बारह निर्दयताएँ
भारतवर्ष में गो-जाति के साथ अनेकों प्रकार से निर्दयता का व्यवहार हो रहा है । इनमें ये बारह मुख्य हैं-
१-लोभवश कसाई के हाथ गाय बेचना । यह बड़ा ही नीच कर्म है और इसमें निर्दयता भरी है ।
२-गायों के अंगपर अंग जोड़कर उन्हें अधिक अंगवाली बनाकर लोगों को ठगना और गायों को कष्ट देना ।
कुछ नीच प्रकृति के स्वार्थी लोग बड़े-बड़े शहरों में, तीर्थों में, मेलों के अवसरपर ऐसी गाय या बैल को लिये फिरते हैं, जिसके पुट्ठे वा कमर में पाँचवाँ पैर लटका करता है या जीभ की शकल की कोई चीज होती है । ये लोग मुसलमान होते हैं और हिंदू-साधुओं के वेश में घूमा करते हैं । गाय को खूब सजाकर रखते हैं और घंटी बजा-बजाकर भोले-भाले नर-नारियों को 'पाँच पैर की गोमाता की पूजा कीजिये,' 'महादेवजी के नन्दियों के दर्शन कीजिये' आदि कह-कहकर ठगते हैं । गाय या बैल जब छोटी उम्र के होते हैं, तभी किसी मरे जानवर की या दूसरे जानवर को मारकर उसकी टाँग या अन्य कोई अंग काट लेते हैं और उसे उस गाय या बैल के शरीरपर केश काटकर सी देते हैं । कुछ दिनों में मांस बढ जाता है और नये केश जम जाते हैं, तब वह सिलाई नहीं दीखती । जिस पशु की टाँग काटकर मारते हैं, उसको तो महान् कष्ट होता ही है; पर जिसके शरीरपर नया अंग जोड़कर सीते हैं, उसको भी कम कष्ट नहीं होता । पर बेचारे मूक पशु किससे कहें ? ये लोग वस्तुतः पेशेवर ठग होते हैं और होते हैं बड़े ही निर्दयी । इन लोगों को पैसा देना बहुत बड़ी भूल है !
३-बछड़े-बछड़ियों को उनके पोषण के लायक उचित मात्रा में दूध न देना ।
४-गाड़ियों में इतना बोझ लादना कि बैल चल ही न सकें । फिर ऊपर से उनको बुरी तरह से मारना । यह दर्दनाक नजारा शहरों की बड़ी-बड़ी सड़कोंपर आप नित्य ही देख सकते हैं ।
५-बैलों को हाँकते समय उन्हें बुरी तरह मारना । किसी-किसी प्रान्त में तो इतनी निर्दयता होती है कि रथ या गाड़ी के बैलों को जिस डंडे से हाँकते हैं, उसकी अगली नोकपर तीखी धारवाली लोहे की नुकीली अरी लगी रहती है, जिसकी चोट से उनके खून बहने लगता है । मर्मस्थल में चोट लग जाती है तो पशु मर भी जाते हैं ।
६-तीर्थों में पण्डे लोग पौष-माघ के भयानक जाड़े में भी छोटी-छोटी नाताकत गरीब बछड़ियों को जल में खड़ी रखते हैं और यात्री लोगों को उनकी पूँछ पकड़ाकर कुछ पैसे लेकर गोदान का संकल्प करा देते हैं । न यात्रियों के पास गौ होती है और न गो-दान । पण्डे पैसों के लालच से ऐसा निर्दय काण्ड करते हैं । बछड़ी घंटोंतक सरदी से काँपती हुई जल में खड़ी रहती है । अबोध यात्री वैतरणी तरने के धोखे इस निर्दय कार्य में सहायता करते हैं ।
