धि को सतर्क रखता है ।
1७.गौदुग्ध शीतल होने से ऋतुओ के कारण शरीर में बढ़ने वाली गर्मी नियन्त्रण में रहती है वरन् हगंभीर रोगों के होने की प्रबल संभावना रहती है ।
1८.गौदुग्ध जीर्णज्वर मानसिकरोग,शोथरोग,मुर्छारोग,भ्रमरोग,संग्रहणीरोग,पाण्डूरोग,जलन,तृषारोग,हृदयरोग शूलरोग,उदावर्तगुल्म ,रक्तपित,योनिरोग,और गर्भस्राव में हमेशा उपयोगी है ।
1९.गौदुग्ध वात पित्तनाशक है,दमा,कफ,स्वास,खाँसी प्यास,भूख मिटाने वाला है ।गोलारोग,उन्माद,उदररोगनाशक है ।
2०.गौदुग्ध मू््त्ररोग तथा मदिरा के सेवन से होने वाले मदात्यरोग के लिए लाभकारी है ।गौदुग्ध जीवनोउपयोगी पदार्थ अतन्त श्रेष्ठ रसायन है तथा रसों का आश्रय स्थान है जो कि बहुत पौष्टिक है ।
२१.गौदुग्ध के प्रतिदिन सेवन करने वाले व्यकि्त को बुढापा नहीं सताता है वृद्धावस्था में होने वाली तकलीफो से मुक्ति मिल जाती है।
२२.शारीरिक ,बौद्धिक श्रम की थकावट तारे, दूध के सेवन से राहत दिलाती है।
२३.भोजन के पूर्व में छाती में दर्द या डाह होता है तो भोजन पश्चात गौदुग्ध केसेवन से दर्द/डाह शान्त हो जाता है।
२४.वे व्यकि्त जो अत्यन्त तीखा,खट्टा,कड़वा,खारा,दाहजनक गर्मी करने वाला अौर विपरीत गुणोंवाले पदार्थ खाते है उनको सा़ंयकाल भोजनोपरांत गौदुग्ध का सेवन करना चाहिए,जिससे हानिकारक भोजन से होने वाली विकृतियाे का दुष्प्रभाव समाप्त हो जाता है
२५.गौदुग्ध से तुरन्त वीर्यशिक्त उत्पन्न होती है,जबकि आवाज स्े वीर्यवर्धक पैदा होने में अनुमानत: एक माह का समय लगता है।माँस,अण्डे एंड अन्य दासी पदार्थों केसेवन से वीर्यवर्धक का नाश होता है जबकि गौदुग्ध से वृद्धि होती है ,लम्बी बीमारी से त्रस्त व्यकि्त को नवजीवन मिलता है।
२६.गौदुग्ध शरीर में उत्पन्न होनेवाले जहर का नाश करता है।एलौपैथि दवाईया ,फर्टीलाईजर,रासायनिक खाद,कीटनाशक दवाईयाें आदि से वायु जल एंव अन्न के द्वारा शरीर में उत्पन्न होने वाले जहर को समाप्त करने की क्षमता केवल गौदुग्ध में ही है।
२७.आयुर्वेद में गाय के ताजे निकाले दूध को अति उत्तम कहा गया है।
२८.गाय के ताजे दूध को ब्रहममुर्हत में प्रात: ४बजे से ६बजे के बीच में खड़े रहकर प्रतिदिन नाक के द्वारा पीने से रात्रि अंधकार में भी देखा जा सकता है।
२९.गाय के दूध से बनने वाले व्यंजन जैसे पैसे,बर्फी,छेड़, रसगूल्ला इत्यादि पौष्टिक स्वादिष्ट,बलवर्धक,वीर्यवर्धक एंव शरीर का तेज बढानेवाले होते है
३०.गौदुग्ध से बनने वाले व्यंजन लम्बे समय तक खराब नहीं होते जबकि भैंस एंव अन्य पशुओं के दूध से बनने वाले व्यंजन जल्दी खराब होते है
२२.शारीरिक ,बौद्धिक श्रम की थकावट तारे, दूध के सेवन से राहत दिलाती है।
२३.भोजन के पूर्व में छाती में दर्द या डाह होता है तो भोजन पश्चात गौदुग्ध केसेवन से दर्द/डाह शान्त हो जाता है।
