सौम्य प्राणियों की प्रतिनिधि "गो' :-
परन्तु मानव अल्प शक्ति वाला है। सभी जीवों का भला करना, किसी को भी कष्ट न देना, वह एकाएक कंसे साध सकता है? सबको साथ एकात्मता का साक्षात्कार करना उसकी असम्भव सा प्रतीत होता है। व्याघ्रसिंहादि क्रूर पशुओं और सांप, बिच्छू आदि अन्यान्य जीवों की पीड़ा देने वाले जंतुओं पर प्रेम कंसे किया जाये, यह आशांका उसके मन में उठती है। उसी प्रकार हाथी, घोड़ा, ऊट, गधा इत्यादि प्राणियों से काम लेने की भी वह बाध्य हो जाता है। उस अवस्था में प्राणीमात्र की आत्मीयता का अनुभव करने के पथ पर प्रथम कदम के नाते ‘गौ' की अन्य सभी जीवों का प्रतिनिधि मान कर उसकी रक्षा व आदर करने की व्यवस्था हमारे समाज में प्राचीन काल से रूढ़ हो गयी, क्योंकि ‘गौ' स्वभाव से ही सौम्य, शांत एवं सात्विक होती है। जो व्यक्ति उस पर भी प्रेम नहीं कर सकेगा, वह आगे बढ़ ही नहीं सकेगा।
‘गौ' को हमने अपने परिवार का एक अंग माना है। उसकी सम्बन्ध में हमारी जो आत्मीयता की धारणा है, उसके मूल में हमारे हृदय की कृतज्ञता एवं ऋण-शोधन की भावना है। उसमें उपयुक्ततावाद या आर्थिक दृष्टिकोण को कोई विशेष स्थान नहीं मिल सकता। बैल को हम इसलिए प्यार नहीं करते कि वह हमारे खेत जोतने का काम में आता है, बल्कि इसलिए करते हैं कि वह हमारे दूधभाई जैसा है।
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