७-गायों को कसाइयों के हाथ बिकवाने के लिये दलाली करना । गाय, बैल, बछड़े आदि को कसाईखाने पहुँचाने के लिये बहुत-से दलाल होते हैं । आजकल तो इनकी संख्या बहुत बढ़ गयी है । इनमें मुसलमान होते ही हैं, निम्र जाति के हिंदू भी लोभवश ऐसा घृणित काम करने में नहीं हिचकते । ये लोग तरह-तरह से गायों का नाश करवाते हैं-कस्टमवालों से, पुलिस से तथा चरवाहों से मिलकर पशुओं की चोरी करवाते हैं । 'बड़े ही धर्मनिष्ठ जमींदार के घर पशु जायेंगे' ऐसा विश्वास दिलाकर तथा पैसों का अधिक लालच देकर मालिकों से अथवा गोशालाओं से पशुओं को खरीद लेते हैं । इसके अतिरिक्त ये लोग चमड़े के व्यापारियों से ऊँचे दामपर निश्चित समय के अंदर निश्चित संख्या में गौओं का चमड़ा देने का कंट्राक्ट करके उनसे पेशगी रूपये ले लेते हैं । फिर कसाई और चमारों से मिलवाकर उनके द्वारा घास में और चारे-दाने में जहर मिलाकर चुपचाप मौके से गौओं को खिला देते हैं, या उन जहरीली चीजों को ऐसी जगह बिखेर देते हैं, जहाँ गौएँ चरती हैं । गौओं के शरीरपर घाव होता है तो उसमें विष लगा देते हैं । चरवाहों से मिलकर छूरी, तेज भाले आदि में जहर लगाकर गायों के शरीर में चुभो देते हैं । ऐसी चीजें खिला देते हैं, जिनसे पशुओं में छूत की बीमारी फैल जाती है । छूत की बीमारी से मरे हुए पशुओं की अँतड़ी, मांस आदि को गायों के चरने के स्थानों में डाल देते हैं । इस प्रकार कई तरह से गायों का नाश करते हैं । इसी से पुलिस-विभाग में यह शिक्षा दी जाया करती है कि जहाँ गौओं में छूत की बीमारी फैली हो या गौएँ अधिक संख्या में मर रही हों, वहाँ देखना चाहिये कि आस-पास में कौन लोग ठहरे हुए हैं । ये लोग तरह-तरह के वेशों में आया करते हैं । ये बड़े ही क्रूर-हृदय और घोर स्वार्थी लोग होते हैं । गोवंश-नाश के कारणों में इनका अस्तित्व भी एक प्रधान कारण है ।
८-गाय को भरपेट चारा-दाना खाने को न देना ।
९-हल में कमजोर या बेमेल बैलों को जोतकर उनपर डंडे चलाना । शास्त्रों में तो दो बैलों से हल जोतना ही पाप बतलाया गया है, फिर यदि वे कमजोर या बेमेल हों और ऊपर से मारे जाते हों, तब तो ऐसा करनेवाले प्रत्यक्ष ही निर्दयता का भयानक पाप करते हैं ।
१०-कुछ भी व्यवस्था किये बिना बछड़े को दागकर असहाय छोड़ देना और ऐसे वृषोत्सर्ग से स्वर्ग-प्राप्ति की कामना करना ।
११-अपनी और परायी गायों को बुरी तरह से मारना । परायी गाय के खेत के पास आते ही किसान और सरकारी काँजी हाउसों में सरकार की सुव्यवस्था से भूखों मरती हुई गायों को वहाँ के रक्षक जिस निर्दयता से मारते हैं, उसे देखा नहीं जाता ।
१२-निकम्मी और कमजोर गौ का दान करना । निकम्मी गौ जिसको दान की जाती है, वह उसे जो कुछ पैसे मिलते हैं, उन्हींपर बेच देता है और निकम्मी होने के कारण वह किसी रूप में कसाई के हाथ पहुँच जाती है । कई जगह तो लोग गोशालाओं को रूपये-दो-रूपये देकर भाड़ेपर गौ ले आते हैं और दान का तमाशा पूरा हो जाता है ।
जय गौ माता
जय गौ माता
'भगवच्चर्चा' पुस्तक से, पुस्तक कोड- 820, विषय- बारह निर्दयताएँ, पृष्ठ-संख्या- २८७-२८८, गीताप्रेस गोरखपुर
नित्यलीलालीन श्रद्धेय भाईजी श्री हनुमानप्रसाद जी पोद्दार
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