महाभारत: अनुशासन पर्व: एकसप्ततितम अध्याय: श्लोक 31-39 का हिन्दी अनुवाद
‘‘जो ब्राह्माण वेदों के स्वाध्याय से सम्पन्न, अत्यन्त तपस्वी तथा यज्ञ के अनुष्ठान में लगा हुआ हो, वही इन गौओं के दान का सर्वोत्तम पात्र है। इनके सिवा जो ब्राह्माण कृच्छ्र व्रत से मुक्त हुए हों और परिबार की पुष्टि के लिये गोदान के प्रार्थी होकर आये हों, वे भी दान के उत्तम पात्र हैं। इन सुयोग्य पात्रों को निमित्त बनाकर दान में दी गयी श्रेष्ठ गौऐं उत्तम मानी गयी हैं।‘‘ तीन रात तक उपवास पूर्वक केवल जल पीकर धरती पर शयन करें। तत्पश्चात् खिला-पिलाकर तृप्त की हुई गौओं का भोजन आदि से संतुष्ट किये हुए ब्राह्माणों को दान करें। वे गौऐं बछड़ों के साथ रहकर प्रसन्न हों, सुन्दर बच्चे देने वाली हों तथा अन्यान्य आवश्यक सामग्रियों से युक्त हों। ऐसी गौओं का दान करके तीन दिनों तक केवल गौरस का आहार करके रहना चाहिये। ‘‘उत्तम शील- स्वभाव वाली, भले बछड़े वाली और भाग कर न जाने वाली दुधारू गाय का कांस्य के दुग्ध पात्र सहित दान करके उस गौ के शरीर में जितने रोये होते हैं उतने वर्षों तक दाता स्वर्गलोक का सुख भोगता है। ‘‘इसी प्रकार जो शिक्षा लेकर काबू में किये हुए, बोझ ढोने में समर्थ, बलवान, जवान, कृषक- समुदाय की जीविका चलाने योग्य, पराक्रमी और विशाल डील-डौल वाले बैल का ब्राह्माणों को दान देता है, वह दुधारू गाय का दान करने वाले के तुल्य ही उत्तम लोकों का उपभोग करता है। जो गौओं के प्रति क्षमाशील, उनकी रक्षा करने में समर्थ, कृतज्ञ और आजीविका से रहित है, ऐसे ब्राह्माण को गोदान का उत्तम पात्र बताया गया है। जो वूढा हो, रोगी होने के कारण पथ्य-भोजन चाहता हो, दुर्भिक्ष आदि के कारण घवराया हो, किसी महान यज्ञ का अनुष्ठान करने वाला हो या जिसके लिये खेती की आवश्यकता पड़ी हो, होम के लिये हविष्य प्राप्त करने की इच्छा हो अथवा घर में स्त्री के बच्चा पैदा होने वाला हो अथवा गुरू के लिये दक्षणा देनी हो अथवा बालक की पुष्टि के लिये गौ दुग्ध की आवश्यकता आ पड़ी हो, ऐसे व्यक्तियों को ऐसे अवसरों पर गोदान के लिये सामान्य देश-काल माना गया है। ( ऐसे समय में देश-काल का विचार नहीं करना चाहिये)। जिन गौओं का विशेष भेद जाना हुआ हो, जो खरीद कर लायी गयी हों अथवा ज्ञान के पुरस्कार से प्राप्त हुई हों अथवा प्राणियों के अदला-बदली से खरीदी गयी हों या जीत कर लायी गयी हों अथवा दहेज में मिली हों, ऐसी गौऐं दान के लिये उत्तम मानी गयी हैं’’।।नाचीकेत कहता है- वैवस्वत यम की बात सुनकर मैंने पुनः उनसे पूछा- ‘भगवन। यदि अभाव वश गोदान न किया जा सके तो गोदान करने वालों को ही मिलने वाले लोकों में मनुष्य कैसे जा सकता है?’तदनन्तर बुद्विमान यमराज ने गोदान सम्बन्धी गति तथा गोदान के समान फल देने वाले दान का वर्णन किया, जिसके अनुसार बिना गाय के भी लोग गोदान करने वाले हो सकते हैं? ‘जो गौओं के अभाव में संयम-नियम से युक्त हों घृत धेनु को दान करता है, उसके लिये ये घृत वाहिनी नदियां वत्सला गौओं की भांति घृत बहाती हैं।
