महाभारत: अनुशासन पर्व: एकोनाशीतितम अध्याय: श्लोक 18-27 का हिन्दी अनुवाद
जो लटकते हुए गल कंबल से युक्त मोटी ताजी सवसा गौ को अलंकृत करके ब्राह्माण को दान देता है, जब वह बिना किसी वाधा के विश्वेदेवों के श्रेष्ठ लोकों में पहुंच जाता है। जो गौर वर्ण वाली और दूध देने वाली शुभलक्षिणा गौओं को वस्त्र ओढ़ाकर समान रंग वाले बछड़े सहित दान करता है, वह बसुओं के लोक में जाता है। जो श्वेत कंबल के समान रंग सवत्सा गौ को वस्त्र से आच्छादित करके कांस्य के दुग्ध पात्र सहित दान करता है, वह साध्यों के लोक में जाता है। राजन। जो विशालविशाल पृष्ठ भाग को बैल को सब प्रकार के रत्नों ने अलंकृत करके उसका दान करता है, वह मरुद् गणोंकेलोकों में जाता है। जो मनुष्य यौवन से सम्पन्न और सुन्दर अंग वाले बैल को सम्पूर्ण रत्नों से विभूषित करके उसका दान करता है, वह गन्धर्बों और अप्सराओं के लोकों को प्राप्त करता है। जो लटकते हुए गल कंबल वाले तथा गाड़ी का बोझ ढ़ोने में समर्थ बैल को सम्पूर्ण रत्नों से अलंकृत करके ब्राह्माण को देता है, वह शोक रहित हो प्रजापति के लाकों में जाता है। राजन। गोदान में अनुराग पूर्वक तत्पर रहने वाला पुरूष सूर्य के समान देदीप्यमान विमान में बैठकर मेंघमंडल को भेदता हुआ स्वर्ग में जाकर सुशोभित होता है। उस गोदान परायण श्रेष्ठ मनुष्य को मनोहर वेष और सुन्दर नितम्ब वाली सहस्त्रों देवांगनाएं (अपनी सेवा से) रमण करती है। वह वीणा और वल्ल्लकी के मधुर गुंजन, मृगनयनी युवतियों के नुपुरों की मनोहर झनकारों तथा हास-परिहास के शब्दों को श्रवण करके नींद से जागता है। गौ के शरीर में जितने रोंए होते है, उतनें वर्षो तक वह स्वर्ग लोक में सम्मानपूर्वक रहता है। फिर पुण्य क्षीण होने पर जब वह स्वर्ग से नीचे उतरता है, तब इस मनुष्य लोंक में आकर सम्पन्न घर में जन्म लेता है।
इस प्रकार श्रीमहाभारत अनुशासनपर्व के अन्तगर्त दानधर्मपर्वमें गौओं की उत्पत्ति का गोदान विषयक उन्यासीवाँ अध्याय पूरा हुआ।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें