शुक्रवार, 16 नवंबर 2018

गोपाष्टमी : कान्हा की गौ चारण लीला

गोपाष्टमी : कान्हा की गौ चारण लीला

सभी स्नेही भक्तजनों को गोपाष्टमी की हार्दिक शुभ-कामनाएं।

गौ पूजन का पवित्र दिन है गोपाष्टमी..........

कार्तिक शुक्ल पक्ष अष्टमी  तिथि को गोपाष्टमी के रूप में मनाया जाता है। इस दिन भगवान श्री कृष्ण ने गौ-चारण लीला आरम्भ की थी।

श्री कृष्ण की गौ-चारण लीला ......

भगवान् ने जब छठे वर्ष की आयु में प्रवेश किया तब एक दिन भगवान् माता यशोदा से बोले –
"मैय्या अब हम बड़े हो गए हैं"
मैय्या यशोदा बोली - "अच्छा लल्ला अब तुम बड़े हो गए हो तो बताओ अब क्या करें"
भगवान् ने कहा - "अब हम बछड़े चराने नहीं जाएंगे, अब हम गाय चराएंगे"
मैय्या ने कहा - "ठीक है बाबा से पूँछ लेना"
मैय्या के इतना कहते ही झट से भगवान् नन्द बाबा से पूंछने पहुँच गए
बाबा ने कहा - "लाला अभी तुम बहुत छोटे हो अभी तुम बछड़े ही चाराओं"
भगवान् ने कहा - "बाबा अब में  बछड़े नहीं जाएंगे, गाय ही चराऊँगा "
जब भगवान नहीं मने तब बाबा बोले- "ठीक है लाल तुम पंडत जी को बुला लाओ- वह गौ चारण का महुर्त देख कर बता देंगे"
बाबा की बात सुनकर भगवान् झट से पंडत जी के पास पहुंचे और बोले - "पंडत जी ! आपको बाबा ने बुलाया है, गौ चारण का महुर्त देखना है, आप आज ही का महुर्त बता देना में आपको बहुत सारा माखन दुंगा"
पंडित जी नन्द बाबा के पास पहुंचे और बार-बार पंचांग देख कर गड़ना करने लगे तब नन्द बाबा ने पूंछा
"पंडित जी के बात है ? आप बार-बार के गिन रहे हैं ?
पंडित जी बोले "क्या बताएं नन्दबाबा जी केवल आज का ही मुहुर्त निकल रहा है, इसके बाद तो एक वर्ष तक कोई मुहुर्त नहीं है"
पंडित जी की बात सुन कर नंदबाबा ने भगवान् को गौ चारण की स्वीकृति दे दी।

भगवान जी समय कोई कार्य करें वही शुभ-मुहुर्त बन जाता है। उसी दिन भगवान ने गौ चारण आरम्भ किया और वह शुभ तिथि थी "कार्तिक मास में शुक्ल पक्ष अष्टमी" भगवान के गौ-चारण आरम्भ करने के कारण यह तिथि गोपाष्टमी कहलाई।

माता यशोदा ने अपने लल्ला के श्रृंगार किया और जैसे है पैरो में जूतियां पहनाने लगी तो लल्ला ने मना कर दिया और बोले "मैय्या यदि मेरी गौएँ जूतियाँ नहीं पहनती तो में कैसे पहन सकता हूँ। यदि पहना सकती हो तो उन सभी को भी जूतियां पहना दो" और भगवान जब तक वृन्दावन में रहे, भगवान ने कभी पैरो में जूतियां नहीं पहनी।

आगे-आगे गौवें और उनके पीछे बांसुरी बजाते भगवान उनके पीछे बलराम और श्री कृष्ण के यश का गान करते हुए ग्वाल-गोपाल इस प्रकार से विहार करते हुए भगवान् ने उस वन में प्रवेश किया तब से भगवान् की गौ-चारण लीला का आरम्भ हुआ। जब भगवान् गौएं चराते हुए वृन्दावन जाते तब उनके चरणो से वृन्दावन की भूमी अत्यन्त पावन हो जाती, वह वन गौओं के लिए हरी-भरी घास से युक्त एवं रंग-बिरंगे पुष्पों की खान बन गया था।

गोपाष्टमी  से जुडी एक अन्य कथा भी है जो इस प्रकार है ......

गोपाष्टमी महोत्सव कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की अष्टमी तिथि को गोपाष्टमी महोत्सव मनाया जाता है। मान्यता के अनुसार कार्तिक शुक्ल प्रतिपदा से लेकर सप्तमी तक भगवान श्रीकृष्ण ने गोवर्धन पर्वत धारण किया था। आठवें दिन इंद्र अहंकार रहित श्रीकृष्ण की शरण में आए तथा क्षमायाचना की। भगवान कृष्ण का "गोविन्द" नाम भी गायों की रक्षा करने के कारण पडा़ था। उसके बाद कामधेनु ने भगवान कृष्ण का अभिषेक किया और उसी दिन से इन्हें गोविन्द के नाम से पुकारा जाने लगा। तभी से कार्तिक शुक्ल अष्टमी को गोपाष्टमी का उत्सव मनाया जा रहा है। गौ अथवा गाय भारतीय संस्कृति का प्राण मानी जाती हैं। इन्हें बहुत ही पवित्र तथा पूज्यनीय माना जाता है। हिन्दु धर्म में यह पवित्र नदियों, पवित्र ग्रंथों आदि की तरह पूज्य माना गया है। शास्त्रों के अनुसार गाय समस्त प्राणियों की माता है। इसलिए आर्य संस्कृति में पनपे सभी सम्प्रदाय के लोग उपासना तथा कर्मकाण्ड की पद्धति अलग होने पर भी गाय के प्रति आदर भाव रखते हैं। गाय को दिव्य गुणों की स्वामिनी माना गया है और पृथ्वी पर यह साक्षात देवी के समान है।
जय गौमाता जय गोपाल
हरे कृष्णा
जय जय श्रीराधे

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