बुधवार, 4 सितंबर 2019

गोमाता का सांस्कृतिक महत्व - १ :

गोमाता का सांस्कृतिक महत्व - १ :
गौमाता के बारे मे वेद, उपनिषद, रामायण, महाभारत, श्रीमद भागवत, वेदो, पुराणो, एवं चरकसंहिता, सुशरूतसंहिता, वाग्भट्टसंहिता, सारंगधरसंहिता, आर्यभिषेक, भावप्रकाश और माधवीनदान जैसे महान ग्रंथोमे खूब लिखा गया हे | गौमाता की प्रवित्रता, पूजनीयता एवं महानता के लिए भी शाश्त्रो में लिखा गया हे | परन्तु गौमाता के अनुभूतिके स्तर को समझने का समय अब आ गया है |
गौमाता मानवजाति क लिए सचमुच कितनी अमूल्य, पवित्र एवं कल्याणप्रद जीव है? परन्तु यह बात अनुभूति तक पहुचे तो महत्व की हे | शुक्ल यजुर्वेद में एक प्रश्न हे की 'कस्य मात्र न विद्यते (यजुर्वेद २३-४७)', अर्थार्थ संसार में ऐसा कोनसा पदार्थ हे ? ऐसी कोनसी चीज हे जिसकी तुलना नहीं हो सकती, प्रश्न के उत्तर में उल्लेखित है की 'गोस्तु मात्र न विधते (यजुर्वेद २३-४७)', अर्थार्थ संसार में गौमाता की कोई उपमा नहीं है |
ऋग्वेद में गौमाता की प्रशंशा करते हुए कहा गया है की, 'गावो भग:' अर्थार्थ गौमाता ऐश्वर्य हे | यहां भग शब्द भगवान को सम्बोधित किया हुआ शब्द है | भग शब्द पचीसों साल पुराना शब्द है | जिसमे भगवान के जैसे गुण होते है.. उनके लिए भग शब्द का प्रयोग होता था |


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