गौशाला कैसी होनी चाहिए
इसका वर्णन स्कंध पुराण में है
🐿गौशाला सुदृढ़ विस्तीर्ण और समतल होनी चाहिए।
🐿ठंडी हवा एवं गर्म हवा से सुरक्षा वाली होनी चाहिए।
🐿उसकी समतल भूमि में बालू बिछी होनी चाहिए।
🐿चारा डालने के लिए बड़ी बड़ी नादे होनी चाहिए।
🐿गौमाता को बाँधने के खूंटे नुकीले नहीं होने चाहिए।
🐿कोमल रस्सियों से ही गौमाता को बांधना चाहिए।
🐿पानी पीने के लिए कुण्ड या जलाशय होना चाहिए।
🕷🐜मच्छरों से रक्षा के लिए नीम की पत्तियों का शाम को धुँआ करना चाहिए।
🦄गोशाला साफ़ सुथरी और गोबर से रहित होनी चाहिए।
🐀वहाँ जूठन व कचरा नहीं डालना चाहिए।
🐐वहाँ बकरियों को नहीं बांधना चाहिए।
🙉एवम् थूक मल मूत्र विसर्जन नहीं करना चाहिए।
💥संध्या समय गोशाला में दीपक जलाने से लक्षमी की वृद्धि होती है।
🙏🏻इस तरह की गौशाला को दान करने वाला धन्य है।
🐄नवजात वत्स को गाय का 2 माह तक पूरा दूध पिलाना चाहिए। इसके पश्चात 2 थनों को दुहना चाहिए।
🐠समय समय पर गोओं को नमक देकर पानी पिलाना चाहिए।
🐎रात्रि में दीपक जलाकर बांसुरी या वीणा वाद्य सुनाकर पुराणों की दिव्य कथाये सुनानी चाहिए।
🌲इसे ही गोष्ठी कहा गया है।
🐾उनकी ह्रदय से माता पिता देवता और भगवान् समजकर पूजा करनी चाहिए।
🐾गौशाला में रजस्वला स्त्री को प्रवेश नहीं करना चाहिए ।
🐏रोगी बुड्ढी और दुबली पतली गायों की सेवा दिल लगाकर करनी चाहिए ।
🌹इस तरह सेवा होने पर कोई संशय नहीं है की भगवान् का धाम न मिले ।
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