गुरुवार, 4 मई 2017

ग्लोबलाइजेशन के इस युग में गाय

ग्लोबलाइजेशन के इस युग में गाय 

हाल में गोरक्षण और संवर्धन का मुद्दा तमाम मीडिया बहसों  का सबब बना, लेकिन ज्यादातर बहसें  निर्गुण निराकार रूप में रहीं। कानून की शक्ल में संसद में बहस भले ही हो जाए लेकिन इतने भर  से काम चलने वाला नहीं। कानून बना कर व्यवस्था के सुधारों को भले ही ये बात अटपटी लगे लेकिन  जमीन पर कहीं सगुण साकार रूप में गोसेवा तो हार्ट, हेड और हुनर यानि हाथों से हो सकेगी। गोरक्षा की पैरोकारी में लगे लोग इस दिशा में सोच तो रहे हैं। विषमुक्त खेती, जीरो बजट खेती, जैविक खेती, इत्यादि प्रयोगों में गोसेवा और संवर्धन की सम्भावना भी खूब है। उन दीवानों के लिए ये सब खुशनुमाई सबब बन सकता है। ग्लोबलाइजेशन वाले वर्तमान परिवेश में भारतीय संस्कृति में गाय, गाँव, गँगा वालों के लिए उम्मीदें भी।

गोचर भूमि बनाम डेरी फार्म

गोचर भूमि के लिए जो चारागाह नियत हुए अमूमन उनके नजदीक ही जलाशय भी होते हैं। इसके बगैर प्राकृतिक रूप से स्थायी चारागाह नहीं बनते। गोचर भूमि में औसतन पच्चीस वनस्पतियाँ होती हैं जो औषधीय रूप में गाय का स्वास्थ्य ठीक करने में मददगार होती हैं। वन मिश्रित गोचर भूमि के पशुओं का दूध उच्च गुणवत्ता वाला और प्राकृतिक पोषक तत्वों से भरपूर होता है। गोचर भूमि में चारे की उपलब्धता साल न हो सके तो ऐसे में भूसे खली के चारे का उपयोग किया जा सकता है। शहरों के इर्द-गिर्द औद्योगिक डेरी फार्मों में प्राकृतिक रूप से चारे और पोषक वनस्पतियों के ना होने से पशु का स्वस्थ्य और दूध की गुणवत्ता दोनों पर असर पड़ता है। आज़ादी का मनोवैज्ञानिक प्रभाव भी बहुत महत्वपूर्ण है|

नकुल संहिता है गो संवर्धन की बाइबिल

गोपालन गो संवर्धन के लिए वर्णित वैदिक विधियों का संकलन है नकुल संहिता। विद्वान बताते हैं कि संस्कृत में इस ग्रन्थ की मूल प्रति जर्मनी  में उपलब्ध है। भारत में इसका अंग्रेजी अनुवाद ही उपलब्ध हो पाया है। उसी से काम चलाया जा रहा है। इस शास्त्र और विधा में जर्मनी ने महारथ हासिल की है। गोपालन की पद्धतियों पर जबरदस्त अनुसन्धान करके जर्मनी ने दुधारू हों अथवा अदुग्ध सभी गो वंश को पोषण संरक्षण सुनिश्चित किया है। इसका सबसे नायाब नज़ारा जर्मनी के गोबर आधारित उर्जा की तकनीक और उसके इर्द गिर्द तमाम उद्योगों से मिलता है। जर्मनी के नेतृत्व में यूरोपियन यूनियन ने पर्यावरण सुरक्षा के लिए सभी देशों की उर्जा आवश्यकताओं के पच्चीस प्रतिशत हिस्से को जैविक उर्जा से पूरा करने का लक्ष्य तय किया है। जो मूलतः के लिए गाय और गोबर की तकनीकों पर अमल करके हासिल की जाएगी।

गाय होती है खुद की डॉक्टर

भारतीय गाय को सबसे ज्यादा समझदार प्राणी माना गया है। लम्बे समय तक गाय और गाँव के अध्ययन और प्रयोगों से जुड़ी रहीं वरिष्ठ वैज्ञानिक डॉ. लीना गुप्ता बताती हैं कि सगर्भा गायें यानि वो गायें जो गाभिन हों वे कच्चे गोखुरू समेत लगभग सत्तर वनस्पतियों को पहचान कर खाती हैं। वनस्पतियों की पहचान प्रकृति प्रदत्त गुण है या अनुवांशिक यह अनुसन्धान का विषय हो सकता है।  अपने लिए औषधियां चुनने के साथ-ही साथ रोज लगभग ग्यारह किलोमीटर की वाक यानि चहलकदमी भी करती हैं गोमाता। अगर आजाद तरीके से जिंदगी हासिल हो तो अपने जीवन और स्वस्थ्य का ख्याल तो खुद रखेंगी ही साथ ही साथ इन्सान के लिए भी तमाम तरीके से लाभप्रद होंगी।



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