गोमाता का सांस्कृतिक महत्व - 3 :
वैसे तो गोमाता की पूजा करने से सभी देवो की पूजा हो जाती है | गोमाता की पूजा यह मात्र कुमकुम, तिलकसे पूजा करने की बात नहीं है किन्तु गोमाता के लालन पालन में मग्न हो कर और निःस्वार्थ भाव से ही सचमुच मनको शांति का अहसास होता है | गोमाता का पूजन स्वयं श्री कृष्ण भगवानने किया था ऐ बात सर्ववेदित है | भगवान श्री कृष्णे गोवर्धनपूजन के अवसर पर स्वयं गो-यज्ञ करवाया था | गो-यज्ञ में वेदोक्त, गो-सूक्तो से गोरक्षार्थ हवन, गो-पूजन, वृषभ पूजन आदि करवाए थे, उसे गो-सरक्षण, गो-संवर्धन, गो-वंशवर्धन, एवं गो-महत्व के द्वारा पुरे भारत वर्षको विशेष लाभ करवाया था |
भगवान महर्षि च्यवन सरिता के जल में बैठ कर तपस्या कर रहे थे | एक बार वो मछुआरा के जाल में फस गए | मछुआरा जाल निकालके देखते है तो महर्षि के दर्शन होते है, और सब डर गए की कई श्राप ना दे दे, किन्तु महर्षि ने कहा.. मेरी वजह से आपकी महेनत निष्फल नहीं जानी चाहिए, तो आप लोग मछली की तरह मुझे ही बाजार में बेच दो, महर्षि की आज्ञा मानकर मछुआरे महर्षि को बाजार में बेचने के लिए गए, किन्तु कोई महर्षि को खरीद नहीं रहा था | उस वक्त राजा नहुषको यह समाचार मिले तो राजा दौड़ते हुए वहा पहुँचे, महर्षि च्यवन बहोत बड़े तपस्वी थे वो राजा बराबर जानते थे, राजा ने आ कर महर्षि को सास्टांग दंडवत प्रणाम किए और हाथ जोड कर आज्ञा की प्रतीज्ञा करते हुए खड़े रहे | महर्षि बोले की.. राजन आप मुझे खरीद लीजिये..!! तब राजाने संकोचवश पूछा की क्या में आपका मूल्य दे पाउँगा ? मेरा क्या मूल्य ? महर्षि ने यह सुनकर कहा की राजन..!! आपकी सारी समृद्धि से मेरा मूल्य नहीं चूका पाओगे, किन्तु एक श्रेठ गोमाता के बराबर मेरा मूल्य हो सकता है और इन लोगो को एक श्रेठ गोमाता दे सकते हो | उसके बाद राजाने मछुआरा को एक श्रेठ गोमाता दे दी | इस घटना से हम समज सकते है की गोमाता का मूल्य कितना है और गोमाता का महत्व कितना है |
जय गोमाता
जय गोमाता
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