गोरक्षा के चौबीस साधन -1-
१-एक-एक गाय घर में अवश्य-अवश्य रखो ।
२-भैंस की जगह गाय पालो ।
३-नये अच्छी नन्दी ( साँड़ ) बनाओ और साँड़ का ही दान करो ।
४-गो दान की जगह पहले चारे-दाने का दान करो ।
५-गोचर-भूमि अधिक-से-अधिक छुड़वाओ, खरीदकर गाँवों को कृष्णार्पण कर दो । यह बड़े पुण्य का कार्य है ।
६-मारी हुई गाय के चमड़े की कोई चीज व्यवहार न करने की प्रतिज्ञा कर लो । मरी हुई गाय के चमड़े का सामान व्यवहार करो ।
७-नये-नये ढंग का चारा बर्तना आरम्भ करो ।
८-दाबघास ( साइलेज ) बनाओ, चारा कुटाई तथा चारा काटने के लिये यन्त्रों से काम लो ।
९-गायों की खूब सेवा करो । उन्हें रोज मालिस करो, धोओ, नहलाओ और बीच-बीच में डुबकी लगवाकर नहलवाते रहो ।
१०-गाय और उसके परिवार की जन्मपत्री और उनकी उन्नति का हिसाब रखो ।
११-गाय के दूध-घी की पैदायश को देखकर उसी अनुपात से चारा-दाना दो ।
१२-गोबर को जलाना छोड़ दो । उसके बदले में लकड़ी पैदा करो और उसे जलाओ ।
जय गौ माता
जय गौ माता
१३-गोबर-गोमूत्र, कूड़े-कचरे और घास-चारे की बची रद्दी से वैज्ञानिक ढंगपर खाद बनाओ ।
१४-मिश्र खेती करो ।
१५-पिंजरापोलों के विविध अंगों का विकास करके उन्हें आदर्श गो-सदन या गोलोक बना लो ।
१६-गोपरीक्षण और निरीक्षण के लिये संघ कायम करो ।
१७-सहकारी पद्धति से दुग्ध-व्यवसाय और उसकी रक्षा का कार्य करो ।
१८-दुग्धालय की सहकारिता और बुद्धिमत्ता के साथ वैज्ञानिक ढंग से व्यवस्था करो ।
१९-पूँजी की सुव्यवस्था करो ।
२०-तेलहन को कभी विदेश जाने न दो । तेल भले ही जाय । इससे व्यापार की तो उन्नति होगी ही, खास करके खल से पशुओं की और पृथ्वी की बड़ी पुष्टि होगी ।
२१-गायों को रोग ग्रस्त मत होने दो । सफाई, चिकित्सा तथा अन्य उपायों से उन्हें सदा नीरोग रखो ।
२२-बछड़ों को बधिया करने की क्रूर चाल बंद कर दो । जिनको बधिया करना हो, उन्हें पहले ही वर्ष डाक्टर बोर्डिजो के निकाले हुए चिमटे से करा लो । इसमें उन्हें कष्ट कम होगा ।
२३-बैलों के प्रति भार ढोने और हल जोतने में जुल्म न हो, इसका पूरा-पूरा खयाल रखो । बैलों के स्थानपर ट्रकों को और ट्रैक्टरों को स्थान मत दो ।
२४-भगवान् की कृपा-शक्तिपर विश्वास रखकर विज्ञान, विवेक और श्रद्धा के साथ गोवंश की उन्नति के इन कामों को शुरू करो । इनको चलाते रहो और समुज्ज्वल सफलता प्राप्त करो ।
जय गौ माता
जय गौ माता
'भगवच्चर्चा' पुस्तक से, पुस्तक कोड- 820, विषय- गोरक्षा के चौबीस साधन, पृष्ठ-संख्या- २८४, गीताप्रेस गोरखपुर
नित्यलीलालीन श्रद्धेय भाईजी श्री हनुमानप्रसाद जी पोद्दार
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