मंगलवार, 18 मार्च 2014

पंचगव्य चिंतन

आज कुछ गौसेवक कहते हैं कि समय बदल गया है तो गौरक्षा के तरीके भी बदलने चाहिए। मैं उनकी बात से सहमत हूँ पर मेरा चिन्तन कहता है कि जब तक भारत में पंचगव्य का सेवन होता रहा तब तक गौरक्षा का प्रश्न ही नहीं उठा, परन्तु आज लोग पंचगव्य से दुर होते जा रहे हैं तो गौरक्षा का प्रश्न उठा है।
तरीके बदल सकते हैं परन्तु परम्परायें नहीं बदला करती। चिल्लाना छोड दो अब गौरक्षा के लिये।
इस पेज से जुडे सभी मित्र ध्यान दें - अपने नगर अथवा गाँव में एक पंचगव्य बिक्री केन्द्र खोलें तथा स्थानीय पंचगव्य की बिक्री करें। इससे बेरोजगार गौभक्तों को रोजगार मिलेगा तथा गाँव में गाय बेचना तो दुर, गायों की संख्या में वृद्धि होगी।

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