क्या आप जानते हैं जिस गौमाता की आप पूजा करते हैं, उसे किस प्रकार निर्दयतापूर्वक मारा जाता है ?
कत्लखाने में स्वस्थ गौओं को मौत के कुँए में 4 दिन तक भूखा रखा जाता है| अशक्त होकर गिरने पर घसीटते हुए मशीन के पास ले जाकर उन्हें पीट-पीटकर खड़ा किया जाता है| मशीन की एक पुली (मशीन का पकड़नेवाला एक हिस्सा) गाय के पिछले पैरों को जकड़ लेती है | तत्पश्चात खौलता हुआ पानी 5 मिनट तक उस पर गिराया जाता है| पुली पिछले पैरों को ऊपर उठा देती है| जिससे गायें उलटी लटक जाती हैं| फिर इन गायों की आधी गर्दन काट दी जाती है ताकि खून बाहर आ जाये लेकिन गाय मरे नहीं | तत्काल गाय के पेट में एक छेद करके हवा भरी जाती है, जिससे गाय का शरीर फूल जाता है | उसी समय चमड़ा उतारने का कार्य होता है | गर्भवाले पशु का पेट फाड़कर जिन्दा बच्चे को बाहर निकला जाता है | उसके नर्म चमड़े को (काफ-लेदर) को बहुत महंगे दामों में बेचा जाता है|
गौरक्षा - गाय की सुरक्षा : सर्वस्व की रक्षा
“गावो विश्वस्य मातर |”
गौमाता जो आजीवन हमें अपने दूध- दही- घी आदि से पोषित करती है| अपने इन सुंदर उपहारों से जीवनभर हमारा हित करती है| ऐसी गौमाता की महानता से अनभिज्ञ होकर मात्र उसके पालन-पोषण का खर्च वहन ना कर पाने के बहाने उन्हें कत्लखानों के हवाले करना विकास का कौन सा मापदंड है ? क्या गौमाता के प्रति हमारा कोई कर्त्तव्य नहीं है ?
पंडित मदन मोहन मालवीयजी ने कहा है: ’यदि हम गौओं की रक्षा करेंगे तो गौएँ भी हमारी रक्षा करेंगी |’
सदियों से अहिंसा का पुजारी भारतवर्ष आज हिंसक और मांस निर्यातक देश के रूप में उभरता जा रहा है| यह बड़ी विडम्बना है कि एशिया का सबसे बड़ा कत्लखाना अन्य इस्लामिक देशों में नहीं बल्कि भारत के महाराष्ट्र प्रान्त में है, जहाँ हजारों गायें रोज कटती है| दूसरी अल कबीर गोवधशाला आंध्रप्रदेश में है | यहाँ रोज 6 हजार गौएँ , इससे दुगुनी भैसें तथा पड़वे काटे जाते है| इसका लगभग 20,000 टन मांस विदेशों में निर्यात होता है |
कत्लखाने में स्वस्थ गौओं को मौत के कुँए में 4 दिन तक भूखा रखा जाता है| अशक्त होकर गिरने पर घसीटते हुए मशीन के पास ले जाकर उन्हें पीट-पीटकर खड़ा किया जाता है| मशीन की एक पुली (मशीन का पकड़नेवाला एक हिस्सा) गाय के पिछले पैरों को जकड़ लेती है | तत्पश्चात खौलता हुआ पानी 5 मिनट तक उस पर गिराया जाता है| पुली पिछले पैरों को ऊपर उठा देती है| जिससे गायें उलटी लटक जाती हैं| फिर इन गायों की आधी गर्दन काट दी जाती है ताकि खून बाहर आ जाये लेकिन गाय मरे नहीं | तत्काल गाय के पेट में एक छेद करके हवा भरी जाती है, जिससे गाय का शरीर फूल जाता है | उसी समय चमड़ा उतारने का कार्य होता है | गर्भवाले पशु का पेट फाड़कर जिन्दा बच्चे को बाहर निकला जाता है | उसके नर्म चमड़े को (काफ-लेदर) को बहुत महंगे दामों में बेचा जाता है|
गौरक्षा - गाय की सुरक्षा : सर्वस्व की रक्षा
“गावो विश्वस्य मातर |”
गौमाता जो आजीवन हमें अपने दूध- दही- घी आदि से पोषित करती है| अपने इन सुंदर उपहारों से जीवनभर हमारा हित करती है| ऐसी गौमाता की महानता से अनभिज्ञ होकर मात्र उसके पालन-पोषण का खर्च वहन ना कर पाने के बहाने उन्हें कत्लखानों के हवाले करना विकास का कौन सा मापदंड है ? क्या गौमाता के प्रति हमारा कोई कर्त्तव्य नहीं है ?
पंडित मदन मोहन मालवीयजी ने कहा है: ’यदि हम गौओं की रक्षा करेंगे तो गौएँ भी हमारी रक्षा करेंगी |’
सदियों से अहिंसा का पुजारी भारतवर्ष आज हिंसक और मांस निर्यातक देश के रूप में उभरता जा रहा है| यह बड़ी विडम्बना है कि एशिया का सबसे बड़ा कत्लखाना अन्य इस्लामिक देशों में नहीं बल्कि भारत के महाराष्ट्र प्रान्त में है, जहाँ हजारों गायें रोज कटती है| दूसरी अल कबीर गोवधशाला आंध्रप्रदेश में है | यहाँ रोज 6 हजार गौएँ , इससे दुगुनी भैसें तथा पड़वे काटे जाते है| इसका लगभग 20,000 टन मांस विदेशों में निर्यात होता है |
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