गौपाष्ठमी के पर्व पर गौमाता की तरफ से सभी देशवासियों को एक संदेश -
मैं गौमाता प्रत्येक मनुष्य को बल, बुद्धि, आयु, आरोग्य सुख, समृद्धि, ऐश्वर्य, किर्ती देती हूँ। जो अनुभव करते हैं, वे मुझे माता कहते हैं। और मैं भी उन पर संतानवत प्रेम करती हूँ।
संतान का कर्तव्य हैं, माँ की सेवा एवं रक्षा करना, और माँ का कर्तव्य हैं, अपनी संतान को जीवन देना। मैं अनादि काल से विश्व का कल्याण करती आ रही हूँ इसलिए मुझे विश्व जननी कहते हैं।
संसार के अंत तक मैं अपना कर्तव्य निभाऊंगी। चाहे वह धर्म का युग हो या विज्ञान का युग हो। संतान माँ पर प्रेम कर या उसे कष्ट दें, मुझे तो मेरी संतान से प्रेम करना ही हैं।
मैं दूध, दही, घी, के रुप में अमृत प्रदान करती हूँ। जिससे मेरी संतान को सत्वगुणसंपन्न बनाती हूँ। मैं अपने "मूत्र ओर गोबर" के रुप में दवाइयां( पंचगव्य औषधीयाँ), खाद एवं कीटनियंत्रक देती हुँ। मेरे चरण स्पर्श से रज कण को शक्तिमान बनाती हूँ।
मेरे दूध, दही, घी, मूत्र और गोबर आदि को मिलाकर होनेवाला पंचगव्य एक अद्भुत तथा सर्वशक्तिमान रसायन है। मनुष्य के लिए यह "प्राण" है।
छत्तीस कोटि देवी देवता मेरे तन में विराजमान है ....
जो मेरी उपयोगिता समझेंगा, वही मेरी सेवा करेगा।
जिसके भाग्य में होगा वही अमृतमयी आनंद लूटेगा।
उसके लिए मैं सदैव माँ स्वरुप कामधेनु हूँ।
जय गोमाता जय गोपाल
गोपाष्टमी की सभी को हार्दिक बधाई !!!!
गोपाष्टमी कार्तिक मास की शुक्ल पक्ष की अष्टमी को मनाई जाती है और ब्रज संस्कृति और सम्पूर्ण भारत का एक प्रमुख पर्व है।
गायों की रक्षा करने के कारण भगवान श्रीकृष्ण का अतिप्रिय नाम 'गोविन्द' पड़ा।
कार्तिक, शुक्ल पक्ष, प्रतिपदा से सप्तमी तक गो-गोप-गोपियों की रक्षा के लिए श्रीठाकुर जी ने गोवर्धन पर्वत को धारण किया था। 8वें दिन इन्द्र अहंकार रहित होकर भगवान की शरण में आये। कामधेनु ने श्रीकृष्ण का अभिषेक किया और उसी दिन से श्रीकृष्ण का नाम गोविन्द पड़ा। इसी समय से अष्टमी को *गोपाष्टमी* का पर्व मनाया जाने लगा।
इस दिन प्रात:काल गौओं को स्नान करा कर तथा गंध-धूप-पुष्प आदि से पूजा करें और अनेक प्रकार के वस्त्रालंकारों से अलंकृत करके ग्वालों का पूजन करें, गायों को गो-ग्रास देकर उनकी प्रदक्षिणा करें तो सभी प्रकार की अभीष्ट सिद्धि होती हैं।
गोपाष्टमी को सांयकाल गायें चरकर जब वापस आयें तो उस समय भी उनका अभिवादन और पूजन करके उनकी चरण रज को माथे पर धारण करें।
गाय हमारी संस्कृति की प्राण है। यह गंगा, गायत्री, गीता, गोवर्धन और गोविन्द की तरह पूज्य है।शास्त्रों में कहा गया है- 'मातर: सर्वभूतानां गाव:' यानी गाय समस्त प्राणियों की माता है।
दिव्य गुणों की स्वामिनी गौ माता पृथ्वी पर साक्षात देवी के समान हैं।सनातन धर्म के ग्रंथों में कहा गया है- 'सर्वे देवा: स्थिता देहे सर्वदेवमयी हि गौ:।' गाय की देह में समस्त देवी-देवताओं का वास होने से यह सर्वदेवमयी है।
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