२४.वे व्यकि्त जो अत्यन्त तीखा,खट्टा,कड़वा,खारा,दाहजनक गर्मी करने वाला अौर विपरीत गुणोंवाले पदार्थ खाते है उनको सा़ंयकाल भोजनोपरांत गौदुग्ध का सेवन करना चाहिए,जिससे हानिकारक भोजन से होने वाली विकृतियाे का दुष्प्रभाव समाप्त हो जाता है
२५.गौदुग्ध से तुरन्त वीर्यशिक्त उत्पन्न होती है,जबकि आवाज स्े वीर्यवर्धक पैदा होने में अनुमानत: एक माह का समय लगता है।माँस,अण्डे एंड अन्य दासी पदार्थों केसेवन से वीर्यवर्धक का नाश होता है जबकि गौदुग्ध से वृद्धि होती है ,लम्बी बीमारी से त्रस्त व्यकि्त को नवजीवन मिलता है।
२६.गौदुग्ध शरीर में उत्पन्न होनेवाले जहर का नाश करता है।एलौपैथि दवाईया ,फर्टीलाईजर,रासायनिक खाद,कीटनाशक दवाईयाें आदि से वायु जल एंव अन्न के द्वारा शरीर में उत्पन्न होने वाले जहर को समाप्त करने की क्षमता केवल गौदुग्ध में ही है।
२७.आयुर्वेद में गाय के ताजे निकाले दूध को अति उत्तम कहा गया है।
२८.गाय के ताजे दूध को ब्रहममुर्हत में प्रात: ४बजे से ६बजे के बीच में खड़े रहकर प्रतिदिन नाक के द्वारा पीने से रात्रि अंधकार में भी देखा जा सकता है।
२९.गाय के दूध से बनने वाले व्यंजन जैसे पैसे,बर्फी,छेड़, रसगूल्ला इत्यादि पौष्टिक स्वादिष्ट,बलवर्धक,वीर्यवर्धक एंव शरीर का तेज बढानेवाले होते है
३०.गौदुग्ध से बनने वाले व्यंजन लम्बे समय तक खराब नहीं होते जबकि भैंस एंव अन्य पशुओं के दूध से बनने वाले व्यंजन जल्दी खराब होते है
३१. गौदुग्ध दूग्ध में देवी तत्वों का वास है ।गाय के दूध में अधिक से अधिक तेज तत्व है ।प्रकृति सात्विक बनती है ।व्यक्ति के प्राकृतिक विकार एंव विकृति दूर होती है ।असामान्य और विलक्षण बुद्धि आती है ।
३२.गाय की पाचनशक्ति श्रेष्ठ है ।अगर कोई जहरीला पदार्थ खा लेती है तो उसे आसानी से पचा लेती है फिर भी उसके दूध में जहर का कोई असर नहीं होता है ।डाॅ पीपल्स ने गोदुग्ध पर किये गये परीक्षणो में यह भी पाया कि यदि गाय कोई विषैला पदार्थ खा जाती है तो भी उसका प्रभाव उसके दूध में नहीं आता ।उसके शरीर में सामान्य विषों को पचाने की अदभूत शक्ति है
३३.गौदूग्ध से बनी व अन्य व्यन्जन बच्चो को खिलाने से उनमे तन्दुरूस्ती व चूस्तीफूर्ती बनी रहेगी,और मोटापा भी नहीं सतायेगा औरनिरोगी रहकर हंसीखुसी से अपना जीवन यापन करेगे ।
३४.गौदुग्ध बड़ों व बच्चों में स्फूर्तिदायक,तृप्ति ,दिप्ति,प्रीति,सात्विकता ,सौम्यता,मधुरता,प्रज्ञा व और आयुष्मान बढ़ाने वाला है ।वह पूर्णरूपेण सर्वमान्य,सर्वप्रिय,अमृत तुल्य दूग्धाहार है ।
३५.गाय का ताज़ा दूध तृषा,दाह,थकान मिटाने वाला और निर्बलता में विषेश उपयोगी है ।गौदुग्ध बुखार ,सर्दी,चर्मरोग ,प्रमाद(आलस्य) निंद्रा,वात,पित्तनाशक है ।
३६.भारतीय संस्कृति ग्राम संस्कृति है,गौसंस्कृति है ।गौपालन,गौसंवर्धन,गौरक्षण,गौपूजन और गोदानभारतीयता की पहचान है ।कृषि की खोज में गाय के गोमय(गोबर)'गौमूत्र ने किसान को जीवनदान दिया है ।
