पालन – पोषण करने वाली सुख की दाता !
स्वर्गलोक भी जिनकी महिमा के गुण गाता !
जिनकी सेवा कर के नर भव से तर जाता !
सब देवों का अंश समेटे हैं गो माता !!
तृण खाकर बदले में दूध हमे देती हैं !
करती हैं उपकार, न कुछ हमसे लेती हैं !
गोबर से उर्वरा धरित्री को करती हैं !
चमड़ी भी अपनी हमको अर्पित करती हैं !
रोम-रोम जिनका करता है उपकृत हमको !
दूध-दही-घृत से पूरित करती जीवन को !
बछड़े देतीं, बोझ उठाते जो हम सब का !
कृषि कर्मों में साथ निभाते जो कृषकों का !
ममता का सागर आँखों में लहराता है !
पापी नर भी सहज प्रेम इनसे पाता है !
भूले से भी वार नहीं करतीं हैं हम पर !
शायद ही कोई निरीह इतना धरती पर !
पर कितने कृतघ्न हम हैं, कितने आवारा !
कुछ लुच्चे खा जाते हैं इनका भी चारा !
हत्या कर परोस देते हैं तन थाली में !
रक्त बहा देते हैं माता का नाली में !
चलो करें संकल्प बंद हो इनकी ह्त्या !
वरना पाप डंसेगा हमको बनकर कृत्या !
ऋण से इनके शायद मुक्ति हमें मिल जाये !
आओ मिल कर गो माता के प्राण बचायें !!
स्वर्गलोक भी जिनकी महिमा के गुण गाता !
जिनकी सेवा कर के नर भव से तर जाता !
सब देवों का अंश समेटे हैं गो माता !!
तृण खाकर बदले में दूध हमे देती हैं !
करती हैं उपकार, न कुछ हमसे लेती हैं !
गोबर से उर्वरा धरित्री को करती हैं !
चमड़ी भी अपनी हमको अर्पित करती हैं !
रोम-रोम जिनका करता है उपकृत हमको !
दूध-दही-घृत से पूरित करती जीवन को !
बछड़े देतीं, बोझ उठाते जो हम सब का !
कृषि कर्मों में साथ निभाते जो कृषकों का !
ममता का सागर आँखों में लहराता है !
पापी नर भी सहज प्रेम इनसे पाता है !
भूले से भी वार नहीं करतीं हैं हम पर !
शायद ही कोई निरीह इतना धरती पर !
पर कितने कृतघ्न हम हैं, कितने आवारा !
कुछ लुच्चे खा जाते हैं इनका भी चारा !
हत्या कर परोस देते हैं तन थाली में !
रक्त बहा देते हैं माता का नाली में !
चलो करें संकल्प बंद हो इनकी ह्त्या !
वरना पाप डंसेगा हमको बनकर कृत्या !
ऋण से इनके शायद मुक्ति हमें मिल जाये !
आओ मिल कर गो माता के प्राण बचायें !!
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