‘‘जो ब्राह्माण वेदों के स्वाध्याय से सम्पन्न, अत्यन्त तपस्वी तथा यज्ञ के अनुष्ठान में लगा हुआ हो, वही इन गौओं के दान का सर्वोत्तम पात्र है। इनके सिवा जो ब्राह्माण कृच्छ्र व्रत से मुक्त हुए हों और परिबार की पुष्टि के लिये गोदान के प्रार्थी होकर आये हों, वे भी दान के उत्तम पात्र हैं। इन सुयोग्य पात्रों को निमित्त बनाकर दान में दी गयी श्रेष्ठ गौऐं उत्तम मानी गयी हैं।‘‘ तीन रात तक उपवास पूर्वक केवल जल पीकर धरती पर शयन करें। तत्पश्चात् खिला-पिलाकर तृप्त की हुई गौओं का भोजन आदि से संतुष्ट किये हुए ब्राह्माणों को दान करें। वे गौऐं बछड़ों के साथ रहकर प्रसन्न हों, सुन्दर बच्चे देने वाली हों तथा अन्यान्य आवश्यक सामग्रियों से युक्त हों। ऐसी गौओं का दान करके तीन दिनों तक केवल गौरस का आहार करके रहना चाहिये। ‘‘उत्तम शील- स्वभाव वाली, भले बछड़े वाली और भाग कर न जाने वाली दुधारू गाय का कांस्य के दुग्ध पात्र सहित दान करके उस गौ के शरीर में जितने रोये होते हैं उतने वर्षों तक दाता स्वर्गलोक का सुख भोगता है। ‘‘इसी प्रकार जो शिक्षा लेकर काबू में किये हुए, बोझ ढोने में समर्थ, बलवान, जवान, कृषक- समुदाय की जीविका चलाने योग्य, पराक्रमी और विशाल डील-डौल वाले बैल का ब्राह्माणों को दान देता है, वह दुधारू गाय का दान करने वाले के तुल्य ही उत्तम लोकों का उपभोग करता है। जो गौओं के प्रति क्षमाशील, उनकी रक्षा करने में समर्थ, कृतज्ञ और आजीविका से रहित है, ऐसे ब्राह्माण को गोदान का उत्तम पात्र बताया गया है। जो वूढा हो, रोगी होने के कारण पथ्य-भोजन चाहता हो, दुर्भिक्ष आदि के कारण घवराया हो, किसी महान यज्ञ का अनुष्ठान करने वाला हो या जिसके लिये खेती की आवश्यकता पड़ी हो, होम के लिये हविष्य प्राप्त करने की इच्छा हो अथवा घर में स्त्री के बच्चा पैदा होने वाला हो अथवा गुरू के लिये दक्षणा देनी हो अथवा बालक की पुष्टि के लिये गौ दुग्ध की आवश्यकता आ पड़ी हो, ऐसे व्यक्तियों को ऐसे अवसरों पर गोदान के लिये सामान्य देश-काल माना गया है। ( ऐसे समय में देश-काल का विचार नहीं करना चाहिये)। जिन गौओं का विशेष भेद जाना हुआ हो, जो खरीद कर लायी गयी हों अथवा ज्ञान के पुरस्कार से प्राप्त हुई हों अथवा प्राणियों के अदला-बदली से खरीदी गयी हों या जीत कर लायी गयी हों अथवा दहेज में मिली हों, ऐसी गौऐं दान के लिये उत्तम मानी गयी हैं’’।।नाचीकेत कहता है- वैवस्वत यम की बात सुनकर मैंने पुनः उनसे पूछा- ‘भगवन। यदि अभाव वश गोदान न किया जा सके तो गोदान करने वालों को ही मिलने वाले लोकों में मनुष्य कैसे जा सकता है?’तदनन्तर बुद्विमान यमराज ने गोदान सम्बन्धी गति तथा गोदान के समान फल देने वाले दान का वर्णन किया, जिसके अनुसार बिना गाय के भी लोग गोदान करने वाले हो सकते हैं? ‘जो गौओं के अभाव में संयम-नियम से युक्त हों घृत धेनु को दान करता है, उसके लिये ये घृत वाहिनी नदियां वत्सला गौओं की भांति घृत बहाती हैं।
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