३७.गाय और गौदुग्ध ने अहिंसा के विकास में अत्यन्त महत्वपूर्ण योगदान दिया है ।गौदुग्ध में सात्विक तत्वों व पंचक तत्वों की प्रचुरता है ।
३८.काली गाय का दूध त्रिदोषशामक और सर्वोत्तम है ।शाम को जंगल से चर कर आई गाय का दूध सुबह के दूध से हल्का होता है ।
३९.सद्बुद्धि प्रदान करने वाला गौदुग्ध तुरन्त शक्ति देने वाले द्रव्यों में भी सर्वश्रेष्ठ माना गया है ।गौदुग्ध में पी.एच.अम्ल और चिकनाहट कम है ,जो स्वास्थ्य के लिए लाभदायक है ।
4०.गौदुग्ध में २१ एमिनो एसिड है जिसमें से ८स्वास्थय की दृष्टि बहुत उपयोगी है विद्यमान सरि-ब्रोसाडस दिमाग़ एंव बुद्धि के विकास में सहायक है ।केवल गौदुग्ध में स्ट्रानटाइन तत्व है जो आण्विक विकारों के प्रतिरोधक है ।
३२.गाय की पाचनशक्ति श्रेष्ठ है ।अगर कोई जहरीला पदार्थ खा लेती है तो उसे आसानी से पचा लेती है फिर भी उसके दूध में जहर का कोई असर नहीं होता है ।डाॅ पीपल्स ने गोदुग्ध पर किये गये परीक्षणो में यह भी पाया कि यदि गाय कोई विषैला पदार्थ खा जाती है तो भी उसका प्रभाव उसके दूध में नहीं आता ।उसके शरीर में सामान्य विषों को पचाने की अदभूत शक्ति है
३३.गौदूग्ध से बनी व अन्य व्यन्जन बच्चो को खिलाने से उनमे तन्दुरूस्ती व चूस्तीफूर्ती बनी रहेगी,और मोटापा भी नहीं सतायेगा औरनिरोगी रहकर हंसीखुसी से अपना जीवन यापन करेगे ।
३४.गौदुग्ध बड़ों व बच्चों में स्फूर्तिदायक,तृप्ति ,दिप्ति,प्रीति,सात्विकता ,सौम्यता,मधुरता,प्रज्ञा व और आयुष्मान बढ़ाने वाला है ।वह पूर्णरूपेण सर्वमान्य,सर्वप्रिय,अमृत तुल्य दूग्धाहार है ।
३५.गाय का ताज़ा दूध तृषा,दाह,थकान मिटाने वाला और निर्बलता में विषेश उपयोगी है ।गौदुग्ध बुखार ,सर्दी,चर्मरोग ,प्रमाद(आलस्य) निंद्रा,वात,पित्तनाशक है ।
३६.भारतीय संस्कृति ग्राम संस्कृति है,गौसंस्कृति है ।गौपालन,गौसंवर्धन,गौरक्षण,गौपूजन और गोदानभारतीयता की पहचान है ।कृषि की खोज में गाय के गोमय(गोबर)'गौमूत्र ने किसान को जीवनदान दिया है ।
३७.गाय और गौदुग्ध ने अहिंसा के विकास में अत्यन्त महत्वपूर्ण योगदान दिया है ।गौदुग्ध में सात्विक तत्वों व पंचक तत्वों की प्रचुरता है ।
३८.काली गाय का दूध त्रिदोषशामक और सर्वोत्तम है ।शाम को जंगल से चर कर आई गाय का दूध सुबह के दूध से हल्का होता है ।
३९.सद्बुद्धि प्रदान करने वाला गौदुग्ध तुरन्त शक्ति देने वाले द्रव्यों में भी सर्वश्रेष्ठ माना गया है ।गौदुग्ध में पी.एच.अम्ल और चिकनाहट कम है ,जो स्वास्थ्य के लिए लाभदायक है ।
4०.गौदुग्ध में २१ एमिनो एसिड है जिसमें से ८स्वास्थय की दृष्टि बहुत उपयोगी है विद्यमान सरि-ब्रोसाडस दिमाग़ एंव बुद्धि के विकास में सहायक है ।केवल गौदुग्ध में स्ट्रानटाइन तत्व है जो आण्विक विकारों के प्रतिरोधक है